Saturday, January 29, 2011

When to construct our own House?


भवन - निर्माण कब करवाएँ ? 

अपना स्वयं का मकान हो, यह हर व्यक्ति की चाह होती है। वास्तु शास्त्र में भवन निर्माण में संबंध में अनेक बातें बताई गई है। कहा गया है कि जब शनिवार, स्वाति नक्षत्र, श्रावण मास, शुभ योग, सिंह लग्न, शुक्ल पक्ष एवं सप्तमी तिथि का योग एकसाथ हो तो उस मुहूर्त में कार्य आरंभ करना सर्वोत्तम है। लेकिन ये सातों योग कभी - कभी ही घटित होते है।

किस माह में निर्माण आरंभ करने से क्या फल प्राप्त होता है, आइए देखते है - 

माह फल 
चैत्र (मार्च - अप्रैल) तनाव, रोग, पराजय, अवनति।
वैशाख (अप्रैल - मई) आर्थिक लाभ, शुभ
ज्येष्ठ (मई - जून) दारुण कष्ट।
आषाढ (जून - जुलाई) घोर विपत्ति।
श्रावण (जुलाई - अगस्त) परिजनों के लिए शुभ व वृद्धि।
भाद्रपद (अगस्त - सितम्बर) सामान्य, कोई अर्थ लाभ नहीं।
आद्गिवन (सितंबर - अक्टूबर) पारिवारिक कलह, संबंध विच्छेद।
कार्तिक (अक्टूबर - नवंबर) समस्याजनक।
मार्गशीर्ष (नवंबर - दिसंबर) उन्नति, संपन्नता और सुख।
पौष (दिसंबर - जनवरी) संपन्नता लेकिन चोरी का भय
माघ (जनवरी - फरवरी) अनेक लाभ, लेकिन अग्नि भय।
फाल्गुन (फरवरी - मार्च) सर्वोत्तम, सदैव लाभ।

मास सुनिश्चित कर लेने के बाद राशि सूर्य भी देखना चाहिए। यथा - 

  • मेष - शुभ एवं लाभकारी।
  • वृषभ - अति आर्थिक लाभ। 
  • मिथुन - अनहोनी संभव। 
  • कर्क - शुभ (प्रभाव) परिणाम। 
  • सिंह - कार्य निर्विघ्न पूर्ण। 
  • कन्या - स्वास्थ्य की चिंता। 
  • तुला - शांति एव ंनिरंतर कार्य।
  • वृश्चिक - संपत्ति में वृद्धि 
  • धनु - हानि संभव। 
  • मकर - आर्थिक लाभ। 
  • कुंभ - मूल्यवान आभूषण संग्रह।
  • मीन - स्वास्थ्य चिंता।
तिथि - भवन निर्माण में तिथि का भी महत्व है। 

कोई भी कार्य प्रतिपदा, चतुर्थी, अष्टमी, नवमी, चतुर्दशी एवं अमावस्या को कभी प्रारंभ नहीं करना चाहिये। 

लग्न - वृषभ, मिथुन, वृश्चिक और कुंभ का सूर्योदय उत्तम फलदायी रहता है। 
वार - सोमवार, बुधवार, गुरुवार और शुक्रवार मान्य एवं अच्छे माने गए है।
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Thursday, January 27, 2011

Charge your main Entrance for better prosperity


प्रवेश द्वार की वास्तु



घर का निर्माण करवाते समय वास्तु नियमों का पालन न केवल घर के  कमरों या किचन के लिये किया जाता है, बल्कि वास्तु नियम जमीन खरीदने के समय पर से ही ध्यान देने योग्य होते है। शास्त्रों के अनुसार पूर्ण वास्तु सम्मत मकान उसमें रहने वाले  परिवार के लिये अत्यन्त शुभ होता है। तथा पूरे मकान में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बना रहता है। (संदर्भ हेतु यहा मकान से हमारा तात्पर्य भवन, फैक्ट्री, कारखाना, गोदाम, ऑफिस, मंदिर, अस्पताल आदि से भी है।)

