Wednesday, May 23, 2012

श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति

हिन्दू धर्म में भगवान श्री गणेश ऐसे देवता के रूप में पूजनीय है, जिनका नाम जपने से ही कार्य में आने वाली जानी-अनजानी विघ्र, बाधाओं का नाश हो जाता है है। 

दरअसल, शुभ और मंगल की चाहत तभी पूरी हो सकती है, जब बुद्धि और विवेक के संतुलन से लक्ष्य तक पहुंचा जाए, किंतु तय लक्ष्य को पाने के लिए यह भी जरूरी है कि उसके लिए की जाने वाली कोशिशों के दौरान आने वाली बाधाओं से निपटने की भी तैयारी रखी जाए। फिर चाहे, ये लक्ष्य गृहस्थी, व्यापार या फिर परीक्षा में सफलता से जुड़े ही क्यों न हो? 

यहां श्री गणेश का ऐसा मंत्र बताया जा रहा है, जिसमें श्री गणेश के 12 नामों की स्तुति है। इन 12 नामों का ध्यान सुख-सफलता की सारी बाधाओं को दूर कर देता है। जानिए, यह श्री गणेश मंत्र - 

- बुधवार या हर रोज इस मंत्र का सुबह श्री गणेश की सामान्य पूजा के साथ जप बेहतर नतीजे देता है। पूजा में दूर्वा चढ़ाना और मोदक का यथाशक्ति भोग लगाना न भूलें।

गणपर्तिविघ्रराजो लम्बतुण्डो गजानन:।

द्वेमातुरश्च हेरम्ब एकदन्तो गणाधिप:।।

विनायकश्चायकर्ण: पशुपालो भावात्मज:।

द्वाद्वशैतानि नामानि प्रातरूत्थाय य: पठेत्

विश्वं तस्य भवेद्वश्यं न च विघ्रं भवते् कश्चित।।


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सुख-वैभव की कामनापूर्ति के लिए यह सरल मंत्र है -








जीवन में दरिद्रता शाप के समान मानी जाती है। खासतौर पर धन की कमजोरी से जन्मी तन, मन की परेशानियां इंसान के गुण, रूप व शक्ति को लील जाती है। इस तरह धन का अभाव साख गिराकर गुमनामी के अंधेरों मे धकेल सकता है। यही कारण है कि हर इंसान जरूरतों की पूर्ति व अभावों से बचने के लिए अधिक से अधिक धन बटोरने की कोशिश करता है। 

ऐसे ही प्रयासों के तहत धार्मिक उपायों में भगवान गणेश की पूजा, बुद्धि, ज्ञान व बल द्वारा सुख-समृद्धि देने वाली मानी जाती है। 

सुख-वैभव की कामनापूर्ति के लिए शास्त्रों में चतुर्थी व बुधवार को कुछ विशेष मंत्रों से भगवान गणेश का ध्यान बहुत मंगलकारी बताया गया है। इनमें षडाक्षरी गणेश मंत्र अर्थ, यानी धन व सुख-सुविधाओं के साथ धर्म, काम व मोक्ष देने वाला भी माना गया है। मान्यता है कि यह सिद्ध मंत्र ब्रह्मदेव ने सृष्टि रचना के लिए प्रकट हुई चतुर्थी स्वरूपा देवी को श्री गणेश की भक्ति के लिए दिया था। जानिए यह मंत्र विशेष - 

- सालभर हर माह की कृष्णपक्ष या शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को श्री गणेश की केसरिया चंदन, अक्षत, दूर्वा, सिंदूर से पूजा व गुड़ के लड्डुओं का भोग लगाने के बाद इस गणेश मंत्र का स्मरण करें या पूर्व दिशा की ओर मुख कर पीले आसन पर बैठ हल्दी या चन्दन की माला से कम से कम 108 बार जप करें। मंत्र जप के बाद भगवान गणेश की चंदन धूप व गोघृत आरती कर वैभव व यश की कामना करें। यह सरल मंत्र है - 

वक्रतुण्डाय हुम्।।




और कितना बाकी है कलियुग! जानिए, दिलचस्प आंकड़े

ARTICLE FROM DAINIK BHASKAR - 23/5/12-


जब-जब धर्म की हानि होती है, ईश्वर अवतार लेकर अधर्म का अंत करते हैं। इस संदेश के साथ अलग-अलग युगों में जगत को दु:ख और भय से मुक्त करने वाले ईश्वर के अनेक अवतारों के पौराणिक प्रसंग हैं। दरअसल, इनमें सत्य और अच्छे कर्मों को अपनाने के भी कई सबक हैं। साथ ही इनके जरिए युग के बदलाव के साथ प्राणियों के कर्म, विचार व व्यवहार में अधर्म और पापकर्मों के बढ़ने के भी संकेत दिए गए हैं।

इसी कड़ी में सतयुग, त्रेता, द्वापर के बाद कलियुग के लिए बताया गया है कि इसमें अधर्म का ज्यादा बोलबाला होगा, जिसके अंत के लिए भगवान विष्णु का कल्कि रूप में दसवां अवतार होगा। रामचरितमानस में भी कलियुग में फैलने वाले अधर्म का वर्णन मिलता है।

आज के दौर में भी व्यावहारिक जीवन में आचरण, विचार और वचनों में दिखाई दे रहे सत्य, संवेदना, दया या परोपकार जैसे भावों के अभाव से आहत मन अनेक अवसरों पर कलियुग के अंत और कल्कि अवतार से जुड़ी जिज्ञासा को और बढ़ाता है। 

हिन्दू धर्मग्रंथ भविष्य पुराण में अलग-अलग युगों की गणना व अवधि बताई गई है। इस आधार पर जानते हैं कलियुग की अवधि कितनी लंबी या बाकी है?

