Tuesday, April 17, 2012

लालकिताब के उपाय -BY ASTRO KAUSHAL PANDEY ON FACE BOOK

REQUEST KINDLY READ AND COMMENT

लालकिताब द्वारा बतलाये हुये उपायों को करते समय दो बातों को ध्यान रखें - 


1. प्रत्येक उपाय निर्धारित दिन या किसी भी दिन सूर्योदय से सूर्यास्त के बीच ही करें।


2. कोई भी उपाय कम से कम 40दिन और अधिक से अधिक 43 दिन तक ही करें। 


लालकिताब के अनुसार किसी भी ग्रह की अद्गाुभता को दूर करने के लिये यहॉं हम कुछ विद्गोष अनुभूत उपायों की चर्चा करते हैं जो सामान्य रूप में किसी भी स्थिति में किये जा सकते हैं। इन उपायों को करके व्यक्ति सम्बन्धित ग्रह की अशुभता को दूर कर कष्टों से मुक्ति पा सकता है।

ये उपाय निम्नानुसार हैं-

सूर्यः बहते पानी में गुड़ प्रवाहित करें किसी भी द्गाशुभ कार्य के आरंम्भ में मुंह अवद्गय मीठा करें, कार्य अतिद्गाशुभता के साथ संपन्न होगा। गेहूं गुड़, तांबा, लाल कपड़ा धर्म स्थान में दान दें । हरिवंद्गा पुराण का पाठ करें। द्गाशुभ मुहूर्त में माणिक्य रत्न धारण करें।

चंद्रः दूध या पानी से भरा चांदी या तांबे का बर्तन सिरहाने रखें, सुबह उसे बबूल के पेड़ की जड़ में चढ़ा दें। भैरव मंदिर में कम से कम 1.25 लीटर दूध दान दें तथा दूध कभी न बेचें। चांदी का चौकोर टुकड़ा नदी में प्रवाहित करें तथा चावल व चांदी अपने पास रखें। कुल देवी या देवता की उपासना करें। मोती रत्न धारण करें।

मंगलः- हनुमानजी के मंदिर में जाकर बूंदी या लड्डू का प्रसाद चढ़ाकर वितरण करें, साथही हनुमान चालीसा का पाठ करें। पवित्र प्रवाह वाले जल में रेवड़ी-बतासे प्रवाहित करें। तंदूर वाली मीठी रोटी, मसूर की दाल और मृगछाला मंदिर या धर्मस्थान में दें। विधि-विधान से मूंगा रत्न धारण करें। मंगल नेक (अशुभ ) हो तो मिठाई या मीठा भोजन दान दें या धर्म स्थान में बांटें।

बुध : फोका कद्दू व बकरी धर्म स्थान में दान दें। बारह साल से छोटी कन्याओं का पूजन करें। नियमितरूप से फिटकरी से दॉंत साफ करें। तांबें के पत्तर(चादर) में छेद करके नदी में प्रवाहित करें। आग में कौड़ियां जलाकर नदी में प्रवाहित करें।

गुरु : अक्षय वृक्षारोपण करें अथवा पीपल का वृक्ष लगायें तथा उसमें जल चढायें। केसर का सेवन करें। उसे नाभि तथा जीभ पर लगायें। नियमित पूजा-अर्चना करें । विष्णुसहस्रनाम का पाठ तथा हरिवंद्गा पुराण का श्रवण करें। भैरव मंदिर में द्गाराब चढ़ायें। चने की दाल, हल्दी, स्वर्ण तथा वेद ग्रंन्थों का दान धर्म स्थान में दें।

शुक्र :- सफेद गौ दान करें तथा उसे ज्वार या चने का चारा खिलायें। लक्ष्मीजी का श्रद्धापूर्वक पूजन करें, नैवेद्य चढ़ा कर, आरती करें तथा मिश्री का प्रसाद बॉंटें। विधवाओं की सहायता करें, उनसे धन न ले। गरीबों को सूखी सब्जी व रोटी खिलायें तथा यथाद्गाक्ति धन, वस्त्र दान दें। दूध, दही, घी, रूई, कपूर तथा चरी का धर्म स्थान या मंदिर में दान दें।

शनि : कांसे के बर्तन में तेल डालकर उस में अपनी छाया देख कर तेल का दान दे। गेहूं, उड़द, चना, जौ व तिल - इन पॉंचों को चक्की में पिसवाकर गोलियां बनायें तथा मछलियों को खिलायें। भगवान शिव की पूजा करें तथा शनि महिमा स्तोत्र या शनि चालीसा का पाठ सुनायें। आंखों का सुरमा जमीन में गाड़ें या दान करें। श्रद्धापूर्वक उड़द, चना, चकला-बेलन, चिमटा, तिल का तेल व द्यद्गाराब का दान करें।

राहु :- खोटा सिक्का जल में प्रवाहित करें। मूली के पत्ते निकालकर, मूली का दान दें। गौ मूत्र से दांत साफ करें। जल में श्रीफल या कोयला प्रवाहित करें। रोग मुक्ति के लिये यव को गौ-मूत्र से धोकर डिब्बी में डालकर अपने पास रखें।



केतु :- गणेद्गाजी का स्मरण व पूजन करें। देव मंदिर या भैरव मंदिर में काली पताका चढ़ायें। सतनजे की रोटी कुत्ते को खिलायें। तिल व चितकबरे कम्बल का दान मंदिर में करें या गरीबों में दें। कपिला गाय का दान करें। उपर्युक्त उपायों में से सामर्थ्य के अनुसार एक या एक से अधिक उपायों को करने पर व्यक्ति सम्बन्धित ग्रह की परेद्गाानी से बच सकता है।



Wednesday, April 11, 2012

कब ऋण लेना सही

REQUEST KINDLY READ AND COMMENT

BY DR. P.P.S. RANA- AN ILLUSTRIOUS  ASTROLOGER -DEHRADUN



कब ऋण लेना सही


मकान, गाड़ी एवं शिक्षा के लिये अनेक सरकारी एवं प्राइवेट बैंक ऋण देने के लिये
अपनी ओर आकर्षित कर रहे हैं | जनता को भी आवश्यकता है कि उसे कोई आर्थिक
सहायता मिल जाये जिससे वह अपने लिये सुनिश्चित आवास, नई कार एवं देश-विदेश
में अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्रदान करा सकें |

इसलिए लोग बैंकों से लोन लेते हैं |शीघ्र कर्ज से मुक्ति मिल सके इसके लिये ऋण लेते समय
निम्नलिखित बातों का विचार करना चाहिये|
  1. सोमवार व मंगलवार को छोड़कर ऋण लेने के लिये अन्य सब वार शुभ हैं |
  2. संक्रान्ति, अमावस्या, द्वितीया, सप्तमी एवं द्वादशी लिपियों को छोड़कर अन्य तिथियों में ऋण लेना शुभ है|
  3. कृतिका, मृगशिरा, पुनर्वसु, हस्त, चित्रा, स्वाती, विशाखा तीनों उत्तरा एवं पंचक नक्षत्रों में कर्ज नहीं लेना चाहिये| शेष नक्षत्र ग्राहय हैं |
  4. वृद्धि, विक्रंभ, व्यतिपात एवं वैधृति योग में कर्ज नहीं लेना चाहिये |
  5. मंगलवार, संक्रान्ति दिन,वृद्धियोग, हस्त नक्षत्र युक्त रविवार को ऋण लें तो कभी मुक्त न हो|
  6. कृतिका, रोहिणी, आर्द्रा, आश्लेषा, उत्तरा, विशाखा, ज्येष्ठा मूल नक्षत्रों में भद्रा, व्यतिपा |