प्राचीन वास्तुकारों ने मकान की आकृति तथा मकान में प्रवेश हेतू बनाये गये मुखय द्वार की वास्तु अनुरुप व्याखया निम्न प्रकार से की है।

१. प्रवेश द्वार अत्यन्त मजबूत एवं सुंदर होना चाहिये।
२. प्रवेश द्वारा बनवाते समय कितना स्थान छोडना चाहिये, किस दिद्गाा में पल्ला बंद या खुलना चाहिये इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये।
३. प्रवेश द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज या अडचन नहीं होना चाहिये।
४. प्रवेश द्वार को मांगलिक प्रतीक चिन्हों जैसे :- गणेद्गा जी चित्र, स्वस्तिक, ऊँ, शुभ - लाभ, कलश चित्र आदि से सजाए रखना चाहिये।
५. घर में यदि मांगलिक कार्य हो तो प्रवेश द्वार को विशेष रुप से विभिन्न प्रकार की पुष्प मालाओं, आम के पत्ते की मालाओं से सजाना चाहिये।
६. प्रवेश द्वार की  प्रतिदिन साफ - सफाई व उचित रोशनी का प्रबंध होना चाहिये।
७. सामान्यतः मकान में एक ही मुखय द्वार शुभ माना गया है। यदि एक से अधिक द्वार हो, तो उत्तर या उत्तर - पश्चिम द्वार का प्रयोग करना चाहिये।
८. पूर्वमुखी भवन का प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर या उत्तर - पूर्व (ईशान कोण) में होना चाहिये।
९. मुखय द्वार का आकार घर के अन्य दरवाजों से बडा होना चाहिये।
१०. प्रवेश द्वार कभी  भी मध्य में नही होना चाहिये।
११. मकान के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पेड, बिजली का खंभा, अस्पताल या मंदिर होना अशुभ माना गया है। इसके अलावा प्रवेश द्वार के ठीक सामने कूडा - कचरा इकट्‌ठा बिल्कुल नही होना चाहिये।
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Article by -Ashutosh Joshi (Vastu Consultant)

Know about our inner powers


हमारे भीतर की शक्तियाँ

हमारे शरीर में ईश्वर प्रदत्त मुखय रुप से ६ प्रकार की शक्तियाँ होती है। मनुष्य इन शक्तियों का उचित प्रयोग करके जीवन सार्थक कर सकता है। किन्तु अनुचित प्रयोग, मनुष्य को पाप के गर्त में ले जाता है। 

१. परा शक्ति - सब शक्तियों का मूल आधार 
२. ज्ञान शक्ति - इस शक्ति से मनुष्य की मन, व बुद्धि विकसित होती है। किन्तु साथ् में अहंकार बढ  सकता है। ज्ञान शक्ति दूरदृष्टि, अंर्तदृष्टि बढाती है। 
३. इच्छा शक्ति - यह शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क के स्नायुतंत्र को प्रभावित करके कार्य की ओर प्रेरित करती है। 
४. क्रिया शक्ति - इच्छा शक्ति को प्रबल करके हम क्रिया शक्ति को प्रभावशाली बनाते है। 
५. कुण्डलिनी शक्ति - यह मनुष्य के भीतर सुषुप्तावस्था में रहती है। योगी पुरुष तपस्या से विधिपूर्वक इस शक्ति के तेज को जाग्रत करके सिद्ध पुरुष बन जाते है। कुण्डलिनी शक्ति से मन के संचालन में नियंत्रण बढता है। 
६. मातृका शक्ति - यह शक्ति अक्षर, विद्या, बिजाक्षर, शब्द व वाक्यों की शक्ति है। मंत्रों का प्रभाव इसी मातृका शक्ति के कारण होता है। 

प्रत्येक मनुष्य को अपनी जीवनशैली मे इन शक्तियों के बीच अपने सन्तुलन को बनाये रखते हुए कार्य करना चाहिये।

