Tuesday, December 24, 2013

शरीर की वास्तु -पंच-तत्व शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं


शरीर की वास्तु -पंच-तत्व शरीर को स्वस्थ बनाए रखते हैं

योगाचार्य सुरक्षित गोस्वामी
अद्भुत आलेख

शरीर पांच तत्वों- पृथ्वी, जल, अग्नि, वायु व आकाश- से मिलकर बना है। ये तत्व शरीर को धारण किए हुए उसे स्वस्थ बनाए रखते हैं। जब इन तत्वों में से किसी एक की शक्ति कम होती है या वह तत्व मलयुक्त हो जाता है, तो उससे अनेक बीमारियां होने लगती हैं। प्रत्येक तत्व अपना-अपना कार्य करता है, जिससे उसका मल भी बनता रहता है। मल का अर्थ है जो शरीर को मलिन कर दे, अर्थात् जिन पदार्थों को शरीर के अंग अंदर से त्याग दें, वही मल है। अंगों द्वारा त्याग देने के बाद भी यदि वह मल शरीर में रुक जाए, तो शरीर दूषित होकर रोगी हो जाता है। इसलिए, स्वस्थ रहने के लिए जरूरी है कि ये सभी मल सही प्रकार से समयानुसार शरीर से बाहर निकलते रहें।

हमारी प्रातः कालीन दिनचर्या इन मलों को बाहर निकालने की एक प्रक्रिया है। दिनचर्या में सुबह सबसे पहले शौच के लिए जाते हैं और मल-मूत्र त्याग करते हैं। मल को पुरीष भी कहा जाता है। यह पृथ्वी तत्व का मल है और मूत्र जल तत्व का मल होता है। मल त्याग करने के पश्चात आसन, प्राणायाम, व्यायाम, टहलना या अन्य शारीरिक कसरतें करते हैं। इनसे वायु तत्व का मल, जैसे कार्बन डाइआक्साइड इत्यादि विषाक्त वायु बाहर निकल जाती है। स्नान करने से शरीर से दूषित गर्मी निकल जाती है, जिससे अग्नि तत्व का मल बाहर निकल जाता है। इसके पश्चात पूजा-पाठ, ध्यान, जप, प्रभु स्मरण, भजन, सत्संग आदि करते हैं, तो आकाश तत्व का मल अर्थात् नकारात्मक विचार मन से बाहर निकल जाते हैं। इस प्रकार सुबह ही अपने पांचों तत्वों के मलों को बाहर निकाल कर हम अपने तन-मन को स्वस्थ रखते हैं। यदि ये पांचों मल सही प्रकार से शरीर से बाहर न निकलें, तो शरीर विषाक्त व मलिन हो जाता है और शरीर में अनेक प्रकार की बीमारियां उत्पन्न होने लगती हैं।

अगर पृथ्वी तत्व का मल-पुरीष-ठीक प्रकार से बाहर न निकले तो कब्ज, अपच, गैस, भूख न लगना, डकारें, मोटापा, बवासीर, रक्तदोष, चर्मरोग, थकान, उदासी, सुस्ती, जोड़ों का दर्द, सिर दर्द, भारीपन, नेत्र ज्योति कम होना, मधुमेह, उच्च रक्तचाप, बालों के रोग, धातु रोग, स्वप्नदोष, नपुंसकता इत्यादि रोग हो सकते हैं। इसी प्रकार जल तत्व का मल अर्थात् मूत्र अगर सही प्रकार से बाहर न निकले, तो शरीर में टॉक्सिन्स बढ़ने लगते हैं और मूत्राशय व किडनी के रोग हो सकते हैं।


स्नान न करने से अग्नि तत्व का मल बाहर नहीं निकल पाता, जिससे शरीर में जलन, पसीने में बदबू, शरीर में भारीपन, रोग प्रतिरोधक शक्ति का कम होना, रोमकूपों व मलमार्गों की सफाई न होने के कारण त्वचा रोग, इंद्रियों के दोष, तरोताजगी का अभाव, भूख न लगना, बल की कमी आदि रोग हो सकते हैं।

यदि आसन, प्राणायाम, व्यायाम, टहलना आदि शारीरिक अभ्यास न किए जाएं, तो वायु तत्व का मल-दूषित वायु-शरीर से बाहर नहीं निकल पाती। इससे श्वास रोग, अस्थमा, हृदय रोग, रक्त विकार, चर्म रोग, किडनी के रोग, कोशिकाओं की क्षतिपूर्ति न होना, स्मरण शक्ति की कमी, आलस्य, उबासी, जोड़ों के दर्द आदि रोग हो जाते हैं।

इसी प्रकार, यदि प्रातः काल पूजा-पाठ, जप, ध्यान, योग, सत्संग आदि के लिए समय न निकाला जाए, तो आकाश तत्व का मल मन में रुक जाता है और नकारात्मक विचारधारा, तनाव, चिंता, चिड़चिड़ापन, डिप्रेशन, उच्च रक्तचाप, उद्विग्नता, क्रोध, अनिद्रा, असंतोष, हिंसा, चंचलता, धैर्य व स्मरण शक्ति की कमी, अभिमान आदि विकार हो जाते हैं।
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