Wednesday, July 24, 2013

श्रावन में शिव-पूजा



दोस्तों, आज से श्रावन कि शिव-पूजा शुरू हो गई है. 

दैनिक भास्कर के "मधुरिमा" अंक में मेरी कवर-स्टोरी आई है, कृपया 

जरूर पढ़े !

आशुतोष जोशी

=====================

A spiritual poem by Ashutosh Joshi

हे महादेव,
आप विस्मृत नही, विश्वास है,
सम्मुख नही, पर पास है.


जीवन का प्रकाश है,
तिमिर का नाश है.
आप जल है,आप वायु है,
आप धरती है, आप आकाश है.
आप ध्यान है,आप पूजा है,
आप ही सुख है, आप ही विमुख है.
आप सद्दृश्य है, आप अदृश्य है,
आप ही भ्रांति है,आप ही शांति है.
आप सुरक्षा है,आप कवच है,
आप ही झूठ है,आप ही सच है.
हे महादेव,
रक्षा करे,रक्षा करे.

Wednesday, July 17, 2013

19 जुलाई - पूजा और सुफल हेतु विशेष दिन ( दैनिक भास्कर से साभार )




शास्त्रों के अनुसार इस सृष्टि के पालनहार श्रीहरि यानि भगवान विष्णु हैं और उनकी पूजा से देवी लक्ष्मी के साथ ही सभी देवी-देवताओं की कृपा प्राप्त हो जाती है। क्या आप जानते हैं कि श्रीहरि भी प्रतिवर्ष कुछ निश्चित समय के लिए विश्राम करते हैं, शेषनाग की शय्या पर शयन करते हैं।

जी हां, यह सत्य है कि भगवान विष्णु भी आराम करते हैं। ऐसी पौराणिक मान्यता है कि भगवान श्रीहरि चार माह के लिए क्षीरसागर में शयन करते हैं।

इस वर्ष श्रीहरि के सोने का समय 19 जुलाई से प्रारंभ हो रहा है। अत: यह दिन बेहद खास और इस दिन कुछ खास उपाय किए जाने चाहिए


हिन्दी पंचांग के अनुसार प्रतिवर्ष आषाढ़ माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी से भगवान विष्णु शयन करते हैं। इसी वजह से इस एकादशी को देवशयनी एकादशी कहा जाता है। इसके बाद वे कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की एकादशी से पुन: नींद त्यागकर उठ जाते हैं। इसी कारण इस एकादशी को देवउठनी एकादशी कहते हैं।

इस वर्ष 2013 में देवशयनी एकादशी 19 जुलाई शुक्रवार को आ रही है। अत: 19 जुलाई के दिन और इस दिन के बाद कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार खान-पान और दैनिक कार्यों में भी कई प्रकार के बदलाव इन चार माह में किए जाने चाहिए। इन बदलावों से हमारी सेहत तो ठीक रहेगी साथ ही धन संबंधी मामलों में भी लाभ मिलेगा।

देवशयन एकादशी के दिन से कार्तिक शुक्ल दशमी तक किसी भी प्रकार के मांगलिक कार्य करना वर्जित किए गए हैं। मांगलिक कार्य जैसे विवाह, गृह प्रवेश, विवाह, मूर्तियों की प्राण-प्रतिष्ठा, यज्ञ-हवन, किसी भी प्रकार के संस्कार आदि।
इन सभी कार्यों में भगवान श्रीहरि की विशेष उपस्थिति अनिवार्य होती है। ऐसे में जब भगवान के शयन का समय होता है तब वे इन कार्यों में उपस्थित नहीं होते हैं। इसी वजह से इन चार माह में मांगलिक कार्य नहीं करना चाहिए।

एक वर्ष में 24 एकादशियां आती हैं और इन दिनों में उपवास या व्रत रखने की परंपरा है। देवशयनी एकादशी पर व्रत रखा जाता है। व्रत रखने के साथ कुछ और भी नियम हैं जिनका पालन करना चाहिए।
वर्तमान में वर्षा ऋतु चल रही है और इस समय में स्वास्थ्य संबंधी परेशानियां अधिक होती हैं। क्योंकि हम खान-पान में सावधानी नहीं रखते हैं।

देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक चार माह होते हैं। इन चार माह को चातुर्मास कहा जाता है।
चातुर्मास में खाने-पीने की कई चीजें स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। अत: आगे जानिए इस समय में क्या खाना चाहिए और क्या नहीं खाना चाहिए।

बारिश के दिनों में पत्तेदार सब्जियां हमारे स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकती हैं। अत: इन सब्जियों का त्याग करना चाहिए। इन दिनों बारिश की वजह से सूर्य और चंद्रमा दोनों के ही दर्शन नहीं हो पाते हैं। ना ही इनसे मिलने वाली ऊर्जा हम तक पहुंच पाती है। इसी वजह से बारिश के दिनों में हमारी पाचन शक्ति बहुत कम हो जाती है। सूर्य और चंद्र से मिलने वाली ऊर्जा हमारे पाचन तंत्र को मजबूती प्रदान करती है।

इसके साथ ही वर्षा के कारण हम अधिक शारीरिक श्रम भी नहीं कर पाते हैं। जिससे भोजन ठीक से पच नहीं पाता है। जो कि स्वास्थ्य के हानिकारक है। इसी वजह से इन दिनों में व्रत-उपवास का काफी महत्व है। ऐसा खाना न खाएं जो आसानी से पचता नहीं है।

देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की विधि-विधान से पूजा करनी चाहिए। पूजन के लिए श्रीहरि की प्रतिमा को सुंदर वस्त्रों से सजाएं। गादी एवं तकिए पर श्रीविष्णु की प्रतिमा को शयन करवाएं। इस दिन भक्त व्रत रखना चाहिए। जो भी व्यक्ति इस एकादशी पर व्रत रखता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं। महालक्ष्मी की विशेष कृपा प्राप्त होती है। देवशयनी एकादशी से देवउठनी एकादशी तक हमें मधुर स्वर के लिये गुड़, लंबी उम्र एवं संतान प्राप्ति के लिये तेल, शत्रु बाधा से मुक्ति के लिये कड़वे तेल, सौभाग्य के लिये मीठा तेल आदि का त्याग करना चाहिए। इसी प्रकार वंश वृद्धि के लिये दूध का और बुरे कर्म के अशुभ फल से मुक्ति के लिये उपवास करना चाहिए।

देवशयनी एकादशी के संबंध में शास्त्रों में कई कथाएं बताई गई हैं। यहां जानिए उन्हीं कथाओं में से एक कथा। यह काफी प्रचलित है। कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने वामन रूप में दैत्यराज बलि से तीन पग धरती मांगी थी। तब राजा बलि ने उन्हें तीन पग जमीन देने का वचन दिया।

वामन अवतार ने एक पग में पृथ्वी, दूसरे पग में आकाश और सभी दिशाओं को नाप लिया। तब राजा बलि ने तीसरा पग रखने के लिए स्वयं का शीश आगे कर दिया। इससे श्रीहरि प्रसन्न हो गए। तब उन्होंने राजा से वरदान मांगने को कहा। राजा बली ने वरदान में श्रीहरि को ही मांग लिया और कहा अब आप मेरे यहां निवास करेंगे। तब महालक्ष्मी ने अपने पति श्रीहरि को बलि के बंधन से मुक्त करवाने के लिए राजा के हाथ पर रक्षासूत्र बांधा और उसे भाई बना लिया। महालक्ष्मी ने राजा को भाई बनाकर निवेदन किया कि वे भगवान विष्णु को उनके वचन से मुक्त करें।

राजा बलि ने श्रीहरि को मुक्त कर दिया लेकिन उनसे चार माह तक सुतल लोक में रहने का वचन ले लिया।
तभी से भगवान विष्णु के साथ ही ब्रह्मा और शिव भी इस वचन का पालन करते हैं। मान्यताओं के अनुसार विष्णु के बाद महादेव महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक, चार-चार माह सुतल यानी भूमि के अंदर निवास करते हैं। 

Saturday, July 13, 2013

मंत्र जप की अहमियत एवं नियम

Collection by Ashutosh Joshi ( Vastu Consultant, Gemmologist & Palmist)

Photo By -http://www.astrospiritualonline.com


धार्मिक उपायों में कामनाएं पूरी करने, कष्टों से रक्षा, गंभीर रोगों से छुटकारा या आध्यात्मिक सुख पाने जैसे जीवन से जुड़े कई लक्ष्यों को पाने के लिए मंत्र जप की अहमियत बताई गई है। 
दरअसल, मंत्रों के अलग-अलग रूप देवीय शक्ति का स्त्रोत होते हैं। इनका उच्चारण व स्मरण देव शक्तियों को जाग्रत करता है, जिसका प्रभाव व लाभ जप करने वाले व्यक्ति को जरूर मिलता है। लेकिन यह तभी संभव है, जब मंत्र जप के दौरान शास्त्रों में बताई खान-पान, आचरण और वैचारिक पवित्रता को भी अपनाया जाए। 
शास्त्रों में कार्य या कामनासिद्धी के लिए उठाए गए कोई भी मंत्र जप के संकल्प के दौरान रोजमर्रा के जीवन में ये 5 काम करने से बचना चाहिए - 


मंत्र जप की अवधि में उपवास, व्रत रखें या फल, दूध लें, किंतु नमक मिला आहार न लें। व्रत-उपवास भी न कर पाएं तो तेज मसालेदार, लहसुन या प्याज मिला भोजन यानी तामसी आहार न लें। 

धर्म के नजरिए से संयमित जीवन को प्रभावित करने वाले विलासी व आरामदेह गद्दों के बजाए जमीन, तख्त या लकड़ियों की शय्या यानी पलंग पर सोएं। 

संकल्पों द्वारा नियत संख्या या अवधि में मंत्र जप को दौरान हजामत यानी शेविंग टाले। अगर विवशता हो, तो कपड़ों की धुलाई व हजामत जैसे कार्य स्वयं करे। 

चमड़े के जूते पहनने या इनसे बनी चीजों के उपयोग से बचे। मांसाहार से भी बचें। क्योकि इन बातों का मकसद अपवित्रता और जीव हिंसा से दूर रखना है। क्योंकि धर्म पालन में किसी भी  रूप में हिंसा का अनुचित मानी गई है। 

ब्रह्मचर्य का पालन यानी विवाहित हो या अविवाहित शारीरिक, मानसिक व वैचारिक संयम और पवित्रता जरूर रखें। यानी मंत्र संकल्प की अवधि में खान-पान या रहन-सहन में भोग-विलास को अहमियत न दें, बल्कि हर तरह से सादा व सात्विक तौर-तरीके अपनाएं। 

मंत्र का मूल भाव होता है - मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरुरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और कार्यसिद्धी के लिए बहुत जरूरी है -  

 मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है। 

 मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।  अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है। 

मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें। एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। 

मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है। 
- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें। 

 मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें। 
- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए। 
- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। 
- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे - कोई मंदिर या घर का देवालय। 

 मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। 
- माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की अंगुली का उपयोग करें। 
- माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।