Friday, February 25, 2011

HOLI - Colorful auspicious festival



होलिका दहन  

 लाभदायक अद्‌भूत प्रयोगों द्वारा संकटों से मुक्ति



आलेख - आशुतोष जोशी

होली का त्यौहार  हमारी पौराणिक कथाओं में श्रद्धा विश्वास और भक्ति का त्यौहार माना गया है तथा साथ ही होली के दिन किये जाने वाले अद्‌भूत प्रयोगों से मानव अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति भी पा सकता है। होली हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाती है तथा भद्रारहित समय में होली का दहन किया जाता हैं।

होली की रात होलिका दहन मे से जलती हुई लकडी घर पर लाकर नवग्रहों की लकडियों एवं गाय के गोबर से बने उपलों की होली प्रज्जवलित करनी चाहिए। उसमें घर के प्रत्येक सदस्य को देसी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता चढाना चाहिए तथा सभी को उस होलिका की ग्यारह परिक्रमा करते हुए सूखे नारियल की होली में आहुति देनी चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार आध्यात्मिक महत्व को देखते हुये होली की पूजा तथा दहन के पश्चात बची हुई राख के द्वारा विभिन्न प्रयोग लाभदायक हो सकते हैं।


१. होली की पूजा मुखयतः भगवान विष्णु (नरसिंह अवतार) को ध्यान में रखकर की जाती है।
२. होली दहन के समय  ७ गोमती चक्र  लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ गोमती चक्र दहन में डाल दें।
३. होली दहन के दूसरे दिन होली की राख को घर लाकर उसमें थोडी सी राई व नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूतप्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती है।
४. होली के दिन से शुरु होकर बजरंग बाण का ४० दिन तक नियमित पाठ करनें से हर मनोकामना पूर्ण होगी।
५. यदि उधार दिया हुआ पैसा वापस नहीं आ रहा हैं तो होली दहन के दूसरे दिन बचे हुये कोयले से वहीं धरती पर उस व्यक्ति का नाम लिखे तथा उस नाम के उपर हरा रंग इस तरह डाल दें कि पूरा नाम लुप्त हो जाये। इस प्रयोग से वह व्यक्ति शीघ्र धन वापस कर देगा।
६. यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो, तो २१ गोमती चक्र लेकर होली दहन के दिन रात्रि में शिवलिंग पर चढा दें।
७. नवग्रह बाधा के दोष को दूर करने के लिए होली की राख से शिवलिंग की पूजा करें तथा राख मिश्रित जल से स्नान करें।

८. होली वाले दिन किसी गरीब को भोजन अवश्य करायें।
९. होली की रात्रि को सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाकर पूजा करें व भगवान से सुख - समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से बाधा निवारण होता है।
१०. यदि बुरा समय चल रहा हो, तो होली के दिन पेंडुलम वाली नई घडी पूर्वी या उत्तरी दीवार पर लगाए। परिणाम स्वयं देखे।
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Tuesday, February 22, 2011

Mahashivratri Vishesh - 3



महादेव शिव शंकर से सम्बंधित अद्भुत शास्त्रोक्त तथ्य


आलेख - आशुतोष जोशी



१. भगवान शंकर को उनके विचित्र स्वभाव व विचित्र अवतरण के कारण त्रिलोचन, महेश्वर, शत्रुहंता, महाकाल, वृषभध्वज, नक्षत्रसाधक, त्रिकालधृष, जटाधर, गंगाधर, नीलकंठ, त्र्यंबकं आदि अनेक नामों से जाना जाता है। 
२. शास्त्रों के अनुसार ज्योतिष शास्त्र व वास्तु शास्त्र की उत्पत्ति महादेव के द्वारा ही की गई है।
३. श्री शिव शंकर का निवास स्थान उत्तर में हिमालय पर्वत पर स्थित होने की वजह से उत्तर दिशा को पूर्व दिशा की तरह ही उत्तम माना गया है। उत्तर दिशा को कुबेर की दिशा भी कहा जाता है।
४. शास्त्रों के अनुसार मंत्रो में प्रमुख महामत्युंजय मंत्र, जो भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए है, को अनिष्ट ग्रहों के दुष्प्रभाव को समाप्त करने तथा मृत्यु को टालने के लिए अचूक माना जाता हैं। यह महामंत्र विधि - विधान से यथा शक्ति जपने से साधक अपने जीवन में निरोगी रहकर लंबी आयु की भावना को प्रबल बना सकता है।
५. पौराणिक कथाओं में जिस प्रकार भगवान विष्णु के दस अवतारों की कथा आती हैं, उसी प्रकार भगवान शिव भी समय - समय पर अवतार लीलाऐं करते आए हैं जिनमें प्रमुख है :- नंदिश्वर अवतार, हनुमान अवतार, यक्षावतार, कालभैरव अवतार, दुर्वासा अवतार, तथा पिप्पलाद अवतार। इसके अलावा ऐसी मान्यता हैं कि बाबा बालकनाथ, शिर्डी के सांई बाबा तथा शंकराचार्य भी शिवजी के ही अवतार थे।
६. यहां यह स्पष्ट कर देना लाभदायक होगा कि भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए ग्रहों के अनुसार उपयुक्त नवरत्नों से बने शिवलिंगो की पूजा अर्चना करने से उस संबंधित ग्रह की अनुकूलता बढ जाती है। उदाहरण के लिए यदि बुध ग्रह पत्रिका में कमजोर है, तो पन्ना रत्न से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। यदि रत्नों से निर्मित शिवलिंग उपलब्ध न हो, तो सात या ग्यारह कैरेट के रत्न की शिवपूजा भी लाभदायक रहती है।
७. इसके अलावा दीर्घायु के लिए चंदन से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए तथा रोगनिवारण के लिए मिश्री से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए। गुड या किसी भी अन्न से बनाये शिवलिंग की पूजा करने से सुख - समृद्धि व कृषि वृद्धि में लाभ होता है। 
८. सोने, चांदी, पारे आदि से बने शिवलिंग की पूजा का भी सुख - समृद्धि व शांति प्राप्ति हेतु विशेष महत्व है।
. शास्त्रों के अनुसार मोक्ष पाने के लिए आँवलें से बने शिवलिंग की पूजा करनी चाहिए।
१०. महादेव शिव को पंचमुखी तथा दशभुजाओं से युक्त माना जाता है अर्थात्‌ पंचतत्वों के रुप में पांचों मुखों की अवधारणा मानी गयी हैं। इन्ही पंचतत्वों (पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु, आकाश) के द्वारा संपूर्ण चराचर संसार का प्रादुर्भाव हुआ माना गया हैं।