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Pranayam- A deep breathing exercise


प्राणायाम 

1- ''प्राणायाम'' हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। प्राणयाम हमारे मानसिक विकारों को दूर करके आध्यात्मिक प्रवृति की ओर प्रेरित करता है।
2- ''प्राणायाम'' शान्त हवादार स्थान पर आसन बिछाकर, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिये।
3- ''प्राणायाम'' किसी योग्य विशेषज्ञ के साथ सीखकर ही करना चाहिये। गलत विधि अपनाने से नुकसान भी हो सकता है।
4- ''प्राणायाम'' शुरुआत में पांच मिनिट तक करके धीरे - धीरे १५ मिनिट तक ले जा सकते है।
5- ''प्राणायाम'' के लिये बैठते समय रीढ की हड्‌डी सीधी हो तथा पूरे शरीर में किसी प्रकार का तनाव या खिचाव नहीं होना चाहिये।
6- ''प्राणायाम'' करते समय वस्त्र ढीलें व सुविधाजनक पहनने चाहिये।

प्राणायाम विधि 

7- प्राणयाम शुरु करने से पहले यह ध्यान रहे कि दो - ढाई घंटे तक कुछ भी खायां पिया न हो।
8- दोनों नेत्रों को बंद करके, श्वास - प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित करें।
9- अब धीरे - धीरे श्वास अंदर ले। श्वास अंदर लेते समय हम अपने इष्ट देव का स्मरण करते रहे तो ध्यान व योग बेहतर परिणाम देंगे।
10- श्वास अंदर लेने के पश्च्यात कुछ समय तक (चाहें तो पूरी प्रक्रिया में गिनती करते रहें) श्वास को रोंके रहे। (समय प्रबंध हेतू श्वास अंदर लेते समय १ से ४ तक गिनती करें, रोकते समय १ से ८ तक गिनती करें व छोडते समय १ से १६ तक गिनती करें)
12- तत्‌पश्च्यात बहुत धीरें - धीरें श्वास को छोडे। यह अभ्यास सतत्‌ करें।
13- इस प्रकार '' प्राणयाम'' की गिनती व समय धीरे - धीरे बढाते जायें।
14- '' प्राणयाम'' युवावस्था में ३० से ४० बार, प्रौढ अवस्था में ४०  से ५० बार तथा वृद्धावस्था में अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिये।
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Wednesday, January 26, 2011

Vastu in your Office

अपने कार्य स्थल का वास्तु कैसा हो ?

  • आपका केबिन इस तरह हो कि कुर्सी पर बैठते समय आपका मुख पूर्व या उत्तर कि तरफ़ हो.
  • आपको केबिन मै क्लॉक वाइस घूमकर बैठना चाहिए.
  • आपकी कुर्सी के पीछे दीवार होना चाहिये ना कि खिड़की.यदि खिड़की है तो उसे बंद रखना उचित रहेगा.
  • आपके ऑफिस मै हवा आने के लिए खुला खुला वातावरण होना चाहिए तथा किसी भी प्रकार कि बदबू नही आना चाहिए.
  • अपने ऑफिस मै जहा तक संभव हो व्यवहार में विनम्रता रखे और हँसते रहे.क्रोध आपको विचलित रखेगा और माहौल में नकारात्मकता फैलेगी.
  • ऑफिस में टेबल पर सामान सुविधाजनक रुप से रखा होना चाहिए तथा आवशक्ततानुसार लाइट का अच्छा प्रबंध होना चाहिए.
  • केबिन का दरवाजा आपकी तबालई के एकदम  सामने ना होकर right या left में होना उचित रहता है.
  • मशीन आदि इलेक्ट्रॉनिक या मेकेनिकल items दक्षिण-पश्चिम कोने में रखना उचित रहता है.
  • ऑफिस में कबूतर के घर होना या मधुमक्खी के छत्ते होना अशुभ माना गया है.
  • यदि आप ऑफिस में मायूस रहते है या आपके अपने बॉस से अनबन रहती है तो केबिन में अगरबर्त्ती  का प्रयोग करने से लाभ मिलता है.
  • ऑफिस में हमेशा जूते  पहन कर जाना चाहिये,चप्पल पहनने से नकारात्मक ऊर्जा आती है.
  • ऑफिस जाने से पहले अपने इष्ट देवता कि पूजा करना,माता पिता का आशीर्वाद लेना हमेशा शुभ रहता है.
  • यदि अशुभ समय चल रहा हो तो घर पर पूजा करते समय लौंग से हवन करके अपने मालिक की सुख व शांति हेतु प्रार्थना करने से लाभ मिलता है. 
  • टेबल के drawers या अल्मारी आदि में अनावश्यक सामान भरना,या अव्यवस्थित ऑफिस होना अशुभ माना गया है.
Article by Ashutosh Joshi (Vastu Consultant)

