Friday, November 28, 2014

गौ माता --सर्वतीर्थमयी व मुक्तिदायिनी

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  -पं. उमाशंकर शास्त्री 




गौ माता को सारे शास्त्रों में सर्वतीर्थमयी व मुक्तिदायिनी कहा गया है। गौ माता के शरीर में सारे देवताओं का निवास है। ब्रह्मवैवर्तपुराण के अनुसार गौ के पैरों में समस्त तीर्थ व गोबर में साक्षात माता लक्ष्मी का वास माना गया है। गौ माता के पैरों में लगी मिट्टी का जोव्यक्ति नित्य तिलक लगाता है, उसे किसी भी तीर्थ में जाने की आवश्यकता नहीं है क्योंकि उसे सारा फल उसी समय वहीं प्राप्त हो जाता है।

जिस घर या मंदिर में गौ माता का निवास होता है, उस जगह को साक्षात देवभूमि ही कहा गया है और जिस घर में गौ माता नहीं होती, वहां कोई भी अनुष्ठान व सत्कार्य सफल नहीं होता। जहां गौ माता हो, यदि ऐसे स्थान पर कोई भी व्रत, जप, साधना, श्राद्ध, तर्पण, यज्ञ, नियम, उपवास या तप किया जाता है तो वह अनंत फलदायी होकर अक्षय फल देने वाला हो जाता है।

यह जरूर ध्यान रखने की बात है कि गौ से मतलब उस गाय से है, जो देवता के रूप में विराजमान गौ माता है। आज के दौर की देशी गाय को ही प्राचीन काल में ‘गौ’ नाम से कहा गया है। ‘जरसी’ गाय तो दूध देने वाली एक पशु के समान है। अत: गौ माता का तात्पर्य शुद्ध देशी गाय से ही है। यही कारण है कि आयुर्वेद में देशी गाय के ही दूध, दही और घी व अन्य तत्त्वों का प्रयोग होता है। 
   
वत्स द्वादशी की अनुपम महिमा 

गौ माता ही हमारी संस्कृति और धर्म में ऐसे देवता के रूप में प्रतिष्ठित है,जिनकी नित्य सेवा और दर्शन करने का विधान हमारे शास्त्रों ने किया है। वर्ष में दो बार दो बड़े पर्व गौ माता के उत्सव के रूप में ही मनाए जाते हैं। एक भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को और दूसरा कार्तिक माह में शुक्ल पक्ष की अष्टमी तिथि को।

इन दोनों ही पर्वों का माहात्म्य शास्त्रों में इतना लिखा है कि इस दिन जिस घर की महिलाएं गौ माता का पूजन करती हैं, उस घर में माता लक्ष्मी की कृपा सदा बनी रहती है और अकाल मृत्यु कभी नहीं होती। भाद्रपद में द्वादशी को पडऩे वाले उत्सव को ‘वत्स द्वादशी’ या ‘बछ बारस’ कहते हैं।

पौराणिक आयान के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने इसी दिन गौ माता का दर्शन-पूजन किया था। ‘रामायण’ में भगवान श्रीराम इस दिन स्वयं अपने छोटे भाइयों व परिजनों के साथ गौ माता का पूजन करते थे। वहां स्पष्ट लिखा है कि भगवान श्रीराम ने यज्ञ के बाद दस लाख गौएं ब्राह्मणों को दान में दी थीं। भगवान श्रीकृष्ण तो स्वयं ही अपने मित्रों के साथ गाय चराने वनों में जाते थे।

वेद-पुराणों में गौ स्तवन 

वेदों में स्पष्ट लिखा है कि गौ रुद्रों की माता और वसुओं की पुत्री है। अदिति पुत्रों की बहन और घृतरूप अमृत का खजाना है। प्रत्येक ग्रंथ में यह बात दृढता के साथ लिखी गई है कि सदा निरपराध एवं अवध्य गौ माता का वध करना ऐसा पाप है, जिसका कोई प्रायश्चित्त ही नहीं है। जो पुण्य अश्वमेध या अनेक यज्ञों को करने से मिलता है, वह पुण्य मात्र गौ माता की सेवा करने से ही प्राप्त हो जाता है।