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Mahashivratri Vishesh - 2



प्राणियों के प्राणदाता - भोले शंकर 


आलेख - आशुतोष जोशी

गिरीशम गणेशम गले नीलवर्णम्‌
गजेंद्राधिरुढं गणातीत रुपम।

भवं भास्करं भस्मनां भूषितांगम्‌
भवानी कलत्रं भजे पंचवक्त्रम्‌।

अर्थात्‌ जो कैलाशनाथ है, गणनाथ है, नीलकंठ है, वृषभ पर बैठे हैं, अगणित रुप वाले हैं, संसार के आदिकारण हैं, प्रकाश स्वरुप है, शरीर में भस्म लगाए हुए और मां शक्ति जगद्‌जननी जिनकी अर्द्धांगिनी है, उन पंचमुखी महादेव विश्वनाथ का मैं स्मरण करता हूँ। 

देवों के देव महादेव ही ऐसे अद्‌भूत तथा विलक्षण देव हैं, जो ब्रह्माण्ड में निहित उर्जा का स्त्रोंत हैं तथा अन्य देवताओं के संकट के क्षणों में महादेव ही रुद्र रुप धरकर संकट निवारण करते आये हैं। भोले शंकर महादेव का एक और अद्‌भूत स्वभाव हैं, कि वे अपने भक्तों के प्रति अपार प्रेम रखते हुये तुलनात्मक रुप से जल्दी संतुष्ट व प्रसन्न हो जाते है। इसलिये महादेव का दूसरा नाम आशुतोष हैं। 

शास्त्रों के अनुसार हर प्रकार की दुविधा या संकट के समय भगवान भोलेनाथ की पूर्ण श्रद्धा एवं विश्वास के साथ पूजा अर्चना करने से वे प्रसन्न होते हैं तथा अपने भक्तों की सहायता करते हैं। महादेव का स्वभाव बहुत सरल व कृपालु हैं इसलिये विधि - विधान से पूजा करने वाले भक्तों के अलावा मस्तमौला औघड बाबा जो कई दिनों तक स्नान तक नहीं करते तथा मांस मदिरा, जिनका भोजन होता हैं, वे भी भगवान शिव के द्वारा लाभ प्राप्त करते हैं। 

यदि भगवान शिव के विभिन्न स्वरुपों की भावार्थ के साथ व्याखया करें तो हम देखते हैं कि मस्तक पर विराजमान चन्द्रमा और गंगाजल की धारा शीतलता का प्रतीक मानी जाती है। भगवान शिव के नीलकंठ में विराजमान नाग, भयमुक्त वातावरण का प्रतीक है। समुद्र मंथन के द्वारा प्राप्त विषपान करने का अर्थ हैं, कि हमें संसार में निहित सभी दुर्गुणों रुपी विष को पचाकर पूरे विश्व में अमृत रुपी सद्‌गुणों का प्रचार करना चाहिए।

शिवजी के परिवार में सभी जीव - जंतु (शेर, चीता, भालू, बैल, मोर, चूहा आदि) एक साथ रहकर सद्‌भाव का परिचय देते हैं। भगवान शिव जहां एक ओर उत्तर में हिमालय पर्वत पर विराजमान हैं वहीं उनका एक स्वरुप शमशान में भी निहित हैं अर्थात्‌ कोई भी कार्य अच्छा या बुरा नहीं होता और मंदिर हो या शमशान आपकी पवित्र भावना तथा श्रद्धा आपको जीवन में सफल बनाती है।