रोग मुक्ति के उपाय

REQUEST KINDLY READ AND COMMENT

BY AN ILLUSTRIOUS ASTROLOGER - DR. P.P.S.RANA, DEHRADUN



रोग मुक्ति के उपाय

  1. घर के प्रत्येक सदस्य और अतिथियों की संख्या गिनकर उसमे जोड़कर कुल संख्या के अनुसार मीठी रोटी प्रत्येक माह एक बार कुत्तों या कोओं को खिलाये !
  2. पका हुआ फोफा कद्दू जो अन्दर से खोखला हो , धर्म स्थल (मंदिर) में तीन या छः माह में एक बार अवश्य रखे !
  3. रात्रि में रोगी के पास ताम्बे के दो सिक्के रखकर प्रातः किसी भंगी को चालीस तेतालीस दिन तक देते रहे !
  4. भोजन जहाँ बनाएं वहां ही खाएं तो राहू के कुप्रभाव से बच पायेंगे व मंगल राहु का शुभ प्रभाव मिलेगा !
  5. रात्रि में थोडा जल किसी बर्तन में रखकर सोयें और अगले दिन ऐसी जगह डाल दें, तुलसा में डाल दें, इसको अपने प्रयोग में नहीं लाना चाहिए !
  6. एक गोमती चक्र को चांदी में पिरोकर पलंग के सिरहाने बाँधने से रोग घटना शुरू हो जाता है!
  7. मंगलवार-रविवार को फिटकरी का टुकड़ा बच्चे के सिरहाने रख दें, इससे बच्चे को नजर नहीं लगेगी !
  8. अष्टधातु का कडा बच्चे को पहना दें, रोग ठीक होता है!

Thursday, April 5, 2012

महावीर जयन्ती- (05 अप्रेल,2012 को )

REQUEST KINDLY READ AND COMMENT


AN ARTICLE ON FACE BOOK 
BY - ASTRO VASTU ADVISOR


आज सभी स्थानों पर भगवान वर्धमान महावीर का जन्मदिन ..आज महावीर जयन्ती (05 अप्रेल,2012 को )के रुप मे मनाया जा रहा हें . 

मानव समाज को अन्धकार से प्रकाश की ओर लाने वाले महापुरुष भगवान महावीर का जन्म ईसा से 599 वर्ष पूर्व चैत्र मास के शुक्ल पक्ष में त्रयोदशी तिथि को बिहार में लिच्छिवी वंश के महाराज श्री सिद्धार्थ और माता त्रिशिला देवी के यहां हुआ था. जिस कारण इस दिन जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयन्ती के रूप में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति पूर्वक मनाते हैं. बचपन में भगवान महावीर का नाम वर्धमान था. जैन धर्मियों का मानना है कि वर्धमान ने कठोर तप द्वारा अपनी समस्त इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर जिन अर्थात विजेता कहलाए. उनका यह कठिन तप पराक्रम के सामान माना गया, जिस कारण उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए.

तीस वर्ष की उम्र में इन्होंने घर-बार छोड़ दिया और कठोर तपस्या द्वारा कैवल्य ज्ञान प्राप्त किया. महावीर ने पार्श्वनाथ के आरंभ किए तत्वज्ञान को परिभाषित करके जैन दर्शन को स्थायी आधार दिया. महावीर स्वामी जी ने श्रद्धा एवं विश्वास द्वारा जैन धर्म की पुन: प्रतिष्ठा स्थापित की तथा आधुनिक काल में जैन धर्म की व्यापकता और उसके दर्शन का श्रेय महावीर स्वामी जी को जाता है इन्हें अनेक नामों से पुकारा जाता हैं- अर्हत, जिन, निर्ग्रथ, महावीर, अतिवीर इत्यादि .सभी जेन धर्मव्लाबी इस पवन पार्क को बड़े हर्षोल्लास के साथ मन रहे हें..
महावीर ने कहा था–

जियो और जीने दो–

-स्वस्ति श्री क्षुल्लक अतुल्य सागर—

महावीर ने केवल अहिंसा की बात नहीं की, बल्कि उसे अपने आचरण में भी उतारा। उनका कहना था, आत्म कल्याण के लिए राग-द्वेष, ईर्ष्या, आकांक्षा की भावनाओं का परित्याग करना होगा, तभी हिंसा की आग से हम बच सकते हैं।

