Friday, October 26, 2012

शरद पूर्णिमा २९ अक्टूबर २०१२ (सोमवार)

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SHREE ARVINDER SINGH
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शरद पूर्णिमा अश्विन मास में होती है. इसे रास पूर्णिमा भी कहते है और कोजागर पूर्णिमा भी. शरद ऋतु में आमतौर मौसम साफ़ रहता है. आकाश में न तो बादल होते है और न ही धूल के गुब्बार. पुरे वर्ष भर में केवल अश्विन मास की पूर्णिमा का चंद्रमा ही षोडस कलाओं (१६ कलाये) का होता है. कहा जाता है कि इस पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है. इस रात्रि में भ्रमण करना और चन्द्र किरणों का शरीर पर पड़ना बहुत ही शुभ माना जाता है. शरद पूर्णिमा की रात को ही भगवान श्रीकृष्ण ने ब्रज -बालाओं के साथ वृन्दावन में महारास किया था. 
इस पावन पर्व में क्या करे जिससे जीवन में खुशहाली आ सके. तो मै आप सब के लिए राशि के आधार पर कुछ बताने की कोशिश कर रहा हु..... 

मेष राशि - सबसे पहले कन्याओं को दूध - खीर खिलाये (कन्या कितनी भी हो सकती है) और मीठे चावल बनाकर, उसमे देसी घी डालकर पक्षियों को दें, लाभ होगा.

वृषभ राशि - दही (दही भी अगर गौ दुग्ध की हो तो उत्तम) और गाय का घी मंदिर में दान करें, लाभ होगा. 

मिथुन राशि - व्रत रख सकते है व एक समय भोजन करें, संध्या समय श्री सत्य नारायण कथा करे या करवाए. दूध - चावल का दान करें. (दूध - चावल कितना भी हो सकता है) लाभ होगा.

कर्क राशि - इस दिन से शुरू करते हुए, लाल चंदन का तिलक माथे पर लगाएं. मिश्री मिला हुआ दूध धार्मिक स्थल में दान दे. लाभ होगा.

सिंह राशि - संध्या समय तुलसी जी के पौधे के पास गाय के घी का दीपक प्रज्ज्वलित करके उसमे दो लौंग डाल दे और जाने - अनजाने में जो गलतियाँ हो गयी है, उनके लिए माफ़ी मांगे और प्रणाम करके सुख शांति का निवेदन करे. धार्मिक स्थल में गुड़ का दान करें. लाभ होगा.

कन्या राशि - इस दिन से शुरू करते हुए माथे पर गोपीचंदन का तिलक लगायें और ९ साल तक की कन्याओं को भोजन में खीर खिलाये. लाभ होगा.

तुला राशि - भगवान् श्री कृष्ण जी की अराधना करें, उनको धूप-दीप के साथ माखन - मिश्री का भोग लगाये और धार्मिक स्थल में दूध, चावल व घी का दान दें. लाभ होगा.

वृश्चिक राशि - इस दिन से शुरू करते हुए, ४० दिन लगातार पीपल वृक्ष के समक्ष धूप-दीप के साथ तिल के तेल का दीपक अर्पित करे और मंगल ग्रह से संबंधित वस्तुओं का दान करे (ये पंडित जी को देना है, जो संकल्प करवा कर लेंगे) तथा ९ साल तक की कन्याओं को दूध - चांदी का दान दें. लाभ होगा.

धनु राशि - इस दिन श्री राधाकृष्ण जी का जहा भी मंदिर हो, वहा पर उनकी मूर्ति के सामने तुलसी जी का पौधा एवं गंगाजल रख कर, धूप-दीप के साथ माखन मिश्री का भोग लगाकर, माफ़ी मांग कर घर वापस आ जाए. धार्मिक स्थल में सवा किलो चने की दाल, सवा मीटर पीले कपड़े में रख कर दान दें. लाभ होगा.

मकर राशि - इस दिन से शुरू करते हुए, ४० दिन लगातार परिवार के सब सदस्यों के साथ, श्री हनुमान बाबा जी के मंदिर जायें, वहा पर धूप-दीप के साथ गुड की मीठी - मोटी रोटी अर्पित करे. ५ बार हनुमान चालीसा का पाठ करे. माफ़ी मांग कर घर वापस आ जाए. सवा किलो चावल साफ़ चलते पानी में बहा दे, संकल्प के साथ. लाभ होगा.

कुम्भ राशि - इस दिन से शुरू करते हुए, ४० दिन श्री हनुमान बाबा जी के मंदिर में लाल चंदन का दान करें, धूप-दीप ज़रूर अर्पित करे और ५ बार हनुमान चालीसा का पाठ कर, घर वापस आ जाए. १० अन्धो को खाना खिलाना विशेष रहेगा. सिर्फ खाना ही खिलाना है, रूपये - पैसे नहीं देने है. लाभ होगा.

मीन राशि - इस दिन बाबा श्री हनुमान जी को चोला अर्पित करे और ब्राह्मणों को जितना हो सके भोजन करवाए और उचित दान दक्षिणा के साथ विदा करे. 

इस दिन हर राशि के व्यक्ति, प्रातः १० बजे पीपल जी की जितनी सेवा हो सके, करे.. क्यूंकि १० बजे माता लक्ष्मी जी का एक बार फेरा ज़रूर लगता है. ऐसा शास्त्रों में कहा है. पूरी रात भर अगर जागरण कर सकते है तो बहुत ही उत्तम होगा.
भगवान् शिव जी का रुद्राभिषेक करवाए उत्तम है, उनको खीर का भोग लगाये. 

दान देने वाली जितनी भी चीज़े बताई है, वो आप सब किसी गरीब को दे सकते है या फिर ज़रूरतमंद को दे सकते है या फिर सिद्ध श्री शिव मंदिर में जाकर भी दान कर सकते है. 

Tuesday, October 23, 2012

कन्या रूप पूजनीय क्यों?


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PT. SHREE ASHU BAHUGUNA 
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हमारे धर्मग्रन्थों में कन्या-पूजन को नवरात्र-व्रतका अनिवार्य अंग बताया गया है। छोटी बालिकाओं में देवी दुर्गा 


का रूप देखने के कारण श्रद्धालु उनकी पूजा-अर्चना करते हैं।



हिंदु धर्म में दो वर्ष की कन्या को कुमारी 
कहा जाता है। ऐसी मान्यता है कि इसके पूजन से दुख और दरिद्रता समाप्त हो जाती है।

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तीन वर्ष की कन्या त्रिमूर्ति 
मानी जाती है। त्रिमूर्ति के पूजन से धन-धान्य का आगमन और स
ंपूर्ण परिवार का कल्याण होता है।

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चार वर्ष की कन्या कल्याणी 
के नाम से संबोधित की जाती है। कल्याणी की पूजा से सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है

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पांच वर्ष की कन्या रोहिणी 
कही जाती है। रोहिणी के पूजन से व्यक्ति रोग-मुक्त होता है।

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छ:वर्ष की कन्या कालिका 
की अर्चना से विद्या, विजय, राजयोग की प्राप्ति होती है।

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सात वर्ष की कन्या चण्डिका
के पूजन से ऐश्वर्य मिलता है।

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आठ वर्ष की कन्या शाम्भवी 
की पूजा से वाद-विवाद में विजय तथा लोकप्रियता प्राप्त होती है।

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नौ वर्ष की कन्या दुर्गा 
की अर्चना से शत्रु का संहार होता है तथा असाध्य कार्य सिद्ध होते हैं।

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दस वर्ष की कन्या सुभद्रा 
कही जाती है। सुभद्रा के पूजन से मनोरथ पूर्ण होता है तथा लोक-परलोक में सब सुख प्राप्त होते हैं।.....





