Thursday, January 27, 2011

Charge your main Entrance for better prosperity


प्रवेश द्वार की वास्तु



घर का निर्माण करवाते समय वास्तु नियमों का पालन न केवल घर के  कमरों या किचन के लिये किया जाता है, बल्कि वास्तु नियम जमीन खरीदने के समय पर से ही ध्यान देने योग्य होते है। शास्त्रों के अनुसार पूर्ण वास्तु सम्मत मकान उसमें रहने वाले  परिवार के लिये अत्यन्त शुभ होता है। तथा पूरे मकान में सकारात्मक उर्जा का प्रवाह बना रहता है। (संदर्भ हेतु यहा मकान से हमारा तात्पर्य भवन, फैक्ट्री, कारखाना, गोदाम, ऑफिस, मंदिर, अस्पताल आदि से भी है।)

प्राचीन वास्तुकारों ने मकान की आकृति तथा मकान में प्रवेश हेतू बनाये गये मुखय द्वार की वास्तु अनुरुप व्याखया निम्न प्रकार से की है।

१. प्रवेश द्वार अत्यन्त मजबूत एवं सुंदर होना चाहिये।
२. प्रवेश द्वारा बनवाते समय कितना स्थान छोडना चाहिये, किस दिद्गाा में पल्ला बंद या खुलना चाहिये इसका विशेष ध्यान रखना चाहिये।
३. प्रवेश द्वार खोलते या बंद करते समय किसी प्रकार की आवाज या अडचन नहीं होना चाहिये।
४. प्रवेश द्वार को मांगलिक प्रतीक चिन्हों जैसे :- गणेद्गा जी चित्र, स्वस्तिक, ऊँ, शुभ - लाभ, कलश चित्र आदि से सजाए रखना चाहिये।
५. घर में यदि मांगलिक कार्य हो तो प्रवेश द्वार को विशेष रुप से विभिन्न प्रकार की पुष्प मालाओं, आम के पत्ते की मालाओं से सजाना चाहिये।
६. प्रवेश द्वार की  प्रतिदिन साफ - सफाई व उचित रोशनी का प्रबंध होना चाहिये।
७. सामान्यतः मकान में एक ही मुखय द्वार शुभ माना गया है। यदि एक से अधिक द्वार हो, तो उत्तर या उत्तर - पश्चिम द्वार का प्रयोग करना चाहिये।
८. पूर्वमुखी भवन का प्रवेश द्वार पूर्व या उत्तर या उत्तर - पूर्व (ईशान कोण) में होना चाहिये।
९. मुखय द्वार का आकार घर के अन्य दरवाजों से बडा होना चाहिये।
१०. प्रवेश द्वार कभी  भी मध्य में नही होना चाहिये।
११. मकान के प्रवेश द्वार के ठीक सामने पेड, बिजली का खंभा, अस्पताल या मंदिर होना अशुभ माना गया है। इसके अलावा प्रवेश द्वार के ठीक सामने कूडा - कचरा इकट्‌ठा बिल्कुल नही होना चाहिये।
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Article by -Ashutosh Joshi (Vastu Consultant)

Know about our inner powers


हमारे भीतर की शक्तियाँ

हमारे शरीर में ईश्वर प्रदत्त मुखय रुप से ६ प्रकार की शक्तियाँ होती है। मनुष्य इन शक्तियों का उचित प्रयोग करके जीवन सार्थक कर सकता है। किन्तु अनुचित प्रयोग, मनुष्य को पाप के गर्त में ले जाता है। 

१. परा शक्ति - सब शक्तियों का मूल आधार 
२. ज्ञान शक्ति - इस शक्ति से मनुष्य की मन, व बुद्धि विकसित होती है। किन्तु साथ् में अहंकार बढ  सकता है। ज्ञान शक्ति दूरदृष्टि, अंर्तदृष्टि बढाती है। 
३. इच्छा शक्ति - यह शक्ति मनुष्य के मस्तिष्क के स्नायुतंत्र को प्रभावित करके कार्य की ओर प्रेरित करती है। 
४. क्रिया शक्ति - इच्छा शक्ति को प्रबल करके हम क्रिया शक्ति को प्रभावशाली बनाते है। 
५. कुण्डलिनी शक्ति - यह मनुष्य के भीतर सुषुप्तावस्था में रहती है। योगी पुरुष तपस्या से विधिपूर्वक इस शक्ति के तेज को जाग्रत करके सिद्ध पुरुष बन जाते है। कुण्डलिनी शक्ति से मन के संचालन में नियंत्रण बढता है। 
६. मातृका शक्ति - यह शक्ति अक्षर, विद्या, बिजाक्षर, शब्द व वाक्यों की शक्ति है। मंत्रों का प्रभाव इसी मातृका शक्ति के कारण होता है। 

प्रत्येक मनुष्य को अपनी जीवनशैली मे इन शक्तियों के बीच अपने सन्तुलन को बनाये रखते हुए कार्य करना चाहिये।

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Pranayam- A deep breathing exercise


प्राणायाम 

1- ''प्राणायाम'' हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढाता है। प्राणयाम हमारे मानसिक विकारों को दूर करके आध्यात्मिक प्रवृति की ओर प्रेरित करता है।
2- ''प्राणायाम'' शान्त हवादार स्थान पर आसन बिछाकर, उत्तर या पूर्व दिशा की ओर मुख करके करना चाहिये।
3- ''प्राणायाम'' किसी योग्य विशेषज्ञ के साथ सीखकर ही करना चाहिये। गलत विधि अपनाने से नुकसान भी हो सकता है।
4- ''प्राणायाम'' शुरुआत में पांच मिनिट तक करके धीरे - धीरे १५ मिनिट तक ले जा सकते है।
5- ''प्राणायाम'' के लिये बैठते समय रीढ की हड्‌डी सीधी हो तथा पूरे शरीर में किसी प्रकार का तनाव या खिचाव नहीं होना चाहिये।
6- ''प्राणायाम'' करते समय वस्त्र ढीलें व सुविधाजनक पहनने चाहिये।

प्राणायाम विधि 

7- प्राणयाम शुरु करने से पहले यह ध्यान रहे कि दो - ढाई घंटे तक कुछ भी खायां पिया न हो।
8- दोनों नेत्रों को बंद करके, श्वास - प्रक्रिया पर ध्यान केन्द्रित करें।
9- अब धीरे - धीरे श्वास अंदर ले। श्वास अंदर लेते समय हम अपने इष्ट देव का स्मरण करते रहे तो ध्यान व योग बेहतर परिणाम देंगे।
10- श्वास अंदर लेने के पश्च्यात कुछ समय तक (चाहें तो पूरी प्रक्रिया में गिनती करते रहें) श्वास को रोंके रहे। (समय प्रबंध हेतू श्वास अंदर लेते समय १ से ४ तक गिनती करें, रोकते समय १ से ८ तक गिनती करें व छोडते समय १ से १६ तक गिनती करें)
12- तत्‌पश्च्यात बहुत धीरें - धीरें श्वास को छोडे। यह अभ्यास सतत्‌ करें।
13- इस प्रकार '' प्राणयाम'' की गिनती व समय धीरे - धीरे बढाते जायें।
14- '' प्राणयाम'' युवावस्था में ३० से ४० बार, प्रौढ अवस्था में ४०  से ५० बार तथा वृद्धावस्था में अपनी क्षमता के अनुसार करना चाहिये।
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