Tuesday, January 25, 2011

WEB SITE VASTU


वेबसाइट के फ्रंट पेज का हिस्सा उत्तर, निचला  दक्षिण, दाई
ओर पूर्व तथा बाई ओर पश्चिम माना जाता है।


वेबसाइट के 'फ्रंट पेज' की तुलना भवन के मुखय द्वार या साइन बोर्ड से की जाती है। अतः यह इतना दमदार होना चाहिए कि लोग इसे अवश्य देखें। वेबसाइट के 'ले-आउट' का संबंध भूमि तत्व से है। अतः फ्रंट पेज आयताकार होना चाहिए तथा इसकी लंबाई, चौडाई के दोगुने से अधिक नहीं होना चाहिए। वेबसाइट की विषयवस्तु का संबंध जल तत्व से तथा उसके रंगा  का संबंध अग्नि तत्व से होता है। अतः विषयवस्तु प्रवाह में होना चाहिए। 'यूआरएल' या 'डोमेन नेम' का संबंध आकाश तत्व से तथा वेब डिजाइन में प्रयुक्त होने वाली तकनीकों जैसे -'एचटीएमएल' या 'एएसपी' का संबंध वायु तत्व से है। वेबसाइट के फ्रंट पेज का ऊपरी हिस्सा उत्तर, निचला दक्षिण दाई ओर पूर्व तथा बाई ओर पश्चिम माना जाता है। इसके उत्तर - पूर्वी कोने पर हलकी - फुलकी सामग्री डालें तथा इसे ऊर्जावान करने के लिए छोटे 'एनीमेशंस' का उपयोग करें। फ्रंट पेज के दक्षिण - पश्चिम कोने को भारी रखें। 


इसके लिए बडे व स्थिर चित्रों का प्रयोग किया जा सकता है। दक्षिण - पूर्वी कोने में चटक रंगो का प्रयोग करें व कंपनी का 'लोगो' उत्तर -  पश्चिम  कोने में लगाएं। 'लोगो' की आकृति व रंग व्यवसाय के अनुरुप होना चाहिए। उत्तर में विज्ञापनों के 'एनीमेशंस' व दक्षिण में कंपनी का नाम, पता आदि डालें।  पश्चिम  में विभिन्न पेजों के लिंक व पूर्व में छोटे विज्ञापन लगाएं। केंन्द्रीय भाग में हलकी पाठ्‌य वस्तु या छोटे - छोटे 'एनीमेशंस' का प्रयोग करें। वेबसाइट का निर्माण करते वक्त यह ध्यान रखें कि कोई नुकीली डिजाइन, कंपनी के नाम आदि को निशाना न बना रहा हो। 


