Saturday, July 13, 2013

मंत्र जप की अहमियत एवं नियम

Collection by Ashutosh Joshi ( Vastu Consultant, Gemmologist & Palmist)

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धार्मिक उपायों में कामनाएं पूरी करने, कष्टों से रक्षा, गंभीर रोगों से छुटकारा या आध्यात्मिक सुख पाने जैसे जीवन से जुड़े कई लक्ष्यों को पाने के लिए मंत्र जप की अहमियत बताई गई है। 
दरअसल, मंत्रों के अलग-अलग रूप देवीय शक्ति का स्त्रोत होते हैं। इनका उच्चारण व स्मरण देव शक्तियों को जाग्रत करता है, जिसका प्रभाव व लाभ जप करने वाले व्यक्ति को जरूर मिलता है। लेकिन यह तभी संभव है, जब मंत्र जप के दौरान शास्त्रों में बताई खान-पान, आचरण और वैचारिक पवित्रता को भी अपनाया जाए। 
शास्त्रों में कार्य या कामनासिद्धी के लिए उठाए गए कोई भी मंत्र जप के संकल्प के दौरान रोजमर्रा के जीवन में ये 5 काम करने से बचना चाहिए - 


मंत्र जप की अवधि में उपवास, व्रत रखें या फल, दूध लें, किंतु नमक मिला आहार न लें। व्रत-उपवास भी न कर पाएं तो तेज मसालेदार, लहसुन या प्याज मिला भोजन यानी तामसी आहार न लें। 

धर्म के नजरिए से संयमित जीवन को प्रभावित करने वाले विलासी व आरामदेह गद्दों के बजाए जमीन, तख्त या लकड़ियों की शय्या यानी पलंग पर सोएं। 

संकल्पों द्वारा नियत संख्या या अवधि में मंत्र जप को दौरान हजामत यानी शेविंग टाले। अगर विवशता हो, तो कपड़ों की धुलाई व हजामत जैसे कार्य स्वयं करे। 

चमड़े के जूते पहनने या इनसे बनी चीजों के उपयोग से बचे। मांसाहार से भी बचें। क्योकि इन बातों का मकसद अपवित्रता और जीव हिंसा से दूर रखना है। क्योंकि धर्म पालन में किसी भी  रूप में हिंसा का अनुचित मानी गई है। 

ब्रह्मचर्य का पालन यानी विवाहित हो या अविवाहित शारीरिक, मानसिक व वैचारिक संयम और पवित्रता जरूर रखें। यानी मंत्र संकल्प की अवधि में खान-पान या रहन-सहन में भोग-विलास को अहमियत न दें, बल्कि हर तरह से सादा व सात्विक तौर-तरीके अपनाएं। 

मंत्र का मूल भाव होता है - मनन। मनन के लिए ही मंत्रों के जप के सही तरीके धर्मग्रंथों में उजागर है। शास्त्रों के मुताबिक मंत्रों का जप पूरी श्रद्धा और आस्था से करना चाहिए। साथ ही एकाग्रता और मन का संयम मंत्रों के जप के लिए बहुत जरुरी है। माना जाता है कि इनके बिना मंत्रों की शक्ति कम हो जाती है और कामना पूर्ति या लक्ष्य प्राप्ति में उनका प्रभाव नहीं होता है।
यहां मंत्र जप से संबंधित कुछ जरुरी नियम और तरीके बताए जा रहे हैं, जो गुरु मंत्र हो या किसी भी देव मंत्र और कार्यसिद्धी के लिए बहुत जरूरी है -  

 मंत्रों का पूरा लाभ पाने के लिए जप के दौरान सही मुद्रा या आसन में बैठना भी बहुत जरूरी है। इसके लिए पद्मासन मंत्र जप के लिए श्रेष्ठ होता है। इसके बाद वीरासन और सिद्धासन या वज्रासन को प्रभावी माना जाता है। 

 मंत्र जप के लिए सही वक्त भी बहुत जरूरी है। इसके लिए ब्रह्ममूर्हुत यानी तकरीबन 4 से 5 बजे या सूर्योदय से पहले का समय श्रेष्ठ माना जाता है। प्रदोष काल यानी दिन का ढलना और रात्रि के आगमन का समय भी मंत्र जप के लिए उचित माना गया है।  अगर यह वक्त भी साध न पाएं तो सोने से पहले का समय भी चुना जा सकता है। 

मंत्र जप प्रतिदिन नियत समय पर ही करें। एक बार मंत्र जप शुरु करने के बाद बार-बार स्थान न बदलें। एक स्थान नियत कर लें। 

मंत्र जप में तुलसी, रुद्राक्ष, चंदन या स्फटिक की 108 दानों की माला का उपयोग करें। यह प्रभावकारी मानी गई है। 
- कुछ विशेष कामनों की पूर्ति के लिए विशेष मालाओं से जप करने का भी विधान है। जैसे धन प्राप्ति की इच्छा से मंत्र जप करने के लिए मूंगे की माला, पुत्र पाने की कामना से जप करने पर पुत्रजीव के मनकों की माला और किसी भी तरह की कामना पूर्ति के लिए जप करने पर स्फटिक की माला का उपयोग करें। 

 मंत्र जप दिन में करें तो अपना मुंह पूर्व या उत्तर दिशा में रखें और अगर रात्रि में कर रहे हैं तो मुंह उत्तर दिशा में रखें। 
- किसी विशेष जप के संकल्प लेने के बाद निरंतर उसी मंत्र का जप करना चाहिए। 
- मंत्र जप के लिए कच्ची जमीन, लकड़ी की चौकी, सूती या चटाई अथवा चटाई के आसन पर बैठना श्रेष्ठ है। सिंथेटिक आसन पर बैठकर मंत्र जप से बचें। 
- मंत्र जप के लिए एकांत और शांत स्थान चुनें। जैसे - कोई मंदिर या घर का देवालय। 

 मंत्रों का उच्चारण करते समय यथासंभव माला दूसरों को न दिखाएं। अपने सिर को भी कपड़े से ढंकना चाहिए। 
- माला का घुमाने के लिए अंगूठे और बीच की अंगुली का उपयोग करें। 
- माला घुमाते समय माला के सुमेरू यानी सिर को पार नहीं करना चाहिए, जबकि माला पूरी होने पर फिर से सिर से आरंभ करना चाहिए।