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Monday, October 22, 2012

विभिन्न प्रकार से सफलता प्राप्ति के उपाय

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VEEJAY ASTRO
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शत्रु शमन के लिए :

साबुत उड़द की काली दाल के 38 और चावल के 40 दाने मिलाकर किसी गड्ढे में दबा दें और ऊपर से नीबू 

निचोड़ दें। नीबू निचोड़ते समय शत्रु का नाम लेते रहें, उसका शमन होगा और वह आपके विरुद्ध कोई 

कदमनहींउठाएगा।



अकारण परेशान करने वाले व्यक्ति से शीघ्र छुटकारा पाने के लिए :

यदि कोई व्यक्ति बगैर किसी कारण के परेशान कर रहा हो, तो शौच क्रिया काल में शौचालय में बैठे-बैठे वहीं के पानी से उस व्यक्ति का नाम लिखें और बाहर निकलने से पूर्व जहां पानी से नाम लिखा था, उस स्थान पर अप बाएं पैर से तीन बार ठोकर मारें। ध्यान रहे, यहप्रयोग स्वार्थवश न करें, अन्यथा हानि हो सकती है।

नजर उतारने के प्राचीन उपाय

1. नमक, राई, राल, लहसुन, प्याज के सूखे छिलके व सूखी मिर्च अंगारे पर डालकर उस आग को रोगी के ऊपर सात बार घुमाने से बुरी नजर का दोष मिटता है।

2. शनिवार के दिन हनुमान मंदिर में जाकर प्रेमपूर्वक हनुमान जी की आराधना कर उनके कंधे पर से सिंदूर लाकर नजर लगे हुए व्यक्ति के माथे पर लगाने से बुरी नजर का प्रभाव कम होता है।

3. खाने के समय भी किसी व्यक्ति को नजर लग जाती है। ऐसे समय इमली की तीन छोटी डालियों को लेकर आग में जलाकर नजर लगे व्यक्ति के माथे पर से सात बार घुमाकर पानी में बुझा देते हैं और उस पानी को रोगी को पिलाने से नजर दोष दूर होता है।

4. कई बार हम देखते हैं, भोजन में नजर लग जाती है। तब तैयार भोजन में से थोड़ा-थोड़ा एक पत्ते पर लेकर उस पर गुलाब छिड़ककर रास्ते में रख दे। फिर बाद में सभी खाना खाएँ। नजर उतर जाएगी।

5. नजर लगे व्यक्ति को पान में गुलाब की सात पंखुड़ियाँ रखकर खिलाए। नजर लगा हुआ व्यक्ति इष्ट देव का नाम लेकर पान खाए। बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाएगा।

6. लाल मिर्च, अजवाइन और पीली सरसों को मिट्‍टी के एक छोटे बर्तन में आग लेकर जलाएँ। ‍िफर उसकी धूप नजर लगे बच्चे को दें। किसी प्रकार की नजर हो ठीक हो जाएगी।


नज़र बाधा

1. आप अपने नए मकान को बुरी नजर से बचाना चाहते हैं तो मुख्य द्वार की चौखट पर काले धागे से पीली कौड़ी बांधकर लटकाने से समस्त ऊपरी बाधाओं से मुक्ति मिलती है।

2. यदि आपने कोई नया वाहन खरीदा है और आप इस बात से परेशान हैं कि कुछ न कुछ रोज वाहन में गड़बड़ी हो जाती है। यदि गड़बड़ी नहीं होती तो दुर्घटना में चोट-चपेट लग जाती है औरबेकार के खर्च से सारी अर्थ-व्यवस्था चौपट हो जाती है। अपने वाहन पर काले धागे से पीली कौड़ी बांधने से आप इस बुरी नजर से बच सकेंगे, करके परेशानी से मुक्त हो जाएं।

3. यदि आपके घर पर रोज कोई न कोई आपदा आ रही है। आप इस बात को लेकर परेशान हैं कि कहीं किसी ने कुछ कर तो नहीं दिया। ऐसे में आपको चाहिए कि एक नारियल को काले कपड़े मेंसिलकर घर के बाहर लटका दें।

4. मिर्च, राई व नमक को पीड़ित व्यक्ति के सिर से वार कर आग में जला दें। चंद्रमा जब राहु से पीड़ित होता है तब नजर लगती है। मिर्च मंगल का, राई शनि का और नमक राहु का प्रतीक है। इन तीनों को आग (मंगल का प्रतीक) में डालने से नजर दोष दूर हो जाता है। यदि इन तीनों को जलाने पर तीखी गंध न आए तो नजर दोष समझना चाहिए। यदि आए तो अन्य उपाय करने चाहिए।

टोटका तीन-यदि आपके बच्चे को नजर लग गई है और हर वक्त परेशान व बीमार रहता है तो लाल साबुत मिर्च को बच्चे के ऊपर से तीन बार वार कर जलती आग में डालने से नजर उतर जाएगी और मिर्च का धचका भी नहीं लगेगा।

5. यदि कोई व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि शनिवार के दिन कच्चा दूध उसके ऊपर से सात बार वारकर कुत्ते को पिला देने से बुरी नजर का प्रभाव दूर हो जाता है।

6. यदि कोई व्यक्ति बुरी नजर से परेशान है तो कि मंगलवार के दिन हनुमान मंदिर जाकर उनके कन्धे से सिन्दुर लेकर नजर लगे व्यक्ति के माथे पर यह सोचकर तिलक कर दें कि यह नजर दोष से मुक्त हो गया है।

दिमाग से चिन्ता हटाने का टोटका

अधिकतर पारिवारिक कारणों से दिमाग बहुत ही उत्तेजना में आजाता है,परिवार की किसी समस्या से या लेन देन से,अथवा किसी रिस्तेनाते को लेकर दिमाग एक दम उद्वेलित होने लगता है,ऐसा लगने लगता है कि दिमाग फ़ट पडेगा,इसका एक अनुभूत टोटका है कि जैसे ही टेंसन हो एक लोटे में या जग में पानी लेकर उसके अन्दर चार लालमिर्च के बीज डालकर अपने ऊपर सात बार उबारा (उसारा) करने के बाद घर के बाहर सडक पर फ़ेंक दीजिये,फ़ौरन आराम मिल जायेगा।

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7. यदि आपके बच्चे को बार-बार नजर लग जाती है तो आपको चाहिए कि आप उसके गले में रीठे का एक फल काले धागे में उसके गले में पहना दें।

8. यदि आप नजर दोष से मुक्त होना चाहते हैं तो सूती कोरे कपड़े को सात बार वारकर सीधी टांग के नीचे से निकालकर आग में झोंक दें। यदि नजर होगी तो कपड़ा जल जाएगा व जलने की बदबू भी नहीं आएगी। यह प्रयोग बुधवार एवं शनिवार को ही कर सकते हैं।

9. टोटका नौ-यदि कोई बच्चा नजर दोष से बीमार रहता है और उसका समस्त विकास रुक गया है तो फिटकरी एवं सरसों को बच्चे पर से सात बार वारकर चूल्हे पर झोंक देने से नजर उतर जाती है। यदि यह सुबह, दोपहर एवं सायं तीनों समय करें तो एक ही दिन में नजर दोष दूर हो जाता है।

घर से पराशक्तियों को हटाने का टोटका

एक कांच के गिलास में पानी में नमक मिलाकर घर के नैऋत्य के कोने में रख दीजिये,और उस बल्ब के पीछे लाल रंग का एक बल्व लगा दीजिये,जब भी पानी सूख जाये तो उस गिलास को फ़िर से साफ़ करने के बाद नमक मिलाकर पानी भर दीजिये।

बच्चे के उत्तम स्वास्थ्य व दीर्घायु के लिए :

1-एक काला रेशमी डोरा लें ! “ऊं नमोः भगवते वासुदेवाय नमः” का जाप करते हुए उस डोरे में थोडी थोडी दूरी पर सात गांठें लगायें ! उस डोरे को बच्चे के गले या कमर में बांध दें !