गौ का विश्वरूप 

वैदिक साहित्य के अनुसार प्रजापति गौ के सींग, इंद्र सिर, अग्नि ललाट और यम गले की संधि है। चंद्रमा मस्तिष्क, पृथ्वी जबड़ा, विद्युत जीभ, वायु दांत और देवताओं के गुरु बृहस्पति इसके अंग हैं। इस तरह यह स्पष्ट है कि गौ में सारे देवताओं का वास है। अत: जिन देवताओं का पूजन हम मंदिरों व तीर्थों में जाकर करते हैं वे सारे देवता समूह रूप से गौ माता में विराजमान हैं। इसलिए निर्लिप्त भाव से पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ किसी भी कार्य की सिद्धि के लिए व्यक्ति को नित्य गौ माता की सेवा करनी चाहिए। महाभारत कहता है-

यत्पुण्यं सर्वयज्ञेषु दीक्षया च लभेन्नर:।
तत्पुण्यं लभते सद्यो गोभ्यो दत्वा तृणानि च।।

अर्थात सारे यज्ञ करने में जो पुण्य है और सारे तीर्थ नहाने का जो फल मिलता है, वह फल गौ माता को चारा डालने से सहज ही प्राप्त हो जाता है। 

नित्य दें गौ ग्रास 


विष्णुधर्मोत्तरपुराण के अनुसार व्यक्ति के किसी भी अनिष्ट की निवृत्ति के लिए गौ माता के पूजन का विधान किया गया है। अनेक तरह के अरिष्टकारी भूचर, खेचर और जलचर आदि दुर्योग उस व्यक्ति को छू भी नहीं सकते जो नित्य या तो गौ माता की सेवा करता है या फिर रोज गौ माता के लिए चारे या रोटी का दान करता है। 

जो व्यक्ति प्रतिदिन भोजन से पहले गौ माता को ग्रास अर्पित करता है, वह सत्यशील प्राणी श्री, विजय और ऐश्वर्य को प्राप्त कर लेता है। जो व्यक्ति प्रात:काल उठने के बाद नित्य गौ माता के दर्शन करता है, उसकी अकाल मृत्यु कभी हो ही नहीं सकती, यह बात महाभारत में बहुत ही प्रामाणिकता के साथ कही गई है। 

ग्रहोपचार के लिए गौ पूजन 

धर्मशास्त्रों में गौ माता की महिमा भरी पड़ी है। जिस व्यक्ति को ग्रह बाधा हो या ग्रहों की प्रीति नहीं हो पा रही हो, उस व्यक्ति को सरल, सहज व सुलभ तरीके से प्राप्त गौ माता की नित्य सेवा करनी चाहिए। ज्योतिष शास्त्र में तो एक राशि ‘वृष’ का वर्ग ही गौ है। इसी तरह जिन लोगों की जन्मपत्री में धनु या मीन लग्न हो, उन्हें या जिनकी पत्री में बृहस्पति की महादशा या अंतर व प्रत्यंतर दशा चल रही हो उन्हें अनिवार्य रूप से गौ माता के दर्शन करने चाहिएं। 

बृहस्पति ग्रह के प्रसन्नार्थ रोज गाय को रोटी भी देनी चाहिए। यदि रोज संभव न हो सके तो प्रत्येक वीरवार को तो निश्चित रूप से गुड़ व रोटी गाय को खिलानी ही चाहिए। इसी तरह जिन जातकों की मेष व वृश्चिक राशि है, उन्हें हरेक मंगलवार को गौ माता को गुड़ और रोटी देनी चाहिए, इससे न केवल मंगल की पीड़ा शांत होती है, साथ ही यदि ऐसे लोग राजनीति क्षेत्र में होते हैं तो उन्हें राजनीतिक लाभ भी प्राप्त होता है।


वृद्धजनों को नित्य गौ माता का दर्शन करना चाहिए, इससे उन्हें शीघ्र ही मोक्षकारणभूत तत्वज्ञान की प्राप्ति होती है।



धनु व मीन राशि वाले लोगों को व्यापारिक, राजनीतिक व पारिवारिक संकटों से बचने के लिए पीले रंग की गाय विधि-विधान के साथ वीरवार को किसी श्रेष्ठ ब्राह्मण को श्रद्धा के साथ दान करनी चाहिए। सिंह व कर्क राशि वाले लोगों को भी प्रतिदिन गौ माता को रोटी खिलानी चाहिए, इससे संतान पीड़ा व स्वास्थ्य कष्ट का शमन होता है। 

जब गौ माता को रोटी दें तो इस मंत्र का उच्चारण करें-

त्वं माता सर्वदेवानां त्वं च यज्ञस्य कारणम्।
त्वं तीर्थं सर्वतीर्थानां नमस्तेऽस्तