Tuesday, October 22, 2013

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Friday, October 11, 2013

रावण को बैठा देखकर हनुमानजी भी मोहित हो गए थे


An article from Dainik Bhaskar - ( Dainik Bhaskar se sabhaar )



श्रीरामचरित मानस में कुल 7 कांड बताए गए हैं। इसमें पहला है बालकांडदूसरा है अयोध्या कांडफिर अरण्य कांडइसके बाद किष्किंधाकांडसुंदरकांडलंका कांड और अंत में है उत्तरकांड।
रावण की मां का नाम कैकसी था और पिता ऋषि विशर्वा थे। कैकसी दैत्य कन्या थीं। रावण के भाई विभिषणकुंभकर्ण और बहन सूर्पणखा के साथ ही देवताओं के कोषाध्यक्ष कुबेर देव भी रावण के भाई हैं।

एक बार रावण ने अपनी शक्ति के मद में शिवजी के कैलाश पर्वत को ही उठा लिया था। उस समय भोलेनाथ ने 
मात्र अपने पैर के अंगूठे से ही कैलाश पर्वत का भार बढ़ा दिया और रावण उसे अधिक समय तक उठा नहीं सका। इस दौरान रावण का हाथ पर्वत के नीचे फंस गया। बहुत प्रयत्न के बाद भी रावण अपना हाथ वहां से नहीं निकाल सका। तब रावण ने शिवजी को प्रसन्न करने के लिए उसी समय शिव तांडव स्रोत रच दिया। शिवजी इस स्रोत से बहुत प्रसन्न हो गए।

लंका में प्रवेश करते हुए हनुमानजी ने लंका की भव्यता और सुंदरता देखीजो कि आश्चर्यचकित करने वाली थी। रात्रि के समय पर बजरंग बली रावण के अंत:पुर में गए तो वहां रावण और रावण की रानियों का सौंदर्य देखते ही बनता था।
लंका में सीता को खोजते हुए हनुमानजी ने पूरी लंका का भ्रमण कर लिया था। अंत में वे अशोक वाटिका पहुंचे जहां सीता को देखकर वे प्रसन्न हो गए। वाटिका में सीता से वार्तालाप करने के बाद हनुमानजी ने रावण की एक वाटिका उजाड़ दी।
रावण को सूचना प्राप्त हुई की एक वानर उनकी वाटिका उजाड़ दी है। जिसके बाद लंकेश ने कई असूर हनुमानजी को पकडऩे के लिए भेजें। सभी असूरों को बजरंग बली ने हरा दिया। अंत में इंद्रजीत हनुमानजी को पकडऩे आया। इंद्रजीत ने दिव्यास्त्र की मदद से हनुमानजी को बंदी बना दिया। बंदी बनाए जाने के बाद जब हनुमानजी लंका के दरबार में पहुंचे तो वे हतप्रभ हो गए।

रावण का दरबार भव्य और सुंदर थाजहां रावण को बैठा देखकर हनुमानजी भी मोहित हो गए थे। रामायण में लिखा है हनुमानजी ने रावण के वैभव को देखते हुए कहा था कि...

अहो रूपमहो धैर्यमहोत्सवमहो द्युति:
अहो राक्षसराजस्य सर्वलक्षणयुक्तता।।

इस श्लोक का अर्थ यह है कि - रावण रूप-रंगसौंदर्यधैर्यकांति तथा सर्वलक्षणों से युक्त है। यदि रावण में अधर्म अधिक बलवान  होता तो यह देवलोक का भी स्वामी बन सकता था।
बलशाली दशानन ने अपने तप से ब्रह्माशिव समेत   अनेक देवों को प्रसन्न किया था। वह पराक्रमी  और ज्ञानी भी था। परंतु प्रकांड विद्वान लंकापति के सारे गुण अहंकार रूपी बुराई में जाकर गुम हो गए।
रावण द्वारा सीता हरण की घटना के पीछे मुख्य रूप से शूर्पणखा का हाथ माना जाता है। बहन शूर्पणखा के प्रति रावण के मन में अगाध प्रेम था।