जब इस धरती पर चारों ओर हिंसा का तांडव मचा हुआ था। चारों ओर राग-द्वेष की भावना बढ रही थी। क्रोध, माया, लोभ हर तरफ पसरा हुआ था। शिष्टाचार समाप्त होता जा रहा था, तब भारत के वैशाली राज्य में अहिंसा के अग्रदूत भगवान महावीर का जन्म हुआ। बचपन से ही उन्होंने अपने आचरण में अहिंसा को अपनाया था। जियो और जीने दो तथा अहिंसा परमो धर्म, इन दो मुख्य उपदेश के आधार पर उन्होंने मनुष्य के आत्म कल्याण की राह बताई।
भगवान महावीर ने अहिंसा को ही सबसे बडा धर्म बताते हुए संदेश दिया था कि समस्त आत्माएं एक समान हैं। कोई बडा-छोटा नहीं हैं। सब अपने कर्म से बडे-छोटे बनते हैं। सब अपनी-अपनी क्षमता और मर्यादाओं में रह कर अहिंसा और धर्म की परिपालन कर सकते हैं। उन्होंने जोर दिया था कि हमें मन में दूसरों के प्रति क्षमा भाव, वात्सल्य व करूणा का भाव धारण करना होगा। तभी हमें आत्मिक शांति मिल सकती हैं। एक बार कुमार वर्धमान की मां त्रिशला दर्पण के सामने अपना श्रृंगार कर रही थी। इतने में कुमार वहां आ गए। मां त्रिशला ने पूछा कि उनके बालों में गजरा कैसा लग रहा हैं। कुमार वर्धमान बोले, मां, से फूल भी किसी वृक्ष से उत्पन्न हुए हैं। उस वृक्ष की आत्मा कितनी दुखी हुई होगी। आपने अपनी सुंदरता के लिए इस कली को तुडवा लिया। राजा श्रेणिक ने बेटे से भगवान महावीर ने एक बार कहा था कि चिंता उसे होती हैं, जो पिछली बात को याद करता हैं। जो वर्तमान में संतोषी हैं, वह हमेशा चिंता मुक्त रहता हैं। उसके चेहरे पर सदैव शांति और मुस्कान रहती हैं। ये शांति और प्रसन्नता वापस तभी आ सकती हैं, जब हम प्रत्येक प्राणी में अपने आफा देखेंगे।
मैत्री भाव जगत में मेरा, सब जीवों से नित्य रहे, दिन-दुखी जीवों पर मेरे उस से करूणा स्त्रोत बहे। यही भगवान महावीर का संदेश और सिद्धांत था। इसके द्वारा उन्होंने अपने आपको तीर्थंकर बना दिया।

महावीर जयंती पर्व -----
तप से जीवन पर विजय प्राप्त करने का पर्व महावीर जयंती के रूप में मनया जाता है. श्रद्धालु मंदिरों में भगवान महावीर की मूर्ति को विशेष स्नान कराते हैं, जो कि अभिषेक कहलाता है. तदुपरांत भगवान की मूर्ति को सिंहासन या रथ पर बिठा कर उत्साह और हर्षोउल्लास पूर्वक जुलूस निकालते हैं, जिसमें बड़ी संख्यां में जैन धर्मावलम्बी शामिल होते हैं. इस सुअवसर पर जैन श्रद्धालु भगवान को फल, चावल, जल, सुगन्धित द्रव्य आदि वस्तुएं अर्पित करते.

चौबीस ‍तीर्थंकरों के अंतिम तीर्थंकर महावीर के जन्मदिवस प्रति वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी को मनाया जाता है. महावीर जयंती के अवसर पर जैन धर्मावलंबी प्रात: काल प्रभातफेरी निकालते हैं तथा भव्य जुलूस के साथ पालकी यात्रा का आयोजन किया जाता है. इसके पश्चात महावीर स्वामी का अभिषेक किया जाता है तथा शिखरों पर ध्वजा चढ़ाई जाती है. जैन समाज द्वारा दिन भर अनेक धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है महावीर का जन्मोत्सव संपूर्ण भारत में धूमधाम से मनाया जाता है. 

वर्धमान महावीर जी को 42 वर्ष की अवस्था में जूभिका नामक गांव में ऋजूकूला नदी के किनारे घोर त्पस्या करते हुए जब बहुत समय व्यतीत हुआ तब उन्हें मनोहर वन में साल वृक्ष के नीचे वैशाख शुक्ल दशमी की पावन तिथि के दिन उन्हें कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई जिसके पश्चात वह महावीर स्वामी बने. 

महावीर जी के समय समाज व धर्म की स्थिति में अनेक विषमताएं मौजूद थी धर्म अनेक आडंबरों से घिरा हुआ था और समाज में अत्याचारों का बोलबाल था अत: ऐसी स्थिति में भगवान महावीर जी अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया उन्होंने देश भर में भर्मण करके लोगों के मध्य व्याप्त कुरूतियों एवं अंधविश्वासों को दूर करने का प्रयास किया उन्होंने धर्म की वास्तविकता को स्थापित किया सत्य एवं अहिंसा पर बल दिया. 

