Thursday, May 31, 2012

वास्तु शास्त्र के अनुसार कौन सा चित्र कहाँ लगायें:::::::::

FROM PT. DEO NARAYAN SHASTRI ON FACEBOOK

**राजस्थानी फोटो में अधिकतर घड़े लेकर जाती हुयी महिलायों की फोटो रहता है ,कुवें से पानी भरती हुई फोटो ,समुद्र की फोटो ,झरने ,फव्वारे ,मछली ,कछुवे ,नाव,पानी का जहाज ,जलप्रपात,मछुवारे,नहर ,तालाब से सम्बन्धित कोई भी फोटो हो तो उसे घर के बैठक कक्ष /डाइनिंग/लिविंग के इशान ,उत्तर या पूर्वी दीवाल में स्थापित करें .


**कमरे का इशान कोण सम्पूर्ण समृद्धि देता है ,इशान कोण का तत्व जल है इसलिए इशान कोण में पानी से सम्बन्धित लोई भी चित्र लगा सकते है .


**पानी से सम्बन्धित चित्र जिसमें पहाड़ भी है उसे इशान कोण में भूलकर भी न लगायें .

**उत्तर दिशा से व्यापार/धन वृद्धि देखते हैं इसलिए व्यापारियों को उत्तर दिशा में जल से सम्बन्धित चित्र लगाना चाहिए .


**पूर्व दिशा से ज्ञान की वृद्धि होती है इसलिए पढ़ने लिखने वाले बच्चों को पूर्व में जल से सम्बन्धित चित्र लगाना चाहिए .


**शयन कक्ष के अंदर भूलकर भी पानी से सम्बन्धित चित्र न लगायें क्योकि पानी का चित्र पति पत्नी और वो की ओर इशारा करता है .


**बैठक/लिविंग/डाइनिंग कक्ष में दक्षिण और आग्नेय कोण में भूलकर भी पानी का चित्र न लगायें क्योंकि 



दक्षिण और अग्नि कोण का तत्व अग्नि है और दोनों एक दुसरे के परम विरोधी है .


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वास्तु शास्त्र से बीमारी को दूर भगाएं:::::---

FROM - PT. DEO NARAYAN SHASTRI ON FACEBOOK


क्या घर के लोग हमेशा बीमार रहते हैं ....? क्या आपकी आधी कमाई डाक्टर और दवाई में चला जाता है ....? 


घर में बीमार लोगों को हमेशा पूर्व के शयन कक्ष में सुलाएं ......क्योकि पूर्व दिशा के शयन कक्ष में पूर्व दिशा से प्रात:काल आने वाली सूर्य की किरणे स्वस्थ वर्धक होती है ------सोते समय हमेशा पूर्व की ओर सर करके सोयें ....क्योंकि पूर्व दिशा से स्वास्थ को देखते हैं ......बीमार लोगों को दवाई खाते समय पूर्व की ओर मुंह करके दवाई खाना चाहिए.......शयन कक्ष के पूर्व में दवाई को रखें .......

::::वास्तु शास्त्र के अनुसार बीमारी की वजह::::------


१.दरवाजे की ठीक सामने बिस्तर न लगायें क्योंकि दरवाजे के ठीक सामने बिस्तर होने से स्वस्थ हमेशा ख़राब रहता है ,सनातन धर्म में अंतिम समय में मृतक को दरवाजे के पास सुलाते हैं जिससे आत्मा को वापस जाने में कोई रुकावट न हो 



२. नेरित्य कोण में स्थित बोर ,कुवाँ,सेप्टिक टेंक बीमारी की वजह हो सकती है 


३. आग्नेय कोण मे बोर ,सेप्टिक टेंक बीमारी की वजह हो सकती है ---


.इशान कोण में स्थित शौचालय ,किचन ,सेप्टिक टेंक,सीढ़ी बीमारी की वजह बनती है 


.पूर्व में स्थित सीढ़ी ,किचन,शौचालय,सेप्टिक टेंक से बीमारी होती है 
.हास्पिटल में मरीज को पूर्व दिशा में सर करके सुलाना चाहिए 