महादेव को भोलेशंकर या भोलेनाथ इसलिये कहा हैं क्योंकि वे आकार एवं निराकार स्वरुप में सर्वोच्च पद पर आसीन सर्वशक्तिमान होते हुये भी अहंकार से दूर अपने सच्चे भक्तों को प्रेम व शरण देते है। इसी वजह से भूतप्रेत, राक्षस, पशु - पक्षी, देवता, यक्ष, गंधर्व, किन्नर, मनुष्य आदि सभी प्राणियों के लिए भोलेनाथ एक समान है।

महादेव के मस्तक स्थित तीसरा नेत्र एक अद्‌भूत शक्ति का प्रतीक है। जिसका प्रयोग केवल घोर संकट में किया जाता है। अर्थात्‌ हर प्राणी में एक अद्‌भूत शक्ति होती है, जिसको महसूस करके या जाग्रत करके संकट के समय उपयोग की जा सकती है। 


आदिगुरु शंकराचार्य जी ने भगवान भोले शंकर की स्तुति करते हुये मानव समाज को यह संदेश दिया हैं कि हर मनुष्य को अपनी पशुता को नष्ट करके मानवता का सद्‌व्यवहार करते हुये अपना अमूल्य जीवन बिताना चाहिए।

शंभो महेश करुणामय शूलपाणे,
गौरीपते पशुपते पशुपाशनासिन्‌।


Mahashivratri (02.03.2011) - Warship of God Shiv - Shankar for health & Wealth


शिवमहिमा का महत्व 
(२ मार्च, महाशिवरात्रि पर विशेष)

आलेख - आशुतोष जोशी


इस वर्ष महाशिवरात्रि का पर्व २ मार्च को आ रहा हैं, यह वह पर्व हैं जब हम सब देवों के देव महादेव याने भोले शंकर भगवान की पूजा अर्चना करके अपने जीवन को सुख - समृद्ध बनाने की प्रार्थना करते है। शास्त्रों में निहित पौराणिक कथाओं के अनुसार भगवान शिव ही ऐसे देव हैं जो अन्य देवताओं के संकटों को भी हर लेते है। अतः उन्हें महादेव कहा जाता हैं। महादेव शिव सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड के सृष्टिकर्ता हैं। आज इस पावन पर्व पर भगवान भोलेनाथ के संबंध में मुखय बातें नीचे दी जा रही है। जिसके द्वारा भगवान शंकर के भक्तजन विशेष पर्व पर विशेष लाभ ले सकें।


इस वर्ष २ मार्च को प्रातः काल स्नान आदि के बाद शिवलिंग पूजा व उपवास का सर्वकार्य सिद्धि हेतु विशेष महत्व है। बेल पत्र, दूध मिश्रित जल, धतूरे का फल, सफेद पुष्प, सफेद मिठाई या मिश्रि, रुद्राक्ष, सफेद चंदन, भांग, गाय का घी आदि शिवलिंग पूजा में विशेष महत्व रखते है क्योंकि यह सब महादेव को अत्यंत प्रिय हैं।

महाशिवरात्रि के दिन गाय के कंडे को प्रज्जवलित करके घी व मिश्री के द्वारा पंचाक्षर मंत्र से हवन करके हवन की धुनी को संपूर्ण घर में घुमाने से सुख - समृद्धि शांति व सद्‌भावना में वृद्धि होती है।

यदि कन्या के विवाह में अनावश्यक विलंब हो रहा हो तो कन्या के माता - पिता मंदिर में जाकर १०८ बेल पत्रों से शिवलिंग की पूजा करें तथा उसके बाद ४० दिन तक घर में शिव आराधना करें, तो कन्या का विवाह जल्दी व अच्छे परिवार में होना  निश्चित है।

शास्त्रों के अनुसार काल - सर्प दोष निवारण हेतु महाशिवरात्रि के दिन प्रातः चांदी या तांबे से बने नाग व नागिन के जोडे को शिवलिंग पर अर्पित कर दें।

महाशिवरात्रि क्रे दिन प्रातः पीपल के पेड की सरसों के तेल द्वारा प्रज्जवलित दिये से पूजा अर्चना करने से शनि दोष दूर होता है।

महाशिवरात्रि के दिन उपवास रखकर चारों पहर पंचाक्षर मंत्र की एक रुद्राक्ष माला का जाप करने से दरिद्रता मिट जाती हैं। (अष्टदरिद्र विनाशितलिंगम्‌ तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्‌। )

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Monday, February 14, 2011

Spiritual & Medicinal Importance of trees and plants - PART- 4

    
वृक्षों कि हमारे जीवन मे महत्व सम्बंधि इस आलेख मे,हम यह बताना चाहेगे कि वृक्षों के पत्तों का भी सुख-शांति तथा धन-लाभ मे विशेष योगदान होता है।