2- प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी कुत्ते को शाम के समय पिला दें ! बच्चा दीर्घायु होगा !

3- यदि किसी को टायफाईड हो गया हो तो उसे प्रतिदिन एक नारियल पानी पिलायें ! कुछ ही दिनों में आराम हो जायगा !

4- सिन्दूर लगे हनुमान जी की मूर्ति का सिन्दूर लेकर सीता जी के चरणों में लगाएँ। फिर माता सीता से एक श्वास में अपनी कामना निवेदित कर भक्ति पूर्वक प्रणाम कर वापस आ जाएँ। इस प्रकार कुछ दिन करने पर सभी प्रकार की बाधाओं का निवारण होता है।

ससुराल में सुखी रहने के लिए :

1- कन्या अपने हाथ से हल्दी की 7 साबुत गांठें, पीतल का एक टुकड़ा और थोड़ा-सा गुड़ ससुराल की तरफ फेंके, ससुराल में सुरक्षित और सुखी रहेगी।

2- सवा पाव मेहंदी के तीन पैकेट (लगभग सौ ग्राम प्रति पैकेट) बनाएं और तीनों पैकेट लेकर काली मंदिर या शस्त्र धारण किए हुए किसी देवी की मूर्ति वाले मंदिर में जाएं। वहां दक्षिणा, पत्र, पुष्प, फल, मिठाई, सिंदूर तथा वस्त्र के साथ मेहंदी के उक्त तीनों पैकेट चढ़ा दें। फिर भगवती से कष्ट निवारण की प्रार्थना करें और एक फल तथा मेहंदी के दो पैकेट वापस लेकर कुछ धन के साथ किसी भिखारिन या अपने घर के आसपास सफाई करने वाली को दें। फिर उससे मेहंदी का एक पैकेट वापस ले लें और उसे घोलकर पीड़ित महिला के हाथों एवं पैरों में लगा दें। पीड़िता की पीड़ा मेहंदी के रंग उतरने के साथ-साथ धीरे-धीरे समाप्त हो जाएगी।

पति-पत्नी के बीच वैमनस्यता को दूर करने हेतु :

1. रात को सोते समय पत्नी पति के तकिये में सिंदूर की एक पुड़िया और पति पत्नी के तकिये में कपूर की २ टिकियां रख दें। प्रातः होते ही सिंदूर की पुड़िया घर से बाहर फेंक दें तथा कपूर को निकाल कर उस कमरे जला दें।

पति को वश में करने के लिए :

2- शनिवार की रात्रि में ७ लौंग लेकर उस पर २१ बार जिस व्यक्ति को वश में करना हो उसका नाम लेकर फूंक मारें और अगले रविवार को इनको आग में जला दें। यह प्रयोग लगातार ७ बार करने से अभीष्ट व्यक्ति का वशीकरण होता है।

3- अगर आपके पति किसी अन्य स्त्री पर आसक्त हैं और आप से लड़ाई-झगड़ा इत्यादि करते हैं। तो यह प्रयोग आपके लिए बहुत कारगर है, प्रत्येक रविवार को अपने घर तथा शयनकक्ष में गूगल की धूनी दें। धूनी करने से पहले उस स्त्री का नाम लें और यह कामना करें कि आपके पति उसके चक्कर से शीघ्र ही छूट जाएं। श्रद्धा-विश्वास के साथ करने से निश्चिय ही आपको लाभ मिलेगा।

घर की कलह को समाप्त करने का उपाय

रोजाना सुबह जागकर अपने स्वर को देखना चाहिये,नाक के बायें स्वर से जागने पर फ़ौरन बिस्तर छोड कर अपने काम में लग जाना चाहिये,अगर नाक से दाहिना स्वर चल रहा है तो दाहिनी तरफ़ बगल के नीचे तकिया लगाकर दुबारा से सो जाना चाहिये,कुछ समय में बायां स्वर चलने लगेगा,सही तरीके से चलने पर बिस्तर छोड देना चाहिये।



परिवार में शांति बनाए रखने के लिए :

बुधवार को मिट्टी के बने एक शेर को उसके गले में लाल चुन्नी बांधकर और लाल टीका लगाकर माता के मंदिर में रखें और माता को अपने परिवार की सभी समस्याएं बताकर उनसे शांति बनाए रखने की विनती करें। यह क्रिया निष्ठापूर्वक करें, परिवार में शांति कायम होगी।

सफलता प्राप्ति के लिए :

1. किसी कार्य की सिद्धि के लिए जाते समय घर से निकलने से पूर्व ही अपने हाथ में रोटी ले लें। मार्ग में जहां भी कौए दिखलाई दें, वहां उस रोटी के टुकड़े कर के डाल दें और आगे बढ़ जाएं। इससे सफलता प्राप्त होती है।

2॰ किसी भी आवश्यक कार्य के लिए घर से निकलते समय घर की देहली के बाहर, पूर्व दिशा की ओर, एक मुट्ठी घुघंची को रख कर अपना कार्य बोलते हुए, उस पर बलपूर्वक पैर रख कर, कार्य हेतु निकल जाएं, तो अवश्य ही कार्य में सफलता मिलती है।

3॰ अगर किसी काम से जाना हो, तो एक नींबू लें। उसपर 4 लौंग गाड़ दें तथा इस मंत्र का जाप करें : `ॐ श्री हनुमते नम:´। 21 बार जाप करने के बाद उसको साथ ले कर जाएं। काम में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी।

4 चुटकी भर हींग अपने ऊपर से वार कर उत्तर दिशा में फेंक दें। प्रात:काल तीन हरी इलायची को दाएँ हाथ में रखकर “श्रीं श्रीं´´ बोलें, उसे खा लें, फिर बाहर जाए¡

प्रातः सोकर उठने के बाद नियमित रूप से अपनी हथेलियों को ध्यानपूर्वक देखें और तीन बार चूमें। ऐसा करने से हर कार्य में सफलता मिलती है। यह क्रिया शनिवार से शुरू करें।



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विशेष - लेखक के विचारों से इस ब्लॉगर का सहमत होना जरूरी नही है. पाठक इन प्रयोगों को स्व्यं कि जिम्मेवारी  पर कर सकते है.