६. दक्षिण दिशा में सर करके सोंने से उम्र वृद्धि होती है इसलिए अंतिम समय अवस्था में पहुंचे मरीज को दक्षिण में सर करके सुलाना चाहिए 
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रोगमुक्त होने के सरल उपाय

FROM - PANDIT SHREE ASHU BAHUGUNA ON FACEBOOK 

निरोगी-देह सब चाहते हैं। निरोगी काया से संसार के सुखों को भोगा जा सकता है। इसिलिए कहा गया है कि पहला सुख निरोगी काया। यदि फिर भी परिवार में किसी को कोई रोग लग जाता है और अनेक उपचार करने के बाद भी वह ठीक नहीं हो रहा है तो निम्न उपायौं द्वारा रोगमुक्त हुआ जा सकता है।

1.रविपुष्य योग में हत्थाजोडी को लाकर एवं पंचामृत से स्त्रान कराकर लाल आसन पर स्थापित कर धूप दीप से पूजा करें। फिर सिंदूर भरी डिब्बी में रख लें। इससे वाणी के दोष और रोग नष्ट होते हैं। 


2. इमली का बांदा पुष्य नक्षत्र में लाकर दाएं हाथ में बांधने से देह का कंपन्न रोग दूर हो जाता है। 


3. लाल लटजीरा की टहनी से दातून करने पर दांत के रोग से छुटकारा मिलता है। यदि उसे दूध में डालकर पीतें हैं तो संतानोत्पत्ति की क्षमता बढती है। 


4. यदि घर में कोई बीमार रहता है तो शुक्लपक्ष के प्रथम गुरूवार से आटे के दो पेडे बनाकर उसमें गीली चने की दाल के साथ गुड और थोडी पिसी काली हल्दी को दबाकर गाय को खिलाने से स्वास्थ्य लाभ होता है। 


5. रोग की अवस्था में घर की सभी घडियों को चालू हालत में रखें। 


6. पांवों का कैसा भी रोग हो सोलह दांत वाली पीली कौडी में सूराख करके बांध लें।


7. नींद न आने पर श्वेत घुंघची की जड को तकिए के नीचे रखकर सोएं। 


8. चक्कर आने की अवस्था में किसी भी रविवार या मंगलवार को गुलाबजल में 2 माशा गोरोचन पीसकर सेवन कर लें।


9. सुलेमानी रत्न को चांदी की अंगूठी में पहनने से स्मरणशक्ति का विकास होता है। 


10. छोटे-छोटे प्याजों की माला को गले में धारण करने से तिल्ली रोग का शमन हो जाता है।

Wednesday, May 23, 2012

श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति

हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश ऐसे देवता के रूप में पूजनीय है, जिनका नाम जपने से ही कार्य में आने वाली जानी-अनजानी विघ्र, बाधाओं का नाश हो जाता है है। 

दरअसल, शुभ और मंगल की चाहत तभी पूरी हो सकती है, जब बुद्धि और विवेक के संतुलन से लक्ष्य तक पहुंचा जाए, किंतु तय लक्ष्य को पाने के लिए यह भी जरूरी है कि उसके लिए की जाने वाली कोशिशों के दौरान आने वाली बाधाओं से निपटने की भी तैयारी रखी जाए। फिर चाहे, ये लक्ष्य गृहस्थी, व्यापार या फिर परीक्षा में सफलता से जुड़े ही क्यों न हो? 

यहां श्री गणेश का ऐसा मंत्र बताया जा रहा है, जिसमें श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति है। इन 12 नामों का ध्यान सुख-सफलता की सारी बाधाओं को दूर कर देता है। जानिए, यह श्री गणेश मंत्र - 

- बुधवार या हर रोज इस मंत्र का सुबह श्री गणेश की सामान्य पूजा के साथ जप बेहतर नतीजे देता है। पूजा में दूर्वा चढ़ाना और मोदक का यथाशक्ति भोग लगाना न भूलें।

गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।

द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।

विनायकश्चायकर्ण: पशुपालो भावात्मज:।

द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्रं भवते् कश्चित।।


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सुख-वैभव की कामनापूर्ति के लिए यह सरल मंत्र है -