अलग - अलग व्यवसायों के लिए वेबसाइट बनाते वक्त कंपनी के 'लोगो' के आकार व विषयवस्तु के रंगों का चुनाव वास्तुशास्त्र के नियमों के अनुरुप ही करें। भवन निमार्ण, रीयल इस्टेट, आर्किटेक्चर आदि के लिए पीले, भूरे व लाल रंगो का प्रयोग करें। इनका 'लोगो' वर्गाकार या त्रिभुजाकार रखें। बैकिंग, बीमा, ट्रेडिंग,    शा  पिंग, पर्यटन आदि के लिये काले व नीले रंगो का प्रयोग करें। रेस्टोरेंट, होटल व अग्नि आदि के लिये लाल, पर्पल व हरे रंगो का प्रयोग करें। इनका 'लोगो' त्रिभुजाकार या आयताकार रखें।

आटोमोबाइल्स, इलेक्ट्रानिक्स, छापखाना (प्रेस) मद्गाीन, ज्वैलरी, खदान आदि वेबसाईटो के लिए सुनहरे व पीले रंगों का प्रयोग करें। इनका 'लोगो' गोल या वर्गाकार रखे। प्रिटिंग, मीडिया, फर्नीचर, बागवानी, डेयरी आदि से जुडें वेबसाइटों के लिए हरे, नीले व काले रंगो का प्रयोग करे। इनका 'लोगो' आयताकार या तरंगाकार रखे। वेबसाइट के आरंभ में हल्के व आकर्षण तथा निचले हिस्से में गंभीर विषयवस्तु डाले।

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Importance & Procedure for donating spiritual items


दान का महत्व एवं विधि

शास्त्रों में गृह शांति के विभिन्न उपायों में गृहानुसार दान देने का विशेष  महत्व है किन्तु ऐसा देखने में आया हैं कि लोग दान के महत्व व विधि से पूर्णतः अवगत नहीं है। इसलिये दान देने के बावजूद भी दान का सुफल दानदाता को नहीं मिल पाता है।

दान देने की सही विधि व सही कारण दान के पुण्य को दुगुना कर देता है। दान का सुफल उतना ही लौटकर आ जाता  है, जैसे :- कुएं में झाककर आवाज देने से हमारे स्वर पुनः लौट आते है। दान का सुफल किसी भी रुप में निश्चित मिलता ही है। किन्तु हम यह जान नहीं पाते कि किस दान का क्या सुफल हमें मिला। दान के पुण्य का न तो कोई निश्चित समय होता है और न ही कोई निश्चित मात्रा।


१. दान देने से पूर्व यह जरुर मालूम होना चाहिये कि दान  किसे, कब और क्यों देना है, अर्थात दान हमेशा    किसी जरुरतमंद को, किसी उपयुक्त दिन व समय में देना शुभ माना गया है।
२. शास्त्रों में विभिन्न ग्रहों की शांति के लिये विभिन्न उपाय बताये गये है। विभिन्न ग्रहो के अनुसार दान भी अलग - अलग है। अतः ग्रहों के उपयुक्त दिन, रंग व वस्तु को ध्यान में रखकर दान देना चाहिए।
. सूर्य ग्रह की शांति के लिये आटे, गुड तथा तांबे का दान करना चाहिए।रत्नों में माणिक भी दान कर सकते है।
. चंद्र ग्रह की शांति हेतु चांदी, दूध, चांवल, सफेद कपडे, सफेद मिठाई, आदि का दान करना चाहिए। शंख, कपूर, श्वेत चंदन और मोती का दान भी उपयुक्त है।
५. मंगल ग्रह की शांति के लिये लाल कपडा, मूंगा, मसूर की दाल, गुड, सिन्दूर, व लाल मिर्ची का दान उपयुक्त माना गया है।
. बुध ग्रह की शांति के लिये हरे कपडे, हरा धनिया, पन्ना, साबूत मूंग की दाल, हरी सब्जी, कांस्य के बर्तन, घी, मिश्री, आदि का दान उपयुक्त है।
७. बृहस्पति ग्रह की शांति हेतु पीले वस्त्र, चने की दाल, सोना, पुखराज, पीले फूल, केसर, पीले फल, हल्दी, शहद, भूमि आदि का दान उपयुक्त है।