लक्ष्मण ने शूर्पणखा की नाक  काटी होती और शूर्पणखा ने अपने अपमान का बदला लेने के लिए रावण को  उकसाया होतातो शायद ही सीता हरण का ख्याल रावण के मन में  आता।
रावण बहुत विद्वानचारों वेदों का ज्ञाता और ज्योतिष विद्या में पारंगत था। उसके जैसी तीक्ष्ण बुद्धि वाला कोई भी प्राणी पृथ्वी पर नहीं हुआ। इंसान के मस्तिष्क में बुद्धि और ज्ञान का भंडार होता हैजिसके बल पर वह जो चाहे हासिल कर सकता है। रावण के तो दस सिर यानी दस मस्तिष्क थे। कहते हैंरावण की विद्वता से प्रभावित होकर भगवान शंकर ने अपने घर की वास्तुशांति हेतु आचार्य पंडित के रूप में दशानन को निमंत्रण दिया था।

रावण भगवान शंकर का उपासक था। तुलसीदास रचित श्रीरामचरितमानस के अनुसारसेतु निर्माण के समय रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की गईतो उसके पूजन के लिए किसी विद्वान की खोज शुरू हुई। उस वक्त सबसे योग्य विद्वान रावण ही थाइसलिए उससे शिवलिंग पूजन का आग्रह किया गया और शिवभक्त रावण ने शत्रुओं के आमंत्रण को स्वीकारा था। 

रावण महातपस्वी था। अपने तप के बल पर ही उसने सभी देवों और ग्रहों को अपने पक्ष में कर लिया था। कठिन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्मा ने रावण को अमरता और विद्वता का वरदान दिया था।
रावण को रसायन शास्त्र का ज्ञान था। उसे कई अचूक शक्तियां हासिल थींजिनके बल पर उसने अनेक चमत्कारिक कार्य सम्पन्न किए। अग्निबाणब्रह्मास्त्र आदि इनमें गिने जा सकते हैं।

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Sunday, October 6, 2013

स्वस्थ तथा अस्वस्थ हाथ

मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
थोड़े से अभ्यास के बाद आप एक स्वस्थ तथा अस्वस्थ हाथ में स्वयं ही अंतर स्पष्ट करने लगेंगे। मात्र 20-30 हाथों का धैर्य से अध्ययन करने के बाद आप इस वक्तव्य को स्वीकार कर लेंगे। आवश्यकता केवल इतनी है कि आप अपने में संयम तथा लगन पैदा करके हस्त रेखा विषय के प्रति गंभीर बन जाएं। अध्ययन करें और विषय का खूब मनन-गुनन करके उसको विभिन्न हाथों के ऊपर व्यवहार में लाएं। आप देखेंगे कि रेखाएं आप से स्वयं ही बोलने लगेंगी और आप उन रेखाओं की भाषा को समझकर सटीक फलादेश करने लगेंगे।
     सामान्यतः एक स्वस्थ हाथ वो है जो पूर्णतया सुदृढ़ हो तथा उसका कोई भी भाग कहीं से भी असामान्य रुप से विकसित न हो। हाथ लचीलापन लिए हो तथा स्पष्ट रेखाओं वाला हो। नमी की अपेक्षा उसमें शुष्कता हो।

     समस्त हथेली का रंग समता लिए हुए होना चाहिए। हथेली में अवांछित रेखाओं का जाल, अधिक उथली अथवा कटी-फटी तथा देाष चिन्हों से युक्त रेखाएं अस्वस्थता का लक्षण हैं। हथेली अथवा रेखाओं पर दुर्भाग्यपूर्ण चिन्ह जैसे क्रास, जाली, द्वीप, काले तिल आदि विभिन्न रोगों के द्योतक हैं। हथेली की त्वचा का असमान्य रंग, उस पर लाल, नीले अथवा सफेदी लिए हुए धब्बे भी अस्वस्थता के प्रतीक हैं। हथेली को छूकर उसका तापमान अनुभव किया जा सकता है। हथेली न तो अधिक गर्म होना अच्छी है और न ही अधिक ठंडी। जिसकी हथेली पसीजी सी लगती है, उस पर नसों का नीला अथवा लाल उभार स्पष्ट दिखाई देता है। वह व्यक्ति निःसंदेह अस्वस्थ होता है। रेखाओं का एक सीमा तक गहरापन शक्ति दर्शाता है, परंतु रेखाएं इतनी अधिक गहरी भी न हो जाएं कि गाढ़े रंग की दिखाई देने लगें। इसका अर्थ होता है कि उस रेखा विशेष पर अत्यधिक तनाव पड़ रहा है। धूमिल अथवा क्षीण पड़ गयी रेखा अस्वस्थता दर्शाती हैं। सीढ़ीदार अथवा छोटे-छोटे टुकड़ों से बनी जीवन रेखा जीवन में निरंतर कोई न कोई रोग देती हैं। जीवन रेखा का दोषपूर्ण तरीके से अंत वृद्धावस्था में शारीरिक कष्ट देता है। टेड़ी-मेड़ी रेखाएं तथा अप्राकृतिक रुप से विकसित बेडौल हथेली अथवा उंगलियां किसी न किसी बीमारी का प्रतीक हैं। अत्यधिक मांसल हथेली तथा बहुत नरम अथवा नमीं लिए हुए हाथ की त्वचा बीमारी दर्शाती है।
दोनों हाथ की उंगलियां सुडौल तथा नाखून चमकीले, गुलाबी अथवा ताम्र रंग के होने चाहिए। वह नाखून जो प्राकृतिक चमक खोकर कठोर अथवा भंगुर हो गए हों, बीमारी के प्रतीक हैं। नाखून पर सफेद, नीले, पीले आदि रंग के धब्बे भी बीमारी के लक्षण हैं। नाखून में खुरदरापन, भंगुरता तथा मटमैले पन का दोष नहीं होना चाहिए। नाखून की जड़ में सुन्दरता से विकसित अर्धचंद्र स्वस्थ शरीर का प्रतीक है। इसके विपरीत उनकी अनुपस्थिति विभिन्न बीमारियों का संकेत है। सूखी सी, टेड़ी-मेड़ी, मोटी तथा मिलाने पर बीच में छिद्र बनाती उंगलियॉ बीमारियां देती हैं। उंगलियों के पर्व कोमल तथा मांस रहित होना ही स्वस्थ शरीर का लक्षण हैं। चिकनी, सीधी तथा आपस में मिली हुई उंगलियां निरोगी काया देती हैं। हाथ का वाह्य आकार अस्वस्थता काल में प्रायः अनियमित हो जाता है।
हस्तरेखा से बीमारियों का अध्ययन करने में पर्वतों का मुख्य स्थान होता है। इनके स्वभाव, गुण, स्थिति आदि के ज्ञान के बिना हस्तरेखा का ज्ञान अधूरा है। विभिन्न उंगलियों के मूल में स्थित पर्वत सामान्यतः उन्हीं सूर्य, चंद्रादि ग्रहों के अनुरुप बीमारियों को जन्म देते हैं जिनके कि वह पर्वत कारक हैं। हथेली पर स्थित विभिन्न पर्वतों का सामान्य होना भी स्वस्थ शरीर के लिए आवश्यक है। स्वस्थ शरीर के लिए शनि पर्वत का दोषरहित होना परमावश्यक है।
मुख्य रेखाओं के साथ-साथ हाथ में निम्न रेखाएं बीमारी सम्बंधी गणनाओं में विशेष भूमिका निभाती हैं। पहला है शुक्र वलय जो धनुषाकार रुप में पहली और दूसरी उंगली के मध्य से प्रारंभ हो कर तीसरी अथवा चौथी उंगली के मध्य समाप्त होता है। शुक्र वलय वाले लोग स्नायविक दुर्बलता तथा विक्षिप्तता आदि रोगों से पीड़ित होते हैं। शुक्र वलय जिस रेखा को बढ़कर काट देता है उस रेखा संबंधी रोग से व्यक्ति को हानि पहुंचाता है। शुक्र वलय वाले व्यक्ति मानसिक रति में सुखद आनंद अनुभव करते हैं।
     दूसरे स्थान पर आती हैं प्रभावक रेखाएं। यह रेखाएं हथेली में विभिन्न स्थानों से प्रारंभ हो कर सूर्य शुक्र आदि पर्वतों को प्रभावित करती हैं। जो रेखाएं पर्वतों तक पूर्णतया पहुंचती हैं, बलवान कहलाती हैं और परंतु जो रेखा बीच में ही समाप्त हो जाती हैं, कटी-फटी अथवा किसी रेखा द्वारा अकस्मात् रुक जाती हैं, ऐसी प्रभावक रेखाएं अशुभ रेखाओं की श्रेणी में आती हैं।
तीसरे स्थान पर हाथ तथा कलाई के जोड़ पर स्थित एक-दूसरे के लगभग समानान्तर मणिबंध रेखाएं स्वास्थ्य में वृद्धि करती हैं। स्पष्ट रुप से बनी रेखा स्वास्थ्य तथा दीर्घ आयुष्य का प्रतीक है। जितनी संख्या में तथा जितनी स्पष्टता से मणिबंध रेखाएं कलाई में स्थित होती हैं उन्हीं के अनुरुप रोग रहित लंबे जीवन को इंगित करती हैं।
मृत्यु से कुछ दिन पूर्व व्यक्ति की उंगलियों में विशेष रुप से मध्यमा के नाखून में पड़ी धारियां स्पष्ट रुप से दृष्टिगोचर होने लगती हैं तथा उनका रंग भी धूमिल पड़ने लगता है। अंगूठा शक्तिहीन होकर हथेली की तरफ गिरता सा दिखाई देने लगता है।
लेख की प्रस्तुति का उददेश्य मात्र रेखाओं से रोग परीक्षण का परिचय मात्र देना है। यदि इससे जिज्ञासु पाठकों के मन में थोड़ी सी भी जिज्ञासा तथा लगन उत्पन्न होती है तो रोग विषयक सामग्री के लिए हस्त रेखाओं से संबंधित अन्य पुस्तकें देख सकते हैं। लेखक की विषय पर पुस्तक, ‘हस्त रेखओं से रोग परीक्षण’ भी प्रबुद्ध पाठकों के लिए अत्यंत उपयोगी तथा ज्ञानवर्धक सिद्ध हो सकती हैं।
मानसश्री गोपाल राजू (वैज्ञानिक)
(राजपत्रित अधिकारी) अ.प्रा.