जीवन में दरिद्रता शाप के समान मानी जाती है। खासतौर पर धन की कमजोरी से जन्मी तन, मन की परेशानियां इंसान के गुण, रूप व शक्ति को लील जाती है। इस तरह धन का अभाव साख गिराकर गुमनामी के अंधेरों मे धकेल सकता है। यही कारण है कि हर इंसान जरूरतों की पूर्ति व अभावों से बचने के लिए अधिक से अधिक धन बटोरने की कोशिश करता है। 

ऐसे ही प्रयासों के तहत धार्मिक उपायों में भगवान गणेश की पूजा, बुद्धि, ज्ञान व बल द्वारा सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है। 

सुख-वैभव की कामनापूर्ति के लिए शास्त्रों में चतुर्थी व बुधवार को कुछ विशेष मंत्रों से भगवान गणेश का ध्यान बहुत मंगलकारी बताया गया है। इनमें षडाक्षरी गणेश मंत्र अर्थ, यानी धन व सुख-सुविधाओं के साथ धर्म, काम व मोक्ष देने वाला भी माना गया है। मान्यता है कि यह सिद्ध मंत्र ब्रह्मदेव ने सृष्टि रचना के लिए प्रकट हुई चतुर्थी स्वरूपा देवी को श्री गणेश की भक्ति के लिए दिया था। जानिए यह मंत्र विशेष - 

- सालभर हर माह की कृष्णपक्ष या शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश की केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा, सिंदूर से पूजा व गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद इस गणेश मंत्र का स्मरण करें या पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठ हल्दी या चन्दन की माला से कम से कम 108 बार जप करें। मंत्र जप के बाद भगवान गणेश की चंदन धूप व गोघृत आरती कर वैभव व यश की कामना करें। यह सरल मंत्र है - 

वक्रतुण्डाय हुम्।।




और कितना बाकी है कलियुग! जानिए, दिलचस्प आंकड़े

ARTICLE FROM DAINIK BHASKAR - 23/5/12-


जब-जब धर्म की हानि होती है, ईश्वर अवतार लेकर अधर्म का अंत करते हैं। इस संदेश के साथ अलग-अलग युगों में जगत को दु:ख और भय से मुक्त करने वाले ईश्वर के अनेक अवतारों के पौराणिक प्रसंग हैं। दरअसल, इनमें सत्य और अच्छे कर्मों को अपनाने के भी कई सबक हैं। साथ ही इनके जरिए युग के बदलाव के साथ प्राणियों के कर्म, विचार व व्यवहार में अधर्म और पापकर्मों के बढ़ने के भी संकेत दिए गए हैं।

इसी कड़ी में सतयुग, त्रेता, द्वापर के बाद कलियुग के लिए बताया गया है कि इसमें अधर्म का ज्यादा बोलबाला होगा, जिसके अंत के लिए भगवान विष्णु का कल्कि रूप में दसवां अवतार होगा। रामचरितमानस में भी कलियुग में फैलने वाले अधर्म का वर्णन मिलता है।

आज के दौर में भी व्यावहारिक जीवन में आचरण, विचार और वचनों में दिखाई दे रहे सत्य, संवेदना, दया या परोपकार जैसे भावों के अभाव से आहत मन अनेक अवसरों पर कलियुग के अंत और कल्कि अवतार से जुड़ी जिज्ञासा को और बढ़ाता है। 

हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण में अलग-अलग युगों की गणना व अवधि बताई गई है। इस आधार पर जानते हैं कलियुग की अवधि कितनी लंबी या बाकी है?

पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी दिन-रात के बराबर है। जिसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है। दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक दिव्य वर्ष कहलाता है।

देवताओं के इन दिव्य वर्षो के आधार पर चार युगों की मानव सौर वर्षों में अवधि इस तरह है -

सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)

त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)

द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)

कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)

इस तरह सभी दिव्य वर्ष मिलाकर 12000 दिव्य वर्ष देवताओं का एक युग या महायुग कहलाता है, जो चार युगों के सौर वर्षों के योग 43,200,000 वर्षों के बराबर होता है।