पुराण के मुताबिक मानव का एक वर्ष देवताओं के एक अहोरात्र यानी दिन-रात के बराबर है। जिसमें उत्तरायण दिन व दक्षिणायन रात मानी जाती है। दरअसल, एक सूर्य संक्रान्ति से दूसरी सूर्य संक्रान्ति की अवधि सौर मास कहलाती है। मानव गणना के ऐसे 12 सौर मासों का 1 सौर वर्ष ही देवताओं का एक अहोरात्र होता है। ऐसे ही 30 अहोरात्र, देवताओं के एक माह और 12 मास एक दिव्य वर्ष कहलाता है।

देवताओं के इन दिव्य वर्षो के आधार पर चार युगों की मानव सौर वर्षों में अवधि इस तरह है -

सतयुग 4800 (दिव्य वर्ष) 17,28,000 (सौर वर्ष)

त्रेतायुग 3600 (दिव्य वर्ष) 12,96,100 (सौर वर्ष)

द्वापरयुग 2400 (दिव्य वर्ष) 8,64,000 (सौर वर्ष)

कलियुग 1200 (दिव्य वर्ष) 4,32,000 (सौर वर्ष)

इस तरह सभी दिव्य वर्ष मिलाकर 12000 दिव्य वर्ष देवताओं का एक युग या महायुग कहलाता है, जो चार युगों के सौर वर्षों के योग 43,200,000 वर्षों के बराबर होता है।

इन पेड़ों की जड़ है चमत्कारी

FROM DAINIK BHASKAR - 23/5/12-


ज्योतिष एक विज्ञान है जो न केवल भूत, भविष्य और वर्तमान की जानकारी देता है बल्कि जीवन को सुखी और समृद्धिशाली बनाने का अचूक उपाय भी बताता है। जन्मपत्रिका के इन घरों में ग्रहों की अच्छी-बुरी स्थिति के अनुसार ही हमारा जीवन चलता है। यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में कोई ग्रह अशुभ स्थिति में हो तो उसे कई प्रकार की परेशानियों का सामना करना पड़ता है। 

अशुभ फल देने वाले ग्रहों को अपने पक्ष में करने के लिए कई प्रकार के उपाय बताए गए हैं। ज्योतिष के अनुसार ग्रहों से शुभ प्रभाव प्राप्त करने के लिए संबंधित ग्रह का रत्न पहनना भी एक अचूक उपाय है।

सामान्यत: शुद्ध या असली रत्न काफी कीमती होते हैं जो कि आम लोगों की पहुंच से काफी दूर होते हैं। इसी वजह से कई लोग रत्न पहनना तो चाहते हैं लेकिन धन अभाव में इन्हें धारण नहीं कर पाते। ज्योतिष के अनुसार रत्नों से प्राप्त होने वाला शुभ प्रभाव अलग-अलग ग्रहों से संबंधित पेड़ों की जड़ों को धारण करने से भी प्राप्त किया जा सकता है।

सभी ग्रहों का अलग-अलग पेड़ों से सीधा संबंध होता है। अत: इन पेड़ों की जड़ों को धारण करने मात्र से अशुभ ग्रहों के प्रभाव नष्ट हो जाएंगे और धन संबंधी परेशानियां दूर होने लगेंगी। साथ ही पैसा प्राप्त करने में जो रुकावटें आ रही हैं वे भी दूर होने लगेंगी।

- यदि किसी व्यक्ति की कुंडली में सूर्य अशुभ प्रभाव दे रहा हो और सूर्य के लिए माणिक रत्न बताया गया है। माणिक के विकल्प के रूप में बेलपत्र की जड़ लाल या गुलाबी धागे में रविवार को धारण करें।

- चंद्र के शुभ प्रभाव के लिए सोमवार को सफेद वस्त्र में खिरनी की जड़ सफेद धागे के साथ धारण करें।

- मंगल को बलवान बनाने के लिए अनंत मूल या खेर की जड़ को लाल वस्त्र के साथ लाल धागे में डालकर मंगलवार को धारण करें।

- बुधवार के दिन हरे वस्त्र के साथ विधारा (आंधीझाड़ा) की जड़ को हरे धागे में पहनने से बुध के अशुभ प्रभाव दूर होते हैं।

- गुरु ग्रह अशुभ हो तो केले की जड़ को पीले कपड़े में बांधकर पीले धागे में गुरुवार को धारण करें।

- गुलर की जड़ को सफेद वस्त्र में लपेट कर शुक्रवार को सफेद धागे के साथ गले में धारण करने से शुक्र ग्रह से शुभ फल प्राप्त होते हैं।

-शनि देव को प्रसन्न करने के लिए शमी पेड़ की जड़ को शनिवार के दिन नीले कपड़े में बांधकर नीले धागे में धारण करना चाहिए।

-राहु को बल देने के लिए सफेद चंदन का टुकड़ा नीले धागे में बुधवार के दिन धारण करें।

- केतु के शुभ प्रभाव के लिए अश्वगंधा की जड़ नीले धागे में गुरुवार के दिन धारण करें।

ये सभी जड़े बाजार से आसानी से प्राप्त की जा सकती हैं। सामान्यत: ज्योतिष संबंधी सामग्रियों के विक्रेताओं के यहां इस प्रकार जड़ें मिल सकती हैं। इसके अलावा कुछ वृद्ध लोगों को भी इन जड़ों की जानकारी हो सकती है। उनसे भी इस संबंध मदद प्राप्त की जा सकती है।