८. शुक्र ग्रह की शांति के लिये चांदी, दूध, चांवल, सफेद कपडे, सफेद मिठाई, आदि का दान करना चाहिए। शंख, कपूर, श्वेत चंदन और अमेरिकन डायमंड का दान भी उपयुक्त है।
९. शनि ग्रह की शांति हेतु काले वस्त्र, काला छाता, काला कम्बल, काला नमक, उदड की दाल, लोहा, नेत्र रोग की दवाईयां, नीलम, या तुरमुली, काला तिल, चमडा, सरसों का तेल, शराब, आदि का दान उचित माना गया है।
१०. राहु ग्रह की शांति के लिये जौ, गोमेद, उडद, सोने का साप, सात प्रकार के अन्न, नीला वस्त्र, काले फूल, काले तिल, तांबे का बर्तन आदि का दान करना उपयुक्त माना गया है।
११. केतु ग्रह की शांति हेतु उडद, कम्बल, कस्तूरी, लहसुनिया, काले फूल, काले तिल, लोहा, सोना व सात प्रकार के अन्न दान करना उपयुक्त माना गया है।

दान करने के उपरांत दान के बारे में किसी अन्य व्यक्ति से चर्चा करने से दान का महत्व खत्म हो जाता है। अतः जब हम निःस्वार्थ भाव से, शुद्ध मन से, शुद्ध भावना से बिना विचलित हुये एवं विनम्रता से दान करते है तभी पुण्य कमा सकते है।
Don't forget that we are ultimately judged by "what we give" and not by "what we get".
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Thursday, January 13, 2011

More about The SUN


  1. The Solar System comprises the sun together with all the planets and other bodies directly or indirectly revolving round it.
  2. Solar system as we call it here SS includes nine planets along with the satellites that travel around the planets.
  3. SS is 33,000 light year from the  centre of the Galaxy.
  4. The revolution of  the SS around the centre of the Milky way is called Cosmic year.
  5. The SUN is one among the 100 billion stars in the giant spiral Galaxy,called the Milky way.
  6. The SUN is a shining spherical heavenly body around which the planets rotate.
  7. The glowing surface of the SUN which we see is called photosphere.Above this is the chromosphere.Beyond Chromosphere is the magnificent corona of the SUN which is visible during eclipses.
  8. At the Core of the SUN the temperature is around 15 million degrees k.
  9. The weight of the SUN is 33 lakh times heavier than the Earth's weight.
  10. Diameter of the SUN is 1384000 km.
  11. Rotation on its axis (at the Equator) 25.38 days.
  12. Rotation on its axis (near the poles) 33 days.
Compiled by -  Ashutosh Joshi
Reference book-21st Century-Student's Companion - By Vijaya Kumar

Monday, January 10, 2011

Pearl - (Moti) Precious stone for MOON


मोती 
हिन्दी नाम                  मोती
  उपयुक्त ग्रह                   चन्द्रमा

   उपयुक्त दिन                  सोमवार
          उपयुक्त अंगुली                तर्जनी कनिष्का
उपयुक्त रंग                   सफेद
उपयुक्त धातु                  चांदी
        उपयुक्त वजन                 सवा पॉच रत्ती
          उपयुक्त मंत्र                   ऊं चंद्राय नमः
                                        ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः

उपयुक्त अपेक्षित लाभ

1    मानसिक शांति मिलती है।
2.   अस्थिरता उत्तेजना उलझन दूर होती है।
3.   तन व मन शीतल रहता है।
4    क्रोध शांत होता है।
5    उत्साह व धन बढाता है।
6    तेज व ओज बढाता हैं।
7    मोती पहनने से विपरित असर नहीं होता है।
8    स्त्रियों की पेट की बीमारी में लाभ होता है।
9    मोती की भस्म हदय रोग में लाभ पहुचाती है।
10   इस रत्न से चन्द्रमा ग्रह संबंधित सारे दोष दूर होते है।
11   12 घंटे मोती को चांदी के पात्र में रखकर उसका जल ग्रहण करने से मियादी बुखार उतरते है। मूत्र संबंधी रोग में लाभ होता है।