इन पेड़ों की जड़ है चमत्कारी

FROM DAINIK BHASKAR - 23/5/12-


ज्योतिष एक विज्ञान है जो न केवल भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी देता है बल्कि जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने का अचूक उपाय भी बताता है। जन्मपत्रिका के इन घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ज्योतिष के अनुसार ग्रहों से शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक अचूक उपाय है।

सामान्यत: शुद्ध या असली रत्न काफी कीमती होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से काफी दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने मात्र से अशुभ ग्रहों के प्रभाव नष्ट हो जाएंगे और धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी। साथ ही पैसा प्राप्त करने में जो रुकावटें आ रही हैं वे भी दूर होने लगेंगी।

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो और सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करें।

- चंद्र के शुभ प्रभाव के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।

- मंगल को बलवान बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।

- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधीझाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

- गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।

- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।

-राहु को बल देने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करें।

- केतु के शुभ प्रभाव के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

ये सभी जड़े बाजार से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्यत: ज्योतिष संबंधी सामग्रियों के विक्रेताओं के यहां इस प्रकार जड़ें मिल सकती हैं। इसके अलावा कुछ वृद्ध लोगों को भी इन जड़ों की जानकारी हो सकती है। उनसे भी इस संबंध मदद प्राप्त की जा सकती है।

Monday, May 21, 2012

जानिए बुध ग्रह को

जानिए बुध ग्रह को
युवा और सुकुमार ग्रह बुध:-BY - VEEJAY ASTRO ON FACE BOOK

सूर्य के सबसे निकटतम ग्रह है बुध। वैज्ञानिकों का मत हैं कि आकाश मंडल में असंख्य तारों व ग्रहों की तरह ही बुध भी एक ग्रह है जो सूर्य के अति निकट है और इसकी स्थिति ईशान कोण में बताई जाती है।

वैज्ञानिकों के अनुसार : बुध का व्यास 5140 किलोमीटर है और गुरुत्वाकर्षण शक्ति पृथ्वी की अपेक्षा एक चौथाई भाग है। सौर मंडल का सबसे छोटा और प्रकाशमान ग्रह सूर्य से 59200000 किलोमीटर है। 48 किलोमीटर प्रति सेंकेड की रफ्तार से यह 28 दिनों में सूर्य की परिक्रमा कर लेता है। इसे अपनी धूरी पर एक चक्कर लगाने में 60 दिन लगते हैं।

पुराणों के अनुसार : बुध चंद्रमा के पुत्र हैं। उनकी माता का नाम रोहिणी हैं। उन्हें विद्वान और अथर्ववेद के ज्ञाता माना जाता है। उनका विवाह वैवस्वत मनु की पुत्री इला से हुआ। देवों की सभा में बुध को राजकुमार कहा गया है।

शुभ : बहन, मौसी और बुआ की स्थिति ठीक रहती है। सुंदर देह वाला ऐसा व्यक्ति ज्ञानी और चतुर होता है। सोच-समझ कर बोलता है। उसकी बातों का असर होता है। ईमानदारी छोड़ दे तो शुभ प्रभाव छोड़ देता है। सूंघने की शक्ति गजब की होती है। व्यापार और नौकरी में किसी भी प्रकार की अड़चन नहीं आती है।

अशुभ : सूंघने की शक्ति क्षीण हो जाती है। समय पूर्व ही दांतों का खराब होना। मित्र से संबंधों का बिगड़ना। तुतलाहट। अशुभ हो तो बहन, बुआ और मौसी पर विपत्ति बनी रहती है। केतु और मंगल के साथ मंदा फल। शत्रु ग्रहों से ग्रसित बुध का फल मंदा ही रहता है। विशेषत: यह नौकरी या व्यापार में नुकसान दे सकता है। संभोग की शक्ति क्षीण कर देता है।

उपाय : दुर्गा की भक्ति। नाक छिदवाना। बेटी, बहन, बुआ और साली से अच्छे संबंध रखें। बुधवार के दिन गाय को हरा चारा खिलाना। साबूत हरे मूंग का दान करना। झूठ न बोलना।

