Thursday, September 25, 2014

पढ़िए क्या है यह वास्तु, इसकी अवधारणा क्या है


प्रकृति में संतुलन बनाए रखने के लिए विविध प्राकृतिक बलों जैसे जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश के बीच परस्पर क्रिया होती है, जिसका व्यापक प्रभाव इस पृथ्वी पर रहने वाली मनुष्य जाति के अलावा अन्य प्राणियों पर पड़ता है। इन पांच तत्वों के बीच होने वाली परस्पर क्रिया को वास्तु के नाम से जाना जाता है। वास्तु ज्योतिष के अनुसार इस प्रक्रिया का प्रभाव हमारे कार्य प्रदर्शन, स्वभाव, भाग्य एवं जीवन के अन्य पहलुओं पर पड़ता है।
वास्तु शास्त्र आपके आस पास की महान परिशोध है एवं यह आपके जीवन को प्रभावित करता है। वास्तु का शाब्दिक अर्थ निवासस्थान होता है। इसके सिद्धांत वातावरण में जल, पृथ्वी, वायु, अग्नि और आकाश तत्वों के बीच एक सामंजस्य स्थापित करने में मदद करते हैं। वास्तु शास्त्र कुछ नहीं है, लेकिन कला, विज्ञान, खगोल विज्ञान और ज्योतिष का मिश्रण है। इसके अतिरिक्त यह कहा जा सकता है कि यह एक बहुत सदियों पुराना रहस्यवादी नियोजन का विज्ञान, चित्र नमूना एवं अंत निर्माण है।
हमारे जीवन में वास्तु का महत्व
यह माना जाता है कि वास्तुशास्त्र हमारे जीवन को बेहतर बनाने एवं कुछ गलत चीजों से हमारी रक्षा करने में मदद करता है। दूसरे शब्दों में कहें तो वास्तुशास्त्र हमें नकारात्मक तत्वों से दूर सुरक्षित वातावरण में रखता है। वास्तुशास्त्र सदियों पुराना निर्माण का विज्ञान है, जिसमें वास्तुकला के सिद्धांत और दर्शन सम्मिलित हैं, जो किसी भी भवन निर्माण में बहुत अधिक महत्व रखते हैं। इनका प्रभाव मानव की जीवन शैली एवं रहन सहन पर पड़ता है।
वास्तुशास्त्र का मूल आधार विविध प्राकृतिक ऊर्जाओं पर निर्भर है, जो हमारे लिए शुल्क रहित उपलब्ध हैं। हां, बिल्कुल निःशुल्क। इसमें निम्न शामिल हो सकती हैं :-
पृथ्वी से ऊर्जा प्राप्ति
दिन के उजाले से ऊर्जा
सूर्य की ऊर्जा या सौर ऊर्जा
वायु से ऊर्जा
आकाश से ऊर्जा प्राप्ति
लौकिक / ब्रह्मांड से ऊर्जा
चंद्रमा की ऊर्जा
ऊर्जा स्रोत में चुंबकीय, थर्मल और विद्युत ऊर्जा भी शामिल होगी। जब हम इन सभी ऊर्जाओं का आनन्दमय उपयोग करते हैं, तो यह हमें अत्यंत आंतरिक खुशी, मन की शांति, स्वास्थ्य एवं समृद्धि के लिए धन प्रदान करती हैं। वास्तु को किसी भी प्रकार के कमरे, घर, वाणिज्यिक या आवासीय संपत्ति, बंगले, विला, मंदिर, नगर नियोजन आदि के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। वास्तु छोटी एवं बड़ी परियोजनाओं एवं उपक्रमों पर भी लागू होता है। पूर्ण सामंजस्य बनाने के लिए तीन बल महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जिनमें जल, अग्नि एवं वायु शामिल हैं। वास्तु के अनुसार, वहां पूर्ण सद्भाव और शांति होगी, जहां यह तीनों बल अपनी सही जगह पर स्थित होंगे। अगर इन तीन बलों की जगह में आपसी परिवर्तन यानी गड़बड़ी होती है, जैसे कि जल की जगह वायु या अग्नि को रखा जाए तथा अन्य ताकत का गलत स्थानांतरण हो तो इस गलत संयोजन का जीवन पर बुरा प्रभाव पड़ता है, जिसके कारण सद्भाव की कमी एवं अशांति पैदा होती है।