Friday, October 4, 2013

शरद नवरात्रि शुरु

http://onlineprasad.com/Devi-Temples-Navratri-Prasad-depid-132676-page-1.html?utm_source=OnlinePrasad+Sign-ups&utm_campaign=b3b5aa30cd-131005-%E0%A4%A8%E0%A4%B5%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B0%E0%A4%BF-%E0%A4%B6%E0%A4%A8%E0%A4%BF%E0%A4%A6%E0%A5%87%E0%A4%B5&utm_medium=email&utm_term=0_27bd47a9ee-b3b5aa30cd-65896581

५ अक्टूबर यानि आज से शरद नवरात्रि शुरु हो रही रही है। नवरात्रि में माँ के आशिर्वाद से ग्रह-नक्षत्रों के अशुभ प्रभाव शांत हो जाते हैं। शनिवार के दिन शुरु हुई इस महानवरात्रि पर शनिदेव को शांत करें और अपने जीवन में खुशिया लाएं।


  • माँ शक्ति शिव की अर्द्धांगिनी है, शिवजी की तरह माँ भी काल की नियंत्रक हैं
  • नवरात्रि  में की गयी देवी उपासना, बुरे वक्त से पार पाने में अचूक व असरदार है
अगर आप भी शनि ग्रह के अशुभ योग  से  जीवन में आर्थिक, शारीरिक व मानसिक पीड़ा का सामना कर रहें हैं या फिर इनसे बचना चाहते हैं तो शनि की ऐसी ही बाधाओं से बचाव के लिए माँ की पूजा अर्चना करें। 
  • पंचोपचार पूजा करें - गंध, अक्षत, लाल फूल व लाल फल का भोग चढ़ाऐ।
  • धूप व दीप जलाकर आसन पर बैठ। माँ का नाम जाप करें।
  • माता के मंदिर जाए, पूजा में शामिल हो और प्रसाद चढ़ाए।
  • नीचे लिखे देवी मंत्र का स्मरण कम से कम 108 बार करें। 
सर्वाबाधाप्रशमनं त्रैलोक्यस्याखिलेश्वरी
एवमेव त्वया कार्यमस्मद्वैरिविनाशनम्।। 

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