मकान : बुध के मकान के चारों ओर खाली जगह होती है। हो सकता है कि यह मकान सभी मकानों से अलग अकेला ही हो। मकान के साथ चौड़े पत्तों के वृक्ष होंगे। गुरु और चंद्र के वृक्ष के साथ न होगा और अगर हुआ तो वह घर बुध की दुश्मनी का पुख्ता प्रमाण माना जाएगा।



बुध की शान्ति केर उपाय———— BY MUKESH KUMAR ON FACE BOOK ...09896985524 
१∙चावल‚शहद‚सफॆद सररसों‚गोबर‚गोरोचन‚और नवारी मल्वत मिलाकर 7 बुधवार तक स्नान करे।
२ एक रत्ती स्वर्ण बुधवार को दान करे।
३ ग्यारह बुधवार तक एक मुट्ठी मूँग भिखारियो को दान दे।
४ लड़की‚बहन‚बुआ‚साली की सेवा करे।
५ कौड़ियो को जलाकर बहते पानी मे बहाएं।
६ हिजड़ो को हरे रंग की चुड़ियाँ‚हरे रंग के कपड़े बुधवार को दान करे।
७ नित्य विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करे।
८ शत्रुबाधा एवं अभिचार कर्मो के शमन के लिए प्रत्याँगिरा जप तथा हवन अमोघ उपाय है।
९ एकादशी व्रत करे ।
१० ताँबे के सिक्के मे छेद करके पानी मे बहाए।
११ पन्नायुक्त बुध यँत्र धारण करे। 

Tuesday, May 1, 2012

रत्नों के चयन के कुछ नियम:

BY VEEJAY ASTRO ON FACEBOOK

क्रियाशीलता प्रकृ्ति के जीवन का गहनतम रहस्य है। जो वस्तु उस संसार में सक्रिय नहीं होती, वो शीघ्र ही नष्ट हो जाती है। इसीलिए ये सम्पूर्ण ब्राह्मंड, नक्षत्र, ग्रह तथा तारे सदैव क्रियाशील रहते हैं। हमारे सौरमंडल के इन ग्रहों, नक्षत्रों की सक्रियता को आप चाहें तो उनके रत्न को धारण करके भी अनुभव कर सकते हैं। यदि विधिपूर्वक रत्न को धारण किया जाए तो वो अपने सम्बंधित ग्रह के प्रतिनिधि स्वरूप धारणकर्ता से सम्पर्क बनाकर ग्रहों की भांती चलायमान होते हैं।



रत्नों के चयन के कुछ नियम:-

अपने लिए किसी रत्न के चुनाव के समय विशेष सावधानी की आवश्यकता पडती है। अनिष्टकारक ग्रहों का कुप्रभाव कम करने हेतु अथवा क्षीण ग्रह के प्रभाव में वृ्द्धि के लिए ज्योतिषी उस ग्रह के रत्न धारण करने की राय देते हैं। इसके अतिरिक्त आपको बहुत से ऎसे भी ज्योतिषी मिल जायेंगें जिनकी दृ्ष्टि में अपने ग्राहक द्वारा धन खर्च करने की क्षमता ही किसी रत्न के चयन का एकमात्र मापदंड है। वो लोग सिर्फ ये देखते हैं कि अगर ग्राहक सालिड पार्टी है तो उसे नीलम,पुखराज या हीरा जैसा कोई मंहगा रत्न डलवा दो(चाहे वो उसके लिए उपयुक्त हो या न हो) ओर यदि एक आम साधारण आदमी है तो उसे वही कोई सस्ता सा रत्न बता दो मसलन मोती, माणिक,मूँगा, पन्ना वगैरह। कहने का अर्थ ये कि कैसे भी करके हमारा उल्लू सीधा होना चाहिए, हमारी जेब में पैसा आना चाहिए...चाहे उसके चक्कर में बेचारे ग्राहक का बंटाधार ही क्यों न हो जाए।खैर....जिसका जैसा कर्म। हम बात कर रहे थे, किसी रत्न के चयन करते समय किन किन बातों की सावधानी रखनी आवश्यक है। इसमें सबसे महत्वपूर्ण बात ये है कि कोई व्यक्ति एक साथ कौन कौन से रत्न पहन सकता है और कौन से ऎसे रत्न हैं, जिन्हे धारण करने से उसे बचना चाहिए। इसे आप निम्नलिखित अनुसार जान सकते हैं:----