विवरण                                             नक्षत्र मे                                       लाभ
  1. बेलपत्र लाकर जेब मे या अलमारी में रखें।     (रोहिणी नक्षत्र में)                            दरिद्रता दूर होती है।
  2. आम के पत्ते लाकर खेत में दबा दे।                 (आद्रा नक्षत्र में)                               फसल में वृद्धि
  3. बहडे के पत्ते लाकर अलमारी या गल्ले में रखे। (अ‍ॅश्लेशा नक्षत्र में)                           आय में वृद्धि 
  4. नींबू के पत्ते लाकर अपने पास रखें।                 (अनुराधा नक्षत्र में)                       व्यापार में सफलता 
  5. अंगूर के पत्तों को लाकर पास रखें।                   (श्रवण नक्षत्र में)                           श्रोताओं को प्रभावित करने की क्षमता बढती है।
  6. करंज के पत्ते लाकर पास रखें।                         (पूर्वा फाल्गुनी में)                         कोर्ट कचहरी के कार्य में सफलता  
  7. बरगद के पत्ते लाकर अलमारी में रखे               (पुष्य नक्षत्र में)                            धन - संपत्ति में वृद्धि  
  8. बरगद के पत्ते लाकर अनाज में रखे।                (अ‍ॅश्लेशा नक्षत्र में)                        अनाज का अक्षय भंडार रहता है। 


विशेष
पत्ते तोडने के पहले उस वृक्ष कि हल्दि-कुकु से तथा जल से पूजा करके, विनती करे और अपनी इच्छा-पूर्ति हेतु प्रर्थना करे.
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By-Ashutosh Joshi
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Sunday, February 13, 2011

Make your life better (PART-1)


सुखी जीवन के सरल उपाय 

1-प्रतिदिन अगर तवे पर रोटी सेंकने से पहले दूध के छींटे मारें, तो  घर में बीमारी का प्रकोप कम होगा। 
2-प्रत्येक गुरुवार को तुलसी के पौधें को थोडा - सा दूध चढाने से घर में लक्ष्मी का स्थायी वास होता है। 
3-प्रतिदिन संवेरे पानी में थोडा - सा नमक मिलाकर घर में पोंछा करें, मानसिक शांति मिलेगी। 
4-प्रतिदिन सवेरे थोडा - सा दूध और पानी मिलाकर मुखय द्वार के दोनों ओर डाले, सुख - शांति मिलेगी। 
5-मुखय द्वार के परदे के नीचे कुछ घुंघरु बांध दे, इसके संगीत से घर में प्रसन्नता का वातावरण बनेगा। 
6-प्रतिदिन शाम को पीपल के पेड को थोडा - सा दूध - पानी मिलाकर चढाएं, दीपक जलाएं तथा मनोकामना के साथ पांच परिक्रमा करें। शीघ्र मनोकामना पूरी होगी। 
7-प्रतिदिन सवेरे पहली रोटी गाय को, दूसरी रोटी कुत्ते को एवं तीसरी रोटी छत पर पक्षियों को डालें। इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है तथा पितृदोष के कारण प्राप्त कष्ट समाप्त होते हैं 
8-किसी भी दिन शुभ - चौघडिये में पांच किलो साबूत नमक एक थैली में लाकर अपने घर में ऐसी जगह रखें जहां पानी नहीं लगे। यदि अपने आप पानी लग जाए तो इसे काम में नहीं ले, फेंक दे तथा नया नमक लाकर रख दें। यह घर के नकारात्मक प्रभाव को कम करता है एवं सकारात्मक प्रभाव को बढाता हैं


Compiled & Edited by - Ashutosh Joshi
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Wednesday, February 9, 2011

Spiritual & Medicinal Importance of trees and plants - PART- 3


पीपल - वृक्षराजः नमोस्तुते !

भारतीय संस्कृति में पीपल वृक्ष प्राचीन काल से भारतीय जनमानस में विशेष रुप से पूजनीय रहा है। ग्रंथों में पीपल को प्रत्यक्ष देवता की संज्ञा दी गई है। स्कन्दपुराण में वर्णित है कि अश्वथ ( पीपल) के मूल में विष्णु, तने मे केशव, शाखाओं में नारायण, निवास करते है। इसका आश्रय मानव के सभी पाप -ताप का शमन करता है। भगवान श्री कृष्ण कहते है - अश्वथ: सर्ववृक्षां -अर्थात समस्त वृक्षों में मैं पीपल का वृक्ष हूँ। स्वयं भगवान ने उससे अपनी उपमा देकर पीपल के देवत्व  और  दिव्यत्व को व्यक्त किया है।
शास्त्रों में पीपल के पूजन के समय निम्न श्लोक से प्रार्थना करना बताया गया है।

''ब्रह्म रुपेण, विष्णु रुपेण, शिव रुपेण,
वृक्षराजः नमोस्तुते।

अर्थात्‌- ब्रह्मा समान, विष्णु समान, महादेव शिव समान वृक्षराज आपको नमस्कार है।

शास्त्रों में वर्णित है कि -

अश्वथ: पूजितोयत्र पूजिताः सर्व देवताः अर्थात पीपल की सविधि पूजा - अर्चना करने से संपूर्ण देवता स्वयं ही पूजित हो जाते है। 