एक मन्वन्तर की अवधि


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ASTROLOGER SHREE SURENDRA SINGH RAWAT 
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२ परमाणु ==> १ अणु
३ अणु ==> १ त्रसरैणु
३ त्रसरेण ==> १ त्रुटि
१०० त्रुटि ==> १ वेध
३ वेध ==> १ लव
३ लव ==> १ निमेष
३ निमेष ==> १ क्षण
५ क्षण ==> १ काष्ठा
३० काष्ठा ==> १ कला
१५ काष्ठा ==> १ लघु
१५ लघु ==> १ नाणिका
२ नाणिका ==> १ मुहूर्त
३० कला ==> १ मुहूर्त
३० मुहूर्त ==> १ दिनरात ( अहोरात )
७ दिनरात ==> १ सप्ताह
२ सप्ताह ==> १ पक्ष
२ पक्ष ==> १ मास
२ मास ==> १ ऋतु
३ ऋतु ==> १ अयन ( ६ माह )
२ अयन ==> १ वर्ष
कलियुग की अवधि ==> ४,३२,००० वर्ष
द्वापरयुग की अवधि ( कलियुग से दुगनी ) ==> ८,६४,००० वर्ष
त्रेतायुग की अवधि ( कलियुग से तीन गुनी ) ==> १२,९६,००० वर्ष
सतयुग की अव्धि ( कलियुग से चार गुनी ) ==> १७,२८,००० वर्ष
१ चतुयुगी ( चारो युगो का योग ) ==> ४३,२०,००० वर्ष
१ मन्वन्तर ==> ७१ चतुयगी
अर्थात ( १ मन्वन्तर = ७१ x ४३,२०,००० वर्ष ) ==> ३,०६,७२,००० वर्ष

दो मन्व्न्तर के बीच एक सध्याश होता है जो एक सतयुग के बराबर होता है
सन्ध्या ==> १७,२८,००० वर्ष

१ कल्प = १४ मन्वयन्तर व सन्ध्याश के १५ सतयुग के बराबर का योग
अर्थात( १४ x ३,०६,७२,००० वर्ष ) + ( १५ x १७,२८,००० वर्ष )

एक कल्प ==> ४,३२,००,००,००० वर्ष

( ४ अरब ३२ करोड वर्ष )

यह ब्रह्मा का १ दिन ओर उतनी ही अवधि की रात होती है

१ दिन रात ( ४ अरब ३२ करोड वर्ष २ ) ==> ८,६४,००,००,००० वर्ष
ब्रह्मा का १ वर्ष ==> ३१,१०,४०,००,००,००० ( ८,६४,००,००,००० वर्ष x ३६० ) ( ३१ खरब १० अरब ४० करोड वर्ष )
ब्रह्मा का १०० वर्ष ==> विष्णु का एक निमेष ==> ( ३१ खरब १० अरब ४० करोड वष x १०० ) ==> ३१ नील १० अरब ४० अरब वर्ष
विष्णु के १०० वर्ष ==> रुद्र का १ दिन

रुद्र स्वय कालरुप है ओर अन्नत है,
इसलिये कहा जाता है – काल अन्नतान्नत है

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Sunday, October 21, 2012

विजय दशमी पर्व पर जीवन में उन्नति के लिए उपाय क्या करे

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BY SHREE ARVIND SINGH ON FACE BOOK


विजय दशमी पर्व की बहुत बहुत शुभ कामनाऍ............ विजयादशमी अथार्त दशहरा का पर्व इस बार २४ अक्तुबर २०१२, (बुधवार) को...... 

अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को इसका आयोजन होता है, दशहरा हिन्दुओं का एक प्रमुख त्योहार है. भगवान श्री राम चन्द्र जी ने इसी दिन रावण का वध किया था. इसे असत्य पर सत्य की विजय के रूप में मनाया जाता है. दशहरा वर्ष की तीन अत्यन्त शुभ तिथियों में से एक है, अन्य दो हैं चैत्र शुक्ल की एवं कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा. ये अभूज मुहूर्त कहलाते है................

कथा : - इस दिन राम ने रावण का वध किया था. रामायण के अनुसार राम तथा सीता जी के वनवास के दौरान रावण, राम की पत्नी सीता का अपहरण कर लंका ले जाता है. तब भगवान श्री राम अपनी पत्नी सीता जी को रावण के बंधन से मुक्त कराने हेतु राम ने भाई लक्ष्मण, भक्त हनुमान एवं वानरों की सेना के साथ मिलकर रावण के साथ एक बड़ा युद्ध करते हैं.

युद्ध के दौरान श्री राम जी नौ दिनों तक युद्ध की देवी मां दुर्गा जी की पूजा करते हैं तथा दसवें अर्थात दशमी के दिन रावण का वध करते हैं और सीता जी को बंधन से मुक्त कराते हैं. इसलिए विजयदशमी एक बहुत ही महत्त्वपूर्ण दिन है. इस दिन रावण, उसके भाई कुम्भकरण और पुत्र मेघनाद के पुतले जगह-जगह में जलाए जाते हैं.

उपाय क्या करे इस दिन ................

१. इस दिन काली गूंजा को गंगा जल और गौ माता के दूध से शुद्ध करके जो भी पास में रखता है, उसके काफी संकट दूर होते है..... ध्यान रखे की मुसीबत के समय इसका रंग अपने आप बदल जाएगा........

२. इस दिन नागकेशर के पौधा का रोपण करे और उसकी देखभाल करे.... जैसे - जैसे पौधा बढेगा आपकी उन्नति का मार्ग भी प्रशस्त होगा.....

३. इसी तरह से बरगद में पेड़ के नीचे जो भी पौधा हो उससे जड़ समेत लेकर घर में लगाये और उसकी देखभाल करे तो भी उन्नति का मार्ग प्रशस्त होता है.....

४. इस दिन सूर्यास्त के समय आधा किलो दूध में ९ बूँद शुद्ध शहद की डाल कर (अगर घर बड़ा हो तो १ किलो दूध में १८ बूँद शहद की डाले) पुरे घर में छिडकाव करे. उसके बाद जो दूध बच जाए, वो चौराहे पर रख आये. ऐसा पुरे २१ दिन करना है. घर में कैसी भी नकारात्मक शक्ति होगी वो दूर होगी. सूर्यास्त जिस समय हो, उसके १२ मिनट पहले और अस्त होने के १२ मिनट बाद.... यानी की ये २४ मिनट के अन्दर ही ये उपाय करना है....... 

५. इस दिन यदि किस्मत से कोई हिंजड़ा मिल जाए तो उसे ज़रूर कुछ न कुछ दे और अगर वो आपको बदले में कुछ दे तो उसे संभाल कर अपने पास रख ले, बहुत ही शुभ होगा.......

६. इस दिन लाल रंग से २१०० बार राम लिखे और राम शब्द जिस कागज़ पर लिखा है वहा से सारे काट ले..... इन काटे हुए कागज़ को २१०० आटे की छोटी-छोटी गोलियों में भर कर ऐसी जगह पर जाए जहा पर मछलियाँ हो........ वह पर बैठ कर "ॐ जय श्री राम" कहते हुए, एक-एक करके गोलियों को खिला दे........ संकट दूर......