Wednesday, September 17, 2014

श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की कथा

ARTICLE TAKEN FROM-

http://www.punjabkesari.in/news/article-282345

जालंधर शहर में अनेक मन्दिर, गुरुद्वारे तथा तालाब स्थित हैं जिनमें प्रमुख है श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का मन्दिर और तालाब जो लगभग 200 वर्ष पुराना है। उससे पहले यहां चारों ओर घना जंगल होता था। दीवार में उनका श्री रूप स्थापित है। जिससे मंदिर का स्वरूप दिया गया है। अनेक श्रद्धालुजन अपनी मनोकामनाओं की पूर्ति के लिए मंदिर में आते हैं। यह मंदिर सिद्ध स्थान के रूप में प्रसिद्ध है। यहां एक तालाब है जिसके चारों ओर पक्की सीढिय़ां बनी हुई हैं तथा मध्य में एक गोल चबूतरे के बीच शेष नाग का स्वरूप है।

भाद्रपद की अनन्त चतुर्दशी को यहां विशेष मेला लगता है। चड्ढा बिरादरी के जठेरे बाबा सोढल में हर धर्म व समुदाय के लोग नतमस्तक होते हैं। अपनी मन्नत की पूर्ति होने पर लोग बैंड-बाजों के साथ बाबा जी के दरबार में आते हैं। बाबा जी को भेंट व 14 रोट का प्रसाद चढ़ाते हैं जिसमें से 7 रोट प्रसाद के रूप में वापिस मिल जाते हैं। उस प्रसाद को घर की बेटी तो खा सकती है परन्तु उसके पति व बच्चों को देना वर्जित है। वर्तमान में यह मंदिर सोढल रोड पर विद्यमान है।

श्री सिद्ध बाबा सोढल जी की कथा
प्राचीन समय में श्री सिद्ध बाबा सोढल जी का जहां मंदिर स्थापित है उस स्थान पर एक संत जी की कुटिया और तालाब था। यह तालाब अब सूख चूका है, परन्तु उस समय पानी से भरा रहता था। संत जी भोले भंडारी के परम भक्त थे। जनमानस उनके पास अपनी समस्याओं के समाधान के लिए आया करते थे।

चड्ढा परिवार की बहू जो उनकी भक्त थी, बुझी सी रहती। एक दिन संत जी ने पूछा कि बेटी तू इतनी उदास क्यों रहती है? मुझे बता मैं भोले भंडारी से प्रार्थना करूंगा वो तुम्हारी समस्या का समाधान अवश्य करेंगे। संत जी की बात सुनकर उन्होंने कहा कि मेरी कोई सन्तान नहीं है और सन्तानहीन स्त्री का जीवन नर्क भोगने के समान होता है। संत जी ने कुछ सोचा फिर बोले, बेटी तेरे भाग्य में तो सन्तान सुख है ही नहीं, मगर तुम भोले भंडारी पर विश्वास रखो वो तुम्हारी गोद अवश्य भरेंगे।

संत जी ने भोले भंडारी से प्रार्थना की कि चड्ढा परिवार की बहू को ऐसा पुत्र रत्न दो, जो संसार में आकर भक्ति व धर्म पर चलने का संदेश दे। भोले भंडारी ने नाग देवता को चड्ढा परिवार की बहू की कोख से जन्म लेने का आदेश दिया। नौ महीने के उपरांत चड्ढा बिरादरी में बाबा सोढल जी का जन्म हुआ। जब यह बालक चार साल का था तब एक दिन वह अपनी माता के साथ कपड़े धोने के लिए तालाब पर आया। वहां वह भूख से विचलित हो रहा था तथा मां से घर चल कर खाना बनाने को कहने लगा। मगर मां काम छोड़कर जाने के लिए तैयार नहीं थी। तब बालक ने कुछ देर इंतजार करके तालाब में छलांग लगा दी तथा आंखों से ओझल हो गया।

मां फफक-फफक कर रोने लगी, मां का रोना सुनकर बाबा सोढल नाग रूप में तालाब से बाहर आए तथा धर्म एवं भक्ति का संदेश दिया और कहा कि जो भी मुझे पूजेगा उसकी सभी मनोकामनाएं पूर्ण होंगी। ऐसा कहकर नाग देवता के रूप में बाबा सोढल फिर तालाब में समा गए। बाबा के प्रति लोगों में अटूट श्रद्धा और विश्वास बन गया कालांतर में एक कच्ची दीवार में उनकी मूर्ति स्थापित की गई जिसको बाद में मंदिर का स्वरूप दे दिया गया।

Tuesday, September 2, 2014

लाल किताब: आपकी राशि के लिए सफलता के टिप्स

ARTICLE TAKEN FROM

http://thebhaskar.com/archives/136747?utm_source=feedburner&utm_medium=email&utm_campaign=Feed%3A+thebhaskar%2FRHEx+%28The+Bhaskar%3A+NO+1+indian+MLM+News+portal%29