1 किसी भी व्यक्ति को कभी तृ्तीयेश(3rd house lord), षष्ठेश(lord of 6th house),अष्टमेश(lord of 8th house),एकादशेश(lord of 11th house) एवं द्वादशेश(lord of 12th house) का रत्न भूलकर भी नहीं धारण करना चाहिए। क्यों कि ज्योतिष में इन भावों के स्वामियों को पाप ग्रह की संज्ञा दी जाती है। मान लीजिए यदि आप तृ्तीयेश के स्वामी का रत्न धारण करते हैं तो आपके स्वभाव में तीव्रता, क्रोध बढने लगेगा। जीवन के प्रत्येक विषय में दुविधा एवं भ्रम की स्थितियाँ निर्मित होने लगेंगी। उसी प्रकार षष्ठेश का रत्न धारण करने से मन में किसी अज्ञात भय का संचार होने लगेगा। व्यक्ति के मन का झुकाव किसी व्यसनोन्मुख होने लगेगा। अष्टमेश के रत्न से भाग्य में अवरोध, अनैतिक विचार एवं धर्म से विरक्ति के भाव, द्वादशेश के रत्न से मन भोगवृ्ति की ओर मुडने लगेगा। मन-मस्तिष्क पर वासना, अति कामुकता जन्म लेने लगेगी। धन का व्यर्थ भाव होने के साथ ही किसी प्रकार के दंड की आशंका रहेगी।

2.ग्रह के विरोधी रत्नों को कभी भी नहीं पहनना चाहिए। जैसे कि माणिक्य के साथ नीलम,हीरा। मोती के साथ मूंगा,नीलम,हीरा,पन्ना,गोमेद,लहसुनिया। पुखराज के साथ हीरा,पन्ना,गोमेद,मूंगा इत्यादि......

3. बिना जन्मपत्री या हस्तरेखा की जाँच के कभी भी, कोई भी प्राकृ्तिक रत्न नहीं धारण करना चाहिए। कुछ लोग नामराशि, हिन्दी/ अंग्रेजी माह में जन्म अथवा मूलाँक के आधार पर रत्न धारण कर लेते हैं, जो कि रत्न चयन की निराधार प्रणाली है। रत्न चयन की इन प्रणालियों में सदैव हानि की ही सम्भावना रहती हैं, लाभ की बेहद कम।मुख्य बात ये है कि कोई भी असली-प्राकृ्तिक रत्न निष्क्रिय नहीं होता। उसकी सतह पर सूर्य की किरणों द्वारा परावर्तित होने वाला प्रकाश एक चमत्कारिक शक्ति के रूप में कार्य करता है तथा स्वयं अपना प्रभाव दिखाने में सक्षम होता है। रत्नो की दुर्लभता एवं मानवी धनलोलुपता के कारण आजकल अधिकांशत: असली के नाम पर कृ्त्रिम रत्न ही बेचे जा रहे हैं, जो देखने में बिल्कुल असली प्रतीत होते हैं। वैसे भी एक आम आदमी को इन सब चीजों की पहचान भी कहाँ होती है। उसे तो जो भी उसके ज्योतिषी/पंडित जी नें थमा दिया, वही उसके लिए असली है। एक साधारण मनुष्य की तो बात ही छोड दीजिए कम से कम 95% से ऊपर ज्योतिषी ऎसे होंगें,जिन्हे स्वयं भी रत्न के असली नकली के बारे में कोई जानकारी नही हैं। बस व्यापारी से जो खरीदा, सो बेच दिया।इसलिए इच्छुक व्यक्ति को ग्रहों के अनुसार असली रत्न का ही उपयोग करना चहिए, भले ही वो सस्ता उपरत्न हो, परन्तु असली होना चाहिए। अन्यथा उसे धारण करने से कोई लाभ तो होने वाला है नहीं, उल्टे, मन में रत्नों की प्रभावकारिता तथा ज्योतिष/ज्योतिषी के प्रति अविश्वास जरूर पैदा हो जाएगा।

Photo by Veejay Astro