७. इस दिन किसी भी संकट को दूर करने के लिए, बाबा हनुमान जी की शरण में जाए. इस दिन उपवास रख कर बाबा जी को चोला अर्पित करे (सुबह के समय), गुड - चने का भोग लगाये और संध्या समय बाबा जी को लड्डू का भोग लगाकर, १०८ बार वही बैठ कर श्री हनुमान चालीसा का पाठ करे, ध्यान दे की जब तक पाठ समाप्त ना हो जाए धूप-दीपक जलता रहे. तत्पश्चात कपूर से आरती करके, गलतियों की माफ़ी मांग कर, अपने संकट दूर करने का निवेदन करे और घर वापस आ जाए...................... 

८. इस दिन धार्मिक स्थल में गुप्त दान विशेष रूप से सहायक होगा... जीवन में उन्नति के लिए......

९. इस दिन से शुरू करते हुए, ४३ दिन तक बेसन के लड्डू किसी भी कुत्ते को खिलाना शुरू करे तो घर में बरकत होनी शुरू हो जायेगी..... ध्यान रहे की प्रतिदिन एक ही कुत्ता न हो.... मतलब की.. एक ही कुत्ते को ना दे ये लड्डू........

१०. इस दिन सवा किलो जलेबी का भोग बाबा भैरव नाथ जी को लगाये, ५ तरह की मिठाई साथ में अर्पित करके धूप-दीप करे, फिर उस जलेबी में से थोड़ी सी ले कर किसी भी कुत्ते को खिला दे, ऐसा २१ बुधवार करने से, संकट दूर होने में, मदद बाबा जी के आशीर्वाद से मिलेगी....

११. इस दिन से शुरू करते हुए, भगवान् श्री गणेश जी को एक सुपारी अर्पित करे और एक कटोरी चावल का दान करे, पुरे वर्ष भर तक, कैसी भी नज़र दोष होगी घर पर या फिर कुछ भी अप्राकर्तिक होगा, सब श्री गणेश जी के आशीर्वाद से दूर होगा.....

Friday, October 19, 2012

श्रीसुदर्शन-कवच-----

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BY SHREE ASHU BAHUGUNA ON FACEBOOK


श्रीसुदर्शन-कवच-----

‘श्रीसुदर्शन-चक्र’ भगवान् विष्णु का प्रमुख आयुध है, जिसके माहात्म्य की कथाएँ पुराणों में स्थान-स्थान पर दिखाई देती है। ‘मत्स्य-पुराण’ के अनुसार एक दिन दिवाकर भगवान् ने विश्वकर्मा जी से निवेदन किया कि ‘कृपया मेरे प्रखर तेज को कुछ कम कर दें, क्योंकि अत्यधिक उग्र तेज के कारण प्रायः सभी प्राणी सन्तप्त हो जाते हैं।’ विश्वकर्मा जी ने सूर्य को ‘चक्र-भूमि’ पर चढ़ा कर उनका तेज कम कर दिया। उस समय सूर्य से निकले हुए तेज-पुञ्जों को ब्रह्माजी ने एकत्रित कर भगवान् विष्णु के ‘सुदर्शन-चक्र’ के रुप में, भगवान् शिव के ‘त्रिशूल′-रुप में तथा इन्द्र के ‘वज्र’ के रुप में परिणत कर दिया।

‘पद्म-पुराण’ के अनुसार भिन्न-भिन्न देवताओं के तेज से युक्त ‘सुदर्शन-चक्र’ को भगवान् शिव ने श्रीकृष्ण को दिया था। ‘वामन-पुराण’ के अनुसार भी इस कथा की पुष्टि होती है। ‘शिव-पुराण’ के अनुसार ‘खाण्डव-वन’ को जलाने के लिए भगवान् शंकर ने श्रीकृष्ण को ‘सुदर्शन-चक्र’ प्रदान किया था। इसके सम्मुख इन्द्र की शक्ति भी व्यर्थ थी।

‘वामन-पुराण’ के अनुसार दामासुर नामक भयंकर असुर को मारने के लिए भगवान् शंकर ने विष्णु को ‘सुदर्शन-चक्र’ प्रदान किया था। बताया है कि एक बार भगवान् विष्णु ने देवताओं से कहा था कि ‘आप लोगों के पास जो अस्त्र हैं, उनसे असुरों का वध नहीं किया जा सकता। आप सब अपना-अपना तेज दें।’ इस पर सभी देवताओं ने अपना-अपना तेज दिया। सब तेज एकत्र होने पर भगवान् विष्णु ने भी अपना तेज दिया। फिर महादेव शंकर ने इस एकत्रित तेज के द्वारा अत्युत्तम शस्त्र बनाया और उसका नाम ‘सुदर्शन-चक्र’ रखा। भगवान् शिव ने ‘सुदर्शन-चक्र’ को दुष्टों का संहार करने तथा साधुओं की रक्षा करने के लिए विष्णु को प्रदान किया।

‘हरि-भक्ति-विलास’ में लिखा है कि ‘सुदर्शन-चक्र’ बहुत पुज्य है। वैष्णव लोग इसे चिह्न के रुप में धारण करें। ‘गरुड़-पुराण’ में ‘सुदर्शन-चक्र’ का महत्त्व बताया गया है और इसकी पूजा-विधि दी गई है। ‘श्रीमद्-भागवत’ में ‘सुदर्शन-चक्र’ की स्तुति इस प्रकार की गई है- ‘हे सुदर्शन! आपका आकार चक्र की तरह है। आपके किनारे का भाग प्रलय-कालीन अग्नि के समान अत्यन्त तीव्र है। आप भगवान् विष्णु की प्रेरणा से सभी ओर घूमते हैं। जिस प्रकार अग्नि वायु की सहायता से शुष्क तृण को जला डालती है, उसी प्रकार आप हमारी शत्रु-सेना को तत्काल जला दीजिए।’

‘विष्णु-धर्मोत्तर-पुराण’ में ‘सुदर्शन-चक्र’ का वर्णन एक पुरुष के रुप में हुआ है। इसकी दो आँखें तथा बड़ा-सा पेट है। चक्र का यह रुप अनेक अलंकारों से सुसज्जित तथा चामर से युक्त है


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Wednesday, October 10, 2012

प्रेतबाधा से मुक्ति के 10 सरल उपाय





BY ASTROLOGER SHREE MUKESH JI AGARWAL  ON FACE BOOK 

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हिन्दू धर्म में भूतों से बचने के अनेक उपाय बताए गए हैं। चरक संहिता में प्रेत बाधा से पीड़ित रोगी के लक्षण और निदान के उपाय विस्तार से मिलते हैं। 

ज्योतिष साहित्य के मूल ग्रंथों- प्रश्नमार्ग, वृहत्पराषर, होरा सार, फलदीपिका, मानसागरी आदि में ज्योतिषीय योग हैं जो प्रेत पीड़ा, पितृ दोष आदि बाधाओं से मुक्ति का उपाय बताते हैं।

अथर्ववेद में भूतों और दुष्ट आत्माओं को भगाने से संबंधित अनेक उपायों का वर्णन मिलता है। यहां प्रस्तुत है प्रेतबाधा से मुक्ति के 10 सरल उपाय।


1. ॐ या रुद्राक्ष का अभिमंत्रित लॉकेट गले में पहने और घर के बाहर एक त्रिशूल में जड़ा ॐ का प्रतीक दरवाजे के ऊपर लगाएं। सिर पर चंदन, केसर या भभूति का तिलक लगाएं। हाथ में मौली (नाड़ा) अवश्य बांध कर रखें।

2. दीपावली के दिन सरसों के तेल का या शुद्ध घी का दिया जलाकर काजल बना लें। यह काजल लगाने से भूत, प्रेत, पिशाच, डाकिनी आदि से रक्षा होती है और बुरी नजर से भी रक्षा होती है।

3. घर में रात्रि को भोजन पश्चात सोने से पूर्व चांदी की कटोरी में देवस्थान या किसी अन्य पवित्र स्थल पर कपूर तथा लौंग जला दें। इससे आकस्मिक, दैहिक, दैविक एवं भौतिक संकटों से मुक्त मिलती है।

4. प्रेत बाधा दूर करने के लिए पुष्य नक्षत्र में चिड़चिटे अथवा धतूरे का पौधा जड़सहित उखाड़ कर उसे धरती में ऐसा दबाएं कि जड़ वाला भाग ऊपर रहे और पूरा पौधा धरती में समा जाएं। इस उपाय से घर में प्रेतबाधा नहीं रहती और व्यक्ति सुख-शांति का अनुभव करता है।

5. प्रेत बाधा निवारक हनुमत मंत्र - ऊँ ऐं ह्रीं श्रीं ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रैं ऊँ नमो भगवते महाबल पराक्रमाय भूत-प्रेत पिशाच-शाकिनी-डाकिनी-यक्षणी-पूतना-मारी-महामारी, यक्ष राक्षस भैरव बेताल ग्रह राक्षसादिकम्‌ क्षणेन हन हन भंजय भंजय मारय मारय शिक्षय शिक्षय महामारेश्वर रुद्रावतार हुं फट् स्वाहा। 

इस हनुमान मंत्र का पांच बार जाप करने से भूत कभी भी निकट नहीं आ सकते।

6. अशोक वृक्ष के सात पत्ते मंदिर में रख कर पूजा करें। उनके सूखने पर नए पत्ते रखें और पुराने पत्ते पीपल के पेड़ के नीचे रख दें। यह क्रिया नियमित रूप से करें, आपका घर भूत-प्रेत बाधा, नजर दोष आदि से मुक्त रहेगा।

7. गणेश भगवान को एक पूरी सुपारी रोज चढ़ाएं और एक कटोरी चावल दान करें। यह क्रिया एक वर्ष तक करें, नजर दोष व भूत-प्रेत बाधा आदि के कारण बाधित सभी कार्य पूरे होंगे।

8. मां काली के लिए उनके नाम से प्रतिदिन अच्छी तरह से पवित्र ‍की हुई दो अगरबत्ती सुबह और दो दिन ढलने से पूर्व लगाएं और उनसे घर और शरीर की रक्षा करने की प्रार्थना करें।

9. हनुमान चालीसा और गजेंद्र मोक्ष का पाठ करें और हनुमान मंदिर में हनुमान जी का श्रृंगार करें व चोला चढ़ाएं।

10. मंगलवार या शनिवार के दिन बजरंग बाण का पाठ शुरू करें। यह डर और भय को भगाने का सबसे अच्छा उपाय है। 

इस तरह यह कुछ सरल और प्रभावशाली टोटके हैं, जिनका कोई प्रतिकूल प्रभाव नहीं होता। ध्यान रहें, नजर दोष, भूत-प्रेत बाधा आदि से मुक्ति हेतु उपाय ही करने चाहिए टोना या टोटके नहीं।

सावधानी : सदा हनुमानजी का स्मरण करें। चतुर्थी, तेरस, चौदस और अमावस्या को पवि‍त्रता का पालन करें। शराब न पीएं और न ही मांस का सेवन करें।


Monday, October 8, 2012

शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य


BY ASTROLOGER SHREE ASHU BAHUGUNA ON FACE BOOK 

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शाबर मन्त्र साधना” के तथ्य

१॰ इस साधना को किसी भी जाति, वर्ण, आयु का पुरुष या स्त्री कर सकती है।

२॰ इन मन्त्रों की साधना में गुरु की इतनी आवश्यकता नहीं रहती, क्योंकि इनके प्रवर्तक स्वयं सिद्ध साधक रहे हैं। इतने पर भी कोई निष्ठावान् साधक गुरु बन जाए, तो कोई आपत्ति नहीं क्योंकि किसी होनेवाले विक्षेप से वह बचा सकता है।

३॰ साधना करते समय किसी भी रंग की धुली हुई धोती पहनी जा सकती है तथा किसी भी रंग का आसन उपयोग में लिया जा सकता है।

४॰ साधना में जब तक मन्त्र-जप चले घी या मीठे तेल का दीपक प्रज्वलित रखना चाहिए। एक ही दीपक के सामने कई मन्त्रों की साधना की जा सकती है।

५॰ अगरबत्ती या धूप किसी भी प्रकार की प्रयुक्त हो सकती है, किन्तु शाबर-मन्त्र-साधना में गूगल तथा लोबान की अगरबत्ती या धूप की विशेष महत्ता मानी गई है।

६॰ जहाँ ‘दिशा’ का निर्देश न हो, वहाँ पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके साधना करनी चाहिए। मारण, उच्चाटन आदि दक्षिणाभिमुख होकर करें। मुसलमानी मन्त्रों की साधना पश्चिमाभिमुख होकर करें।

७॰ जहाँ ‘माला’ का निर्देश न हो, वहाँ कोई भी ‘माला’ प्रयोग में ला सकते हैं। ‘रुद्राक्ष की माला सर्वोत्तम होती है। वैष्णव देवताओं के विषय में ‘तुलसी’ की माला तथा मुसलमानी मन्त्रों में ‘हकीक’ की माला प्रयोग करें। माला संस्कार आवश्यक नहीं है। एक ही माला पर कई मन्त्रों का जप किया जा सकता है।

८॰ शाबर मन्त्रों की साधना में ग्रहण काल का अत्यधिक महत्त्व है। अपने सभी मन्त्रों से ग्रहण काल में कम से कम एक बार हवन अवश्य करना चाहिए। इससे वे जाग्रत रहते हैं।

९॰ हवन के लिये मन्त्र के अन्त में ‘स्वाहा’ लगाने की आवश्यकता नहीं होती। जैसा भी मन्त्र हो, पढ़कर अन्त में आहुति दें।

१०॰ ‘शाबर’ मन्त्रों पर पूर्ण श्रद्धा होनी आवश्यक है। अधूरा विश्वास या मन्त्रों पर अश्रद्धा होने पर फल नहीं मिलता।

११॰ साधना काल में एक समय भोजन करें और ब्रह्मचर्य-पालन करें। मन्त्र-जप करते समय स्वच्छता का ध्यान रखें।

१२॰ साधना दिन या रात्रि किसी भी समय कर सकते हैं।

१३॰ ‘मन्त्र’ का जप जैसा-का-तैसा करं। उच्चारण शुद्ध रुप से होना चाहिए।

१४॰ साधना-काल में हजामत बनवा सकते हैं। अपने सभी कार्य-व्यापार या नौकरी आदि सम्पन्न कर सकते हैं।

१५॰ मन्त्र-जप घर में एकान्त कमरे में या मन्दिर में या नदी के तट- कहीं भी किया जा सकता है।

१६॰ ‘शाबर-मन्त्र’ की साधना यदि अधूरी छूट जाए या साधना में कोई कमी रह जाए, तो किसी प्रकार की हानि नहीं होती।

१७॰ शाबर मन्त्र के छः प्रकार बतलाये गये हैं- (क) सवैया, (ख) अढ़ैया, (ग) झुमरी, (घ) यमराज, (ड़) गरुड़ा, तथा (च) गोपाल शाबर।.................................

शाबर मन्त्रों का आशयः-
स्व॰ वामन शिवराम आप्टे ने सन् १९४२ ई॰ में अपने ‘संस्कृत-कोष’ में ‘शाबर’ शब्द की व्युत्पत्ति इस प्रकार दी है;‘शब (व)-र-अण्-शाबरः, शावरः, शाबरी।’

अर्थ में ‘जंगली जाति’ या ‘पर्वतीय’ लोगों द्वारा बोली जानीवाली ‘भाषा’ बताया गया है। वह एक प्रकार का मन्त्र भी है, इसका वहँ कोई उल्लेख नहीं है।

गोस्वामी तुलसीदास जी ने ‘श्रीरानचरितमानस’ (संवत् १६३१) में शाबर मन्त्रों का महत्त्व स्वीकार किया है, यह भी रहस्योद्घाटन भी किया है कि इस ‘साबर-मन्त्र-जाल’ के स्रष्टा भी शिव-पार्वती ही हैं।

कलि बिलोकि जग-हित हर गिरिजा, ‘साबर-मन्त्र-जाल’ जिन्ह सिरिजा।
अनमिल आखर अरथ न जापू, प्रगट प्रभाव महेश प्रतापू।।

आधुनिक काल में महा-महोपाध्याय स्व॰ पण्डित गोपीनाथ कविराज जी ने अपने प्रसिद्ध ‘तान्त्रिक-साहित्य’ ग्रन्थ के पृष्ठ ६२३-२४ में ‘शाबर’- सम्बन्धी पाँच पाण्डुलिपियों का उल्लेख किया हैः

१॰ शाबर-चिन्तामणि पार्वती-पुत्र आदिनाथ विरचित, २॰ शाबर तन्त्र गोरखनाथ विरचित, ३॰ शाबर तन्त्र सर्वस्व, शाबर मन्त्र, तथा ५॰ शाबर मन्त्र चिन्तामणि।

उक्त पाँच पाण्डुलिपियों में सा प्रथम पाण्डुलिपि एशियाटिक सोसाइटी बंगाल के सूचीपत्र में संख्या ६१०० से सम्बन्धित है। द्वितीय पाण्डुलिपि की चार प्रतियों का उल्लेख कविराज जी ने किया है। पहली उक्त सोसाइटी की सूची-पत्र ६०९९ से सम्बन्धित है, दूसरी म॰म॰ हरप्रसाद शास्त्री के विवरण की सं॰ १।३५९ है। तीसरी प्रति डेकन कालेज, पूना सूचीपत्र ५८० है। चौथी प्रति की तीन पाण्डुलिपियों का उल्लेख है, जो संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के सूचीपत्र की संख्या २३८६७, २४८१५ और २४५७९ पर वर्णित है। ये तीनों अपूर्ण है। तृतीय पाण्डुलिपि ‘शाबर-तन्त्र-सर्वस्व’ के सम्बन्ध में अपुष्ट कथन लिखा है।

चतुर्थ पाण्डुलिपि की तीन प्रतियों का उल्लेख हुआ है। पहली प्रति एशियाटिक सोसाइटी के सूचीपत्र की संख्या ६५५८ है। दूसरी प्रति बड़ौदा पुस्तकालय के अकारादि सूचीपत्र की संख्या ५६१४ पर है। तीसरी प्रति की दो पाण्डुलिपियां संस्कृत विश्वविद्यालय, वाराणसी के सूचीपत्र की संख्या २३८५६ और २६२३२ से सम्बद्ध है। पञ्चम पाण्डुलिपि एशियाटिक सोसाइटी के सूचीपत्र की संख्या ६१०० पर उल्लिखित है।

‘उ॰प्र॰ हिन्दी संस्थान’ द्वारा प्रकाशित ‘हिन्दू धर्म कोश’ में सम्पादक डा‌॰ चन्द्रबली पाण्डेय ने ‘शाबर’ शब्द को अपने ‘कोश’ में स्थान तक नहीं दिया है-जबकि ‘शबर-शंकर-विलास’, ‘शबर-स्वामी’, ‘शाबर-भाष्य’ जैसे शब्दों को उन्होनें सम्मिलित किया है।

श्रीतारानाथ तर्क-वाचस्पति भट्टाचार्य द्वारा संकलित एवं चौखम्भा संस्कृत सीरीज आफिस, वाराणसी द्वारा प्रकाशित प्रख्यात ‘वृहत् संस्कृताभिधानम्’ (कोश) में भी ‘शबर’ या ‘शाबर’ शब्द का उल्लेख नहीं है।

उक्त विश्लेषण के पश्चात भी शाबर विद्या सर्वत्र भारत में अपना एक विशिष्ट अस्तित्व तथा प्रभाव रखती है। वस्तुतः देखा जाये तो समस्त विश्व में शाबर विद्या या समानार्थी विद्या प्रचलन में है। ज्ञान की संज्ञा भले ही बदल जाये मूल भावना तथा क्रिया वही रहती है।......................................

सर्वारिष्ट निवारण स्तोत्र-

ॐ गं गणपतये नमः। सर्व-विघ्न-विनाशनाय, सर्वारिष्ट निवारणाय, सर्व-सौख्य-प्रदाय, बालानां बुद्धि-प्रदाय, नाना-प्रकार-धन-वाहन-भूमि-प्रदाय, मनोवांछित-फल-प्रदाय रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ गुरवे नमः, ॐ श्रीकृष्णाय नमः, ॐ बलभद्राय नमः, ॐ श्रीरामाय नमः, ॐ हनुमते नमः, ॐ शिवाय नमः, ॐ जगन्नाथाय नमः, ॐ बदरीनारायणाय नमः, ॐ श्री दुर्गा-देव्यै नमः।।
ॐ सूर्याय नमः, ॐ चन्द्राय नमः, ॐ भौमाय नमः, ॐ बुधाय नमः, ॐ गुरवे नमः, ॐ भृगवे नमः, ॐ शनिश्चराय नमः, ॐ राहवे नमः, ॐ पुच्छानयकाय नमः, ॐ नव-ग्रह रक्षा कुरू कुरू नमः।।

ॐ मन्येवरं हरिहरादय एव दृष्ट्वा द्रष्टेषु येषु हृदयस्थं त्वयं तोषमेति विविक्षते न भवता भुवि येन नान्य कश्विन्मनो हरति नाथ भवान्तरेऽपि। ॐ नमो मणिभद्रे। जय-विजय-पराजिते ! भद्रे ! लभ्यं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ भूर्भुवः स्वः तत्-सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।। सर्व विघ्नं शांन्तं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक-भैरवाय आपदुद्धारणाय महान्-श्याम-स्वरूपाय दिर्घारिष्ट-विनाशाय नाना प्रकार भोग प्रदाय मम (यजमानस्य वा) सर्वरिष्टं हन हन, पच पच, हर हर, कच कच, राज-द्वारे जयं कुरू कुरू, व्यवहारे लाभं वृद्धिं वृद्धिं, रणे शत्रुन् विनाशय विनाशय, पूर्णा आयुः कुरू कुरू, स्त्री-प्राप्तिं कुरू कुरू, हुम् फट् स्वाहा।।

ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः। ॐ नमो भगवते, विश्व-मूर्तये, नारायणाय, श्रीपुरूषोत्तमाय। रक्ष रक्ष, युग्मदधिकं प्रत्यक्षं परोक्षं वा अजीर्णं पच पच, विश्व-मूर्तिकान् हन हन, ऐकाह्निकं द्वाह्निकं त्राह्निकं चतुरह्निकं ज्वरं नाशय नाशय, चतुरग्नि वातान् अष्टादष-क्षयान् रांगान्, अष्टादश-कुष्ठान् हन हन, सर्व दोषं भंजय-भंजय, तत्-सर्वं नाशय-नाशय, शोषय-शोषय, आकर्षय-आकर्षय, मम शत्रुं मारय-मारय, उच्चाटय-उच्चाटय, विद्वेषय-विद्वेषय, स्तम्भय-स्तम्भय, निवारय-निवारय, विघ्नं हन हन, दह दह, पच पच, मथ मथ, विध्वंसय-विध्वंसय, विद्रावय-विद्रावय, चक्रं गृहीत्वा शीघ्रमागच्छागच्छ, चक्रेण हन हन, पा-विद्यां छेदय-छेदय, चौरासी-चेटकान् विस्फोटान् नाशय-नाशय, वात-शुष्क-दृष्टि-सर्प-सिंह-व्याघ्र-द्विपद-चतुष्पद अपरे बाह्यं ताराभिः भव्यन्तरिक्षं अन्यान्य-व्यापि-केचिद् देश-काल-स्थान सर्वान् हन हन, विद्युन्मेघ-नदी-पर्वत, अष्ट-व्याधि, सर्व-स्थानानि, रात्रि-दिनं, चौरान् वशय-वशय, सर्वोपद्रव-नाशनाय, पर-सैन्यं विदारय-विदारय, पर-चक्रं निवारय-निवारय, दह दह, रक्षां कुरू कुरू, ॐ नमो भगवते, ॐ नमो नारायणाय, हुं फट् स्वाहा।।

ठः ठः ॐ ह्रीं ह्रीं। ॐ ह्रीं क्लीं भुवनेश्वर्याः श्रीं ॐ भैरवाय नमः। हरि ॐ उच्छिष्ट-देव्यै नमः। डाकिनी-सुमुखी-देव्यै, महा-पिशाचिनी ॐ ऐं ठः ठः। ॐ चक्रिण्या अहं रक्षां कुरू कुरू, सर्व-व्याधि-हरणी-देव्यै नमो नमः। सर्व प्रकार बाधा शमनमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू फट्। श्रीं ॐ कुब्जिका देव्यै ह्रीं ठः स्वाहा।।
शीघ्रमरिष्ट निवारणं कुरू कुरू शाम्बरी क्रीं ठः स्वाहा।।

शारिका भेदा महामाया पूर्णं आयुः कुरू। हेमवती मूलं रक्षा कुरू। चामुण्डायै देव्यै शीघ्रं विध्नं सर्वं वायु कफ पित्त रक्षां कुरू। मन्त्र तन्त्र यन्त्र कवच ग्रह पीडा नडतर, पूर्व जन्म दोष नडतर, यस्य जन्म दोष नडतर, मातृदोष नडतर, पितृ दोष नडतर, मारण मोहन उच्चाटन वशीकरण स्तम्भन उन्मूलनं भूत प्रेत पिशाच जात जादू टोना शमनं कुरू। सन्ति सरस्वत्यै कण्ठिका देव्यै गल विस्फोटकायै विक्षिप्त शमनं महान् ज्वर क्षयं कुरू स्वाहा।।

सर्व सामग्री भोगं सप्त दिवसं देहि देहि, रक्षां कुरू क्षण क्षण अरिष्ट निवारणं, दिवस प्रति दिवस दुःख हरणं मंगल करणं कार्य सिद्धिं कुरू कुरू। हरि ॐ श्रीरामचन्द्राय नमः। हरि ॐ भूर्भुवः स्वः चन्द्र तारा नव ग्रह शेषनाग पृथ्वी देव्यै आकाशस्य सर्वारिष्ट निवारणं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं श्रीं बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीवासुदेवाय नमः, बटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीविष्णु भगवान् मम अपराध क्षमा कुरू कुरू, सर्व विघ्नं विनाशय, मम कामना पूर्णं कुरू कुरू स्वाहा।।

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीबटुक भैरवाय आपदुद्धारणाय सर्व विघ्न निवारणाय मम रक्षां कुरू कुरू स्वाहा।।
ॐ ऐं ह्रीं क्लीं श्रीं ॐ श्रीदुर्गा देवी रूद्राणी सहिता, रूद्र देवता काल भैरव सह, बटुक भैरवाय, हनुमान सह मकर ध्वजाय, आपदुद्धारणाय मम सर्व दोषक्षमाय कुरू कुरू सकल विघ्न विनाशाय मम शुभ मांगलिक कार्य सिद्धिं कुरू कुरू स्वाहा।।

एष विद्या माहात्म्यं च, पुरा मया प्रोक्तं ध्रुवं। शम क्रतो तु हन्त्येतान्, सर्वाश्च बलि दानवाः।। य पुमान् पठते नित्यं, एतत् स्तोत्रं नित्यात्मना। तस्य सर्वान् हि सन्ति, यत्र दृष्टि गतं विषं।। अन्य दृष्टि विषं चैव, न देयं संक्रमे ध्रुवम्। संग्रामे धारयेत्यम्बे, उत्पाता च विसंशयः।। सौभाग्यं जायते तस्य, परमं नात्र संशयः। द्रुतं सद्यं जयस्तस्य, विघ्नस्तस्य न जायते।। किमत्र बहुनोक्तेन, सर्व सौभाग्य सम्पदा। लभते नात्र सन्देहो, नान्यथा वचनं भवेत्।। ग्रहीतो यदि वा यत्नं, बालानां विविधैरपि। शीतं समुष्णतां याति, उष्णः शीत मयो भवेत्।। नान्यथा श्रुतये विद्या, पठति कथितं मया। भोज पत्रे लिखेद् यन्त्रं, गोरोचन मयेन च।। इमां विद्यां शिरो बध्वा, सर्व रक्षा करोतु मे। पुरूषस्याथवा नारी, हस्ते बध्वा विचक्षणः।। विद्रवन्ति प्रणश्यन्ति, धर्मस्तिष्ठति नित्यशः। सर्वशत्रुरधो यान्ति, शीघ्रं ते च पलायनम्।।

‘श्रीभृगु संहिता’ के सर्वारिष्ट निवारण खण्ड में इस अनुभूत स्तोत्र के 40 पाठ करने की विधि बताई गई है। इस पाठ से सभी बाधाओं का निवारण होता है।

किसी भी देवता या देवी की प्रतिमा या यन्त्र के सामने बैठकर धूप दीपादि से पूजन कर इस स्तोत्र का पाठ करना चाहिये। विशेष लाभ के लिये ‘स्वाहा’ और ‘नमः’ का उच्चारण करते हुए ‘घृत मिश्रित गुग्गुल’ से आहुतियाँ दे सकते हैं।......................................

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