  1. पीपल वृक्ष की नित्य तीन बार परिक्रमा करने और जल चढाने पर दरिद्रता, दुख और दुर्भाग्य का विनाश होता है। पीपल के दर्शन - पूजन से दीर्घायु तथा समृद्धि प्राप्त होती है।
  2. पीपल का वृक्ष आध्यात्म की दृष्टि से उतना ही महत्वपूर्ण है जितना हमारा सांस लेना। पीपल को शास्त्रों में ''वृक्षराज'' कहा गया है जिसके अन्दर ३३ करोड देवी - देवताओं का वास होता है।
  3. अश्वथ-व्रत-अनुष्ठान से कन्या अखण्ड सौभाग्य पाती है।  शनिवार की अमावस्या को पीपल वृक्ष के पूजन और सात परिक्रमा करने से शनि की पीडा का शमन होता है।नवग्रहों में मुखय रुप से गुरु व शनि ग्रहों की अशुभता को दूर करने के लिये पीपल के वृक्षों को मंदिर में लगाना व जल द्वारा सींचना विशेष लाभदायक माना गया है। 
  4. शनि - दृष्टि से राहत पाने के लिये हर शनिवार पीपल के वृक्ष की जड में सरसों का तेल समर्पित करके प्रार्थना करना अचूक उपाय है। 
  5. अनुराधा ऩक्षत्र से युक्त शनिवार की अमावस्या में पूजा करने से बडे संकट से मुक्ति मिल जाती है। श्रावण मास में अमावस्या की समाप्ति पर पीपल वृक्ष के नीचे शनिवार के दिन हनुमान जी की पूजा करना संकट-मुक्ति का  अचूक उपाय है। 
  6. पीपल वृक्ष के नीचे मंत्र, जप और ध्यान करना  शुभ होता है। योगेश्वर श्रीकृष्ण इस दिव्य पीपल वृक्ष के नीचे बैठकर ही ध्यान में लीन  हुए थे। अशुभ गुरु के कुप्रभावों को दूर करने के लिये तथा गुरु की प्रसन्नता के लिये पीपल उगाना र्स्वोत्तम उपाय है। 
  7. पीपल का पेड घर में नहीं उगाना चाहिए,क्योकि पीपल कि जड़ें मकान कि नीव को कमजोर कर सकती है । बल्कि मंदिर के बगीचे में पीपल का पेड गुरुवार के दिन रोपकर , उसकी नियमित देखभाल करने से धन -वैभव व उच्च ज्ञान का लाभ जरुर मिलता है। 
  8. घर के बाहर पीपल का पेड पश्चिम दिशा में ही शुभ होता है।यदि कोई वृद्ध व्यक्ति ज्यादा बीमार है तो शमशान में पीपल का पेड रोपना चाहिए।
'विष्णुप्रिया'' तुलसी

हमारी भारतीय संस्कृति में विशेषकर हिंदू धर्म में तुलसी का महत्व सबसे अधिक है। तुलसी का पौधा दिन व रात दोनों समय लगातार ऑक्सीजन अर्थात्‌ प्राणवायु  प्रवाहित करता रहता है। तुलसी के पत्ते, बीज, तना, जड आदि सभी विभिन्न प्रकार से उपयोग में लायी जाती है। रोगो को दूर करने के लिए भी तुलसी के पौधे का उपयोग होता है।

तुलसी के पौधे को ''विष्णुप्रिया'' भी कहा जाता है। इसीलिये विष्णु जी को प्रसन्न करने के लिए तुलसी का पौधा घर में लगाया जाता है। जहां तुलसी का पौधा होता हैं वहॉ मच्छरों का प्रकोप कम हो जाता है। अतः मलेरिया के रोकथाम में भी तुलसी का विशेष महत्व है। 

ब्रह्म मुहूर्त में तुलसी जी के दर्द्गान करने से स्वर्ण दान का फल मिलता है । शास्त्रों के अनुसार तुलसी जी का पौधा यदि घर में लगा है, तो पौधे की नियमित पूजा अर्चना अवश्य करना चाहिए। वास्तु शास्त्र के अनुसार भवन के दक्षिण भाग में तुलसी का पौधा नहीं लगाना चाहिए।

प्रत्येक घर में तुलसी का पौधा होना हमेशा शुभ रहता है। तुलसी का पौधा हमेशा आक्सीजन (प्राणवायु) विसर्जित करता है अतः वातावरण में सदा सकारात्मक उर्जा प्रवाहित होती रहती है। 

तुलसी जी का पौधा घर के ब्रह्मस्थान पर (यदि खुला हो) लगाना अतिशुभ होता है। 

तुलसी के पौधे के प्रातः व सांयकाल पूजा - अर्चना करना आवश्यक होता है।
Compiled & Edited by - Ashutosh Joshi
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Tuesday, February 8, 2011

Spiritual & Medicinal Importance of trees and plants - PART- 2


वृक्षों के महत्व को ध्यान में रखकर , किसी भी शुभ दिन साल में दो बार वृक्षारोंपण पर विशेष ध्यान देना चाहिए। 

वृक्षों को हमारे घर में स्थित बगीचे में लगाने से विभिन्न प्रकार के वास्तुदोष दूर हो जाते है तथा व्यक्ति व परिवार निरोगी रह सकता है। किन्तु वास्तु के नियामों के अनुसार कौन सा वृक्ष लगाना चाहिए, या कौन सा नहीं, इसकी जानकारी होना आवश्यक है।

1-  घर में या आसपास दूधवाले (अर्क/द्गवेतार्क) कांटेदार वृक्ष नहीं होना चाहिए। 
2- नागकेसर, अशोक, नीम, मौलश्री या शाल के वृक्ष शुभ होते है। इसी प्रकार अनार, चमेली, गुलाब, केतकी, केसर, चंदन, महुआ, दालचीनी, नागर या नारियल के पौधे शुभ होते है। 
3- अष्टमी के दिन अशोक के पेड की पूजा की जाती है। 
4- वटसावित्री के दिन बरगद के वृक्ष की पूजा की जाती है। 
5- कार्तिक मास के दिन आवले के वृक्ष की पूजा की जाती है। आंवलों के वृक्ष में भगवान विष्णु का निवास स्थान माना गया है। 
6- तुलसी जी के पेड की पूजा नित्य - प्रतिदिन करना चाहिए।
7- ''ऋषि वराहमिहिर'' शास्त्र के अनुसार घर में या आसपास, औषधि - युक्त पेड/पौघें, सुगन्धित व सुन्दर फूल वाले पेड - पौधे लगाने से लक्ष्मीजी प्रसन्न होती है।
8- घर के आसपास के पेडो की छाया घर पर नहीं पडना चाहिए। 
9- घर में यदि पीपल या बिल्व वृक्ष स्वयं ऊग आये हो तो उन्हें काटना शुभ नहीं होता है। पीपल के वृक्ष पीपल के वृक्ष कि पूजा करके व प्रार्थना करके घर से जडसहित निकालकर मंदिर में स्थापित कर देना चाहिए। 
10- बिल्ववृक्ष के पेड को भी मंदिर में स्थापित कर देना चाहिए या फिर संभव हो तो उचित पूजा - अर्चना व देखभाल करते रहना चाहिए। 
11- दूध देने वाले पौधे घर के बाहर हो सकते है। यदि आंकडे का वृक्ष स्वयं ऊग आता है तो उसकी पूजा करने से लाभ होता है। 
12 - पूर्व - दक्षिण व दक्षिण - पश्चिम दिशाओ में पेडो को नहीं लगाना चाहिए। यजुर्वेद में कहा गया है कि पेडो को  नक्षत्र के अनुसार पूजन करना लाभदायक रहता है। जैसे गूलर, पीपल, नागचंपा, शमी, बड (बरगद) आदि वृक्ष नक्षत्रों के आराध्य वृक्ष है और इनकी नियम से उपासना करने से निश्चित लाभ मिलता है। 
13- शास्त्रों के अनुसार रत्नों द्वारा जिस तरह ग्रह व नक्षत्र की अशुभता को दूर किया जाता है उसी तरह वनस्पतियों के पूजन से भी इसी प्रकार ग्रह शांति की जा सकती है।
14- भील व गौड जाति के आदिवासी लोग अपनी रक्षा हेतु वृक्षों की जडो या तने को अपने साथ रखते है।
15- वनस्पतियों को प्रयोग से पहले प्रार्थना करके व सिद्ध करके ही धारण करना चाहिए।
16- ग्रहों के अनुसार उपयुक्त वनस्पति कि लकड़ी द्वारा हवन करके हवन का धुँआ पूरे घर में घुमाना चाहिये जिससे ग्रह की अशुभता कम होती है।
17- शनि देवता को प्रसन्न करने के लिये - पीपल, खजूर, आक, कीक, अमलतास, आदि पौधों को रोपकर व उनकी उचित देखभाल करना उत्तम माना गया है।
18- आम, पीपल, अर्जुन आदि पौधे कर्म क्षेत्र की बाधाएं दूर करते है। रोजगार में आने वाली परेशनियों को दूर करने के लिए इन पौधों  की लगाकर देखभाल करना चाहिए। 
19- घर में या आसपास हरियाली होना घर की सुख, समृद्धि व शांति हेतु अति आवश्यक है। हरियाली से बुध ग्रह प्रसन्न होते है अतः बुध ग्रह की प्रसन्नता हेतु गाय को हरी घास या हरी सब्जी खिलाना अति - शुभ होता है।

Writer&Editor -Ashutosh Joshi
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Friday, February 4, 2011