महावीर जीवन परिचय ----
भगवान महवीर का जन्म वैशाली के एक क्षत्रिय परिवार में राजकुमार के रुप में चैत्र शुक्लपक्ष त्रयोदशी को बसोकुंड में हुआ था. इनके बचपन का नाम वर्धमान था यह लिच्छवी कुल के राजा सिद्दार्थ और रानी त्रिशला के पुत्र थे. संसार को ज्ञान का संदेश देने वाले भगवान महावीर जी ने अपने कार्यों सभी का कल्याण करते रहे.

जैन श्रद्धालु इस पावन दिवस को महावीर जयन्ती के रूप में परंपरागत तरीके से हर्षोल्लास और श्रद्धाभक्ति पूर्वक मनाते आ रहे हैं. जैन धर्म के धर्मियों का मानना है कि वर्धमान जी ने घोर तपस्या द्वारा अपनी इन्द्रियों पर विजय प्राप्त कर ली थी जिस कारण वह विजेता और उनको महावीर कहा गया और उनके अनुयायी जैन कहलाए. 

महावीर के दर्शन का सार----

भगवान महावीर द्वारा वस्तु के स्वरूप की विराटता का साक्षात्कार उनके लिखे आलेखों से हो जाता है। इन अनेक गुण, अनंत धर्म (पहलू), उत्पाद-व्यय-ध्रौव्य युक्त, स्वतंत्र, स्वावलंबी, विराट जड़ चेतन वस्तुओं के साथ हमारा सलूक क्या हो, यह महावीर की बुनियादी चिंता और उनके दर्शन का सार है। 

महावीर ने वस्तु मात्र को उपादान और निमित्त की भूमिका देकर इस सलूक का निरूपण किया है। वे कहते हैं, वस्तु स्वयं अपने विकास या ह्रास का मूल कारण या आधार सामग्री या उपादान है। उपादान कारण खुद कार्य में बदलता है। घड़ा बनने में मिट्टी उपादान है। वह मिट्टी ही है जो घड़े में परिणत होती है। 

उपादान स्वद्रव्य है। अंतरंग है। खुद की ताकत है। वह वस्तु की सहज शक्ति है। निमित्त परद्रव्य है। बहिरंग है। पर- संयोग और दूसरे की ताकत है। निमित्त कुम्हार की तरह सहकारी कारण है। निमित्त के बिना काम नहीं होता। लेकिन अकेले उसकी बरजोरी से भी काम नहीं होता। हर वस्तु खुद अपना उपादान है। सबको अपने पाँवों से चलना है। कोई किसी दूसरे के लिए नहीं चल सकता। 

बेटे के लिए पिता या नौकर या कोई ठेकेदार पढ़ाई नहीं कर सकता। पढ़ना तो बेटे को ही पड़ेगा। यानी हमारा मददगार कितना ही अपना, छोटा या बड़ा क्यों न हो वह हमारे लिए उपादान नहीं बन सकता। सूत्रकृतांग (1/4/13) में भगवान महावीर ने कहा है।

'सूरोदये पासति चक्खुणेव।' 
अर्थात सूर्य के उदय होने पर भी देखना तो आँखों को ही पड़ता है।

सवाल यह है कि अगर हम एक-दूसरे के लिए उपादान नहीं बन सकते तो क्या हम सब केवल मूकदर्शक हैं? अगर एक वस्तु का दूसरी से कोई सरोकार नहीं है तो यह तो सबका अलग खिचड़ी पकाना हुआ। 

महावीर क्या इस अलग खिचड़ी पकाने का ही उपदेश देते हैं? दरअसल महावीर के चिंतन की यह दिशा नहीं है। वे हमारे अलगाव को स्वीकार करते हुए भी संसार के पदार्थों के साथ हमारे गहरे सरोकारों को भी रेखांकित करते हैं। उनका कहना है, दूसरों के लिए हम उपादान नहीं बन सकते लेकिन निमित्त बन सकते हैं। बेटे को पढ़ाई का माहौल तो दे सकते हैं। 

हमारी भूमिका अपने लिए उपादान और दूसरों के लिए निमित्त की है। महावीर द्वारा दिया गया यह सूक्ष्म जीवन सूत्र ही नहीं जीवन जीने का स्थूल व्यवहार सूत्र भी है।