मुख्य रुप से अधिक चमक व आभा वाला मोती ही उत्तम होता है। आचार्य वाराहमिहिर के अनुसार मोती की उत्पति हाथी] सर्प] सीपी] शंख]मेघ]बांस]मछली और सुअर से बताई है]किन्तु शास्त्रों के अनुसार सीप से उत्पन्न मोती ही श्रेष्ठ माना गया है।


यदि चन्द्र ग्रह कमजोर स्थिति में हो तो निम्नलिखित उपाय करे

चंद्रमा को अपने अुनकूल करने के लिए रात को सिरहाने दूध या पानी लोटे में भरकर रख ले एवं सुबह उठकर कीकर के वृक्ष में डाल दे। मोती z चावल z दूध तथा चांदी का दान कर सकते है।

जब जन्म या वर्ष कुंडली में चंद्र ग्रह अशुभ हो तो निम्नलिखित मंत्र को 11 हजार की संख्या मंे जप करना और तदुपरांत दशमांश संख्या में हवन करना कल्याणकारी होता है। जल का आरंभ पूर्णिमा या शुक्ल पक्ष के सोमवार से करना चाहिए ।

तंत्रोंक्त चंद्र मंत्र: ऊँ श्रां श्रीं श्रौं सः चन्द्रमसे नमः

दान योग्य वस्तु;s +चांवल , सफेद z चंदन z शंख z कपूर z घीz z दही z चीनी z मिश्री z मोती z श्वेत वस्त्र z श्वेत पुुष्प z श्वेत फल z चांदी z मिठाई और दक्षिणा।

अन्य उपाय:
1.   चांदी के बर्तनों का प्रयोग करना एवं चारपाई के (सोने योग्य दीवान इत्यादि भी ) पायों में चांदी के कील ठुकवाना।
2    सफेद मोतियों की माला अथवा चांदी की अंगूठी में मोती धारण करना।
3    शीशे के गिलास में दूध , पानी आदि पीने से परहेज रखना तथा चंादी के बर्तनों में दूध , पानी शुभ होगा।
4    पानी मंें कच्चा दूध मिलाकर चंद्रमा की बीज मंत्र  पढते हुए पीपल पर डालना।
5   लगातार 16 सोमवार व्रत रखकर सायंकाल सफेद वस्तुओं का दान करना चाहिये तथा पांच छोटी कन्याओं को क्षीर सहित भोजन कराना चाहिये।
6    सोमवार को ही प्रातः काल स्नानादि करके ताम्र बर्तन में कच्ची लस्सी (जल तथा थोडा सा दूध) भगवान की मूर्ति शिवलिंग पर चढाना चाहिये।
7    चांदी का कडा , चेन या सिक्का धारण करना चाहिये।

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Wednesday, January 5, 2011

Yantra-siddhi - A Spiritual link for success


Yantras are geometrical numbers projected to represent the positive powers, which in return wipe out all negative forces.

Yantra is a magical table that possesses control over celestial forces. It can be called as the divine depot of energy, which picks up cosmic rays emitted by the planets and transforms them into positive vibrations. These energy imitations are then transmitted to the surroundings where Yantra is placed, thus destroying all the destructive forces within the surrounding area. Vedic yantras are geometrical figures intended to represent the basic energies. Right from a simple dot (bindu) to complex geometrical figure, each is emblematic of some form of energy.

Yantra is derived from the word Yama. It destroys all the malefic effects of planets, regulates the energy and converts them in a positive power. It is an interlocking matrix of geometric figures, circles, triangles and floral patterns that form fractal patterns of elegance and beauty. The person under the influence of Yantra, slowly and steadily benefits by being at the receiving end of all affirmative sensations of this cosmic conductor of endless force.

Yantras can be drawn, engraved or painted on a variety of substances. The classical tantric surfaces are gold, silver, copper, crystal, Bhojpatra, and Vishnu stone (Shaligrama).
 There is a specific designated place where a particular Yantra is seated for its full effects. Before establishing Yantra,, it is necessary to energize them by doing ‘Prana-prathishtha’.

Yantra are supposed to be a medium for spiritual connection between Specific wish and the person who wants to fulphil that wish. Different Yantras are created to give different types of cosmic boons to individual problem. It can range from increasing the sexula powers, to gain harmony in business and wealth or to gain siddhi through meditation, for attraction, to gain love or to get recover from any disease. Yantras supports an individual with whatever ambition has to be accomplished.

Basic elements considered in Hindu philosophy are Earth, Fire, Water, Air and Ether (Aakash). Depictions of all these forces are absorbed in the sophisticated and unbelievingly accurate mathematical construction of Yantras. For earth element rectangular Yantras are made, whereas for water element, circular shapes are assigned to get merits of that particular form of energy.  Triangles are used for five fire element. Complex shapes take in all these forces to generate an explicit force. The objectives of these elements are given as follows:  

Earth element passes on ambition, stability, comforts and material success.
Water element imparts depth, wisdom, affection, love and emotional stability.
Air element  imparts intelligence, power of speech and removes hurdles.
Fire element helps in gaining success, respect and in averting troubles:
Aakash/Ether element helps in spiritual enlightenment, overall success and knowledge.

Different types of Yantras have different configuration for various purposes.

Names of Yantra commonly advised by Astrologers are as follows –
Laxmi-Yantra, Vastu-Yantra, Mohini-Vashikaran-Yantra, Kuber-Yantra, Navgrah-Yantra, Shree-Yantra, Mangal-Yantra, Vahan-Durghtna-Nashak-Yantra, Sarva-Karya-Siddhi-Yantra,

The use of suitable Yantra is based on certain spiritual methods. These methods are different for different type of Yantras. Readers are hereby advised to get proper information from good Astrologer before going for Yantra-Siddhi.

For attaining positive results from all Spiritual remedies including Yantra therapy, one has to have deep trust and faith from the bottom of one’s heart. Application of correct method with original Spiritual items is a must too.

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Shree Nav Graha Strotam - ( Navgraha stuti in Sanskrit)

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Saturday, January 1, 2011

Positive attitude

(1)-Positive Attitude
“WITH POSITIVE ATTITUDE, YOU BECOME A PERSON THAT BRIGHTENS THE ROOM SIMPLY BY ENTERING IN TO IT”

An attitude is defined as-

“The way a person feels, thinks and behaves, towards a particular issue.”

Attitude helps in particular situations within the frame of mind. For example — a glass half filled with water may be explained as “A glass is half filled” or “A glass is half empty”.
With this simple example we can understand that a person having positive attitude will always point out as “A glass is half filled”.
Positive attitude, self belief and the determination are key factors for success.

POSITIVE ATTITUDE —gives—> POSITIVE THINKING —gives—> POSITIVE ACTION / REACTION / EFFORTS —gives—> POSSITIVE RESULT.

With the positive attitude a person can get following advantages—
1.      With the +ve attitude you become humble/polite, caring & confident.
2.      You develop patience & high expectation.
3.      Positive attitude enhances Productivity & Team work.
4.      It reduces undue stress.
5.      It develops trust among team members.
6.      It develops good character, integrity and values.
7.      A person with positive attitude doesn’t see setbacks as stumbling blocks, rather sees setbacks as stepping stones.

Disadvantages of behaving with negative attitude are—
1.      It increases animosity.
2.      It develops sickness (Ill health)
3.      It increases bitterness in relationship & resentment.
4.      Negative person not only spoils himself but the entire environment.
5.      Negative thinkers are basically fault finders. They always see negative side of the story.
POSITIVE THINKERS ARE WINNERS WHILE NEGATIVE THINKERS ARE LOOSERS.