Spiritual & Medicinal Importance of trees and plants


हमारी भारतीय संस्कृति में वृक्षों की पूजा विभिन्न त्योंहारों व मुहुर्त में प्राचीनकाल से चली आ रही है। नव - ग्रहों की अशुभता को दूर करने के लिये भी उपयुक्त वृक्षों को जल देना, पूजा करना आदि हिन्दू धर्म में लाभदायक माना जाता है। वैसे भी वृक्ष प्रकृति का अभिन्न अंग है और प्रकृति से ही मानव जीवन विद्यमान है। पंचतत्वों (प्‌ृथ्वी, जल, आकाश, वायु व अग्नि) के अभाव में हम इस संसार में जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते । वृक्षों की कुछ मुखय प्रजातियों का संबंध शास्त्रों में वर्णित विभिन्न आध्यात्मिक कथाओं में मिलता रहा है तथा प्रदृषण दूर करने में भी इन्हीं प्रजातियों के विशेष गुणों का महत्व रहा है। इसके अलावा वृक्षों की अनेक प्रजातियाँ कई असाध्य रोगो को दूर करने में सक्षम होती है। वृक्षों में उनकी जडों, पत्रों, तनों, फलों आदि सभी का अपना गुण होता है। जिसका उपयोग मानव कई वर्षो से करता रहा है। प्राचीन काल में वृक्षों के कंद - मूल खाकर ही महान्‌ तपस्वियों ने प्रकृति की गोद में रहकर साधना की है। आज यह हमारा दुर्भाग्य है कि हम वृक्षों को काटकर, प्रकृति को नष्ट कर रहे है। प्रकृति के साथ अनावश्यक खिलवाड करके हम पर्यावरण के असंतुलन को बढा रहे है। जिसका भविष्य में खतरनाक परिणाम आने वाला है। इसके अलावा दिन  - प्रतिदिन प्रदूषण बढता जा रहा है। सडकों पर हजारों नये वाहन रोज बढ जाते है और हम सब आंखे मूंदकर यह अनर्थ होता देख रहे है। मनुष्य के निजी स्वार्थ की महत्ता इतनी अधिक है कि भविष्य में प्रकृति के असंतुलन का भयावह प्रकोप किसी को भी महसूस नहीं हो रहा है


आराध्य वृक्ष एवं पौधे
ग्रह                                  उपयुक्त वृक्ष
सूर्य                                    मंदार
चन्द्र                                   पलाश
मंगल                                 खेर
बुध                                    अपामार्ग
गुरु                                    पीपल
शुक्र                                   गूलर
शनि                                  शमी, पीपल
राहु                                    दूर्वा/चन्दन

वृक्षों की पूजा अर्चना व उनसे लाभ

खेर का पेड -                          मानसिक शांति/धैर्य
आंवला का पेड -                     वंश वृद्धि/सौभाग्य वृद्धि
जामुन का पेड -                     शारीरिक सुख/रोग प्रतिरोधक क्षमता की वृद्धि
कदंम का पेड -                       बाधाएं दूर/प्रगति
आम/अशोक   -                      मानसिक बल/स्वास्थय
सुपारी का पेड -                      गृह कलह से शांति/पारिवारिक प्रेम
बिल्व पत्री का पेड -                 समद्धि में वृद्धि।
नीम का पेड -                          व्यक्तित्व के प्रभाव में वृद्धि
पलाश का पेड -                       संतान सुख में वृद्धि व नवीन कार्य में सफलता
बाँस का वृक्ष -                         विवेक का विकास

By - Ashutosh Joshi
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Tuesday, February 1, 2011

Gomad (Zircon) - A Stone for Rahu planet


Zircon -  (गोमेद)

हिन्दी नाम - गोमेद
अंग्रेजी नाम - Zircon
उपयुक्त ग्रह-  राहु
उपयुक्त दिन- शनिवार
उपयुक्त अंगुली -  मध्यमा
उपयुक्त धातु- पंचधातु और चांदी
उपयुक्त वजन- ज्योतिष सलाह के अनुसार
उपयुक्त मंत्र-         ऊँ रां राहुवे नमः


1- गोमेद मुखय रुप से राहु ग्रह का रत्न है। राहु ग्रह को शुभ बनाने के लिये चांदी की अंगुठी में गोमेद मध्यमा उंगली में पहना जाता है।

2- गोमेद हरे, काले रंग का सफेद धारियों वाला रत्न होता है। किन्तु सफेद या भूरे रंग का  (सूखे पत्ते के रंग के जैसा) भी मिलता है।

3- गोमेद मुखय रुप से गहरे, भूरे व आसमानी रंग का अपारर्दशी रत्न होता है। शुद्ध व श्रेष्ठ गोमेद चमकदार , सुन्दर और चिकना होता है।



4- बेरंगी, धब्बेवाला, लाल रंग लिये हुए जालों वाला सफेद बिंदु वाला या दो रंग का गोमेद अशुभ होता है।

5- गोमेद के साथ माणिक, मूंगा, मोती और पीला पुखराज कभी धारण नहीं करना चाहिए।

6- गोमेद की भस्म बल व बुद्धि बढाती हैं। मिरगी, बवासीर, और वायु प्रकोप में गोमेद की भस्म दूध में लेने से लाभ होता है।

7- रत्नों से रोग उपचार करने के पहले उचित जानकार वैद्य या ज्योतिष ये सलाह ले लेना चाहिए.



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Cat's Eye - Precious Stone for Ketu Planet


Cat's Eye - लहसुनिया/वैदुर्य

हिन्दी नाम - लहसुनिया/वैदुर्य
अंग्रेजी नाम - Cat's Eye
उपयुक्त ग्रह  - केतु
उपयुक्त दिन - शनिवार
उपयुक्त अंगुली- मध्यमा
उपयुक्त धातु - पंचधातु और चांदी
उपयुक्त वजन - ज्योतिष सलाह के अनुसार
उपयुक्त मंत्र -  ऊँ कें केतवे नमः


1-लहसुनिया मुखय रुप से केतु ग्रह का रत्न है। केतु ग्रह को शुभ बनाने के लिये चांदी की अंगुठी में लहसुनिया मध्यमा उंगली में पहना जाता है।

2- लहसुनिया मुखय रुप से हरे, काले रंग का सफेद धारियों वाला रत्न होता है। किन्तु सफेद या भूरे रंग का  (सूखे पत्ते के रंग के जैसा) लहसुनिया भी मिलता है।

3- लहसुनिया को यदि अंधेर में रख दिया जाए तो इसमें से हल्का प्रकाश निकलता दिखाई देता है।

4- बहुत अधिक सफेद धारियों वाला लहसुनिया अशुभ होता है। अच्छे रत्न में एक या दो सफेद धारी ही पायी जाती है। सफेद धब्बों वाला, खुरदुरा, रत्न नहीं लेना चाहिए।

5- लहसुनिया के साथ माणिक, मूंगा, मोती व पीला पुखराज नहीं पहनना चाहिए।

6- घी में लहसुनिया मिलाकर खाने से पौरुष शक्ति बढती है। लहसुनिया धारण करने अजीर्ण, मधुमेह आदि रोगों में लाभ मिलता है।

7- पीतल व लहसुनिया की भस्म को खाने से आंखों के रोग दूर हो जाते है।

8- रत्नों से रोग उपचार करने के पहले उचित जानकार वैद्य या ज्योतिष ये सलाह ले लेना चाहिए.

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Blue Sapphire (Neelam) Precious Stone for Shani


नीलम ( Blue Sapphire )

हिन्दी नाम - नीलम 
अंग्रेजी नाम - Blue Sapphire  
उपयुक्त ग्रह -         शनि 
उपयुक्त दिन - शनिवार 
उपयुक्त अंगुली -      कनिष्का 
उपयुक्त रंग-         नीला 
उपयुक्त धातु-      पंचधातु और चांदी 
उपयुक्त वजन - ज्योतिष सलाह के अनुसार 
उपयुक्त मंत्र -      ऊँ शं शनेश्चराय नमः


१. नीलम शनि ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है तथा अन्य रत्नों की अपेक्षा इसका प्रभाव तुरंत होता है।
२. नीलम पहनने के बाद यदि चौबीस घंटे के अंदर कुछ अशुभ  घटना हो जाये, तो रत्न को तुरंत उतार देना चाहिए। 
३. यदि शनि ग्रह  जन्म पत्रिका में शुभ स्थिति में हो, तो नीलम लाभदायक रहता है। 
४. नीलम एक खनिज रत्न हैं तथा पत्थर की कुरुंदम श्रेणी का रत्न माना जाता है। 
५. असली नीलम दिखने में सुंदर, पारदर्शी नीला रंग लिये होता है। नीलम को सफेद कपडे पर रखने के बाद उसके आस - पास नीले रंग की किरणें फैल जाती है। 

६. इसके अलावा दूध में या पानी में रखने पर भी नीले रंग की किरणें असली नीलम में दिखाई देती है। 
७. धब्बेदार, दरार वाला, गड्‌ढे वाला, धुंधला, बहुत अधिक जालों वाला नीलम अशुभ  होता है।
८. यदि नीलम पहना हैं तो माणिक, पुखराज, मोती या मूंगा नही ंपहनना चाहिए। 
९. असली नीलम एक बहुमूल्य रत्न हैं तथा इसकी कीमत अन्य रत्नों की अपेक्षा अधिक होती हैं। अतः यदि नीलम नहीं खरीद सकतें हों, तो नीलम का उपरत्न ''नीली '' या कटैला (Amethyst) या लाजावर्त (Lapis Lazuli) को भी पहना जा सकता है। 
१०. नीलम शनि ग्रह को शुभ करने के अलावा कई रोगो में लाभदायक होता है। जैसे :- कफ, पित्त, वायु रोग, आंखों के रोग, खांसी, रक्त विकार आदि रोगों में नीलम की भस्म या पानी का प्रयोग किया जाता है। (रत्नों से रोग उपचार करने के पहले उचित जानकार वैद्य या ज्योतिष ये सलाह ले लेना चाहिए)

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