लाल किताब पर आधारित चमत्कारिक उपाय राशियों के आधार पर हैं, आप भी अपनी राशि के अनुसार इन वैदिक नियमों का पालन कर सकते हैं।
मेष राशि
किसी से कोई वस्तु मुफ्त में न लें। लाल रंग का रूमाल हमेशा प्रयोग करें। साधु-संतों, मां व गुरु की सेवा करें। सदाचार का सदा पालन करें। वैदिक नियमों का पालन करें। विधवा की सहायता करें और आशीर्वाद लें। मीठी रोटी गाय को खिलाएं।
वृषभ राशि
घी का चिराग प्रतिदिन जलाएं। शुक्रवार उपवास रखें। वस्त्रों में इस्त्र आदि का प्रयोग करें। स्वच्छ कपड़े पहनें। नया जूता-चप्पल जनवरी माह में न खरीदें। झूठी गवाही न दें और धोखाधड़ी न करें। घर में मनी प्लांट लगाएं।
मिथुन राशि
तामसिक भोजन का परित्याग करें और मछलियों को कैद मुक्त करें। दमे की दवा अस्पताल में मुफ्त दे दें। माता का पूजन करें और 12 वर्ष से छोटी कन्याओं का आशीर्वाद लें। बेल्ट का प्रयोग न करें। फिटकरी से दांत साफ करें। सूर्य संबंधी उपचार करें।
कर्क राशि
माता से चांदी, चावल लेकर अपने पास रखें और दुर्गा पाठ करें। कन्या दान में सामान दें। धार्मिक कार्यों को हमेशा कार्य रूप दें। तीर्थस्थान की यात्रा करने से किसी को न रोकें। यदि आप डॉक्टर हैं तो रोगियों को मुफ्त में दवा दें। धर्म स्थान में नंगे पैर जाएं। सार्वजनिक तौर से पानी पिलाएं। माता की सलाह का पालन करें।
सिंह राशि
अखरोट व नारियल धर्म स्थान में दें। अंधे को भोजन कराएं। सदा सत्य बोलें, किसी का अहित न करें। साले, दामाद व भानजे की सेवा करें। मीठा खाकर ही कोई शुभ कार्य प्रारंभ करें। वैदिक एवं सदाचार के नियमों का पालन करें।
कन्या राशि
अपशब्द न बोलें और न ही क्रोध करें। दुर्गा सप्तशती का पाठ कर छोटी कन्याओं से आशीर्वाद लें। शनि से संबंधित उपचार करें। काली नेकर धारण करें। चांदी का छल्ला धारण करें। भूरे रंग का कुत्ता न पालें।
तुला राशि
गौमूत्र का पान करें। पत्नी हमेशा टीका लगाए रखें एवं परम पिता पर पूर्ण आस्था रखें। गौ ग्रास रोज दें। माता-पिता की आज्ञा से विवाह करें। परिवार की कोई भी स्त्री नंगे पैर न चले। तवा, चिमटा, चकला और बेलन धर्म स्थान में दें।
वृश्चिक राशि
तंदूर की मीठी रोटी बनाकर गरीबों को खिलाएं। पीपल और किकर के वृक्ष न काटें। किसी से मुफ्त का माल न लें। बड़े भाई की अवहेलना न करें। प्रातःकाल शहद का सेवन कर हनुमान जी को सिंदूर और चोला चढ़ाएं। बड़ों की सेवा करें।
धनु राशि
भिखारियों को निराश न लौटने दें। तीर्थयात्रा करें। तीर्थयात्रा के लिए दूसरों की मदद करें। कार्य शुरू करने से पहले नाक साफ करें। गुरु, साधु और पीपल की पूजा करें। पीले फूल वाले पौधे लगाएं।
मकर राशि
बंदरों की सेवा करें। असत्य भाषण न करें। घर के किसी हिस्से में अधेरा न रखें। पूर्व दिशा वाले मकान में निवास करें। अखरोट धर्म स्थान में चढ़ाएं और थोड़ा बहुत घर में लाकर रखें। पराई स्त्री पर नजर न डालें। भैंस, कौओं और मजदूरों को भोजन कराएं।
कुंभ राशि
48 वर्ष से पहले अपना मकान न बनवाएं और दक्षिण दिशा वाले मकान का परित्याग करें। चांदी का टुकड़ा अपने पास रखें। शनिवार का व्रत रखें। भैरव मंदिर में तेल और शराब का दान करें और खुद न पिएं। सोना धारण करें।
मीन राशि
किसी से मदद स्वीकार न करें, अपने भाग्य पर विश्वास करें। किसी के सामने स्नान न करें। धर्म स्थान में जाकर पूजन करें। कुल पुरोहित का आशीर्वाद प्राप्त कर सिर पर शिखा रखें, संतों की सेवा के साथ धर्म स्थान की सफाई करें, स्त्री की सलाह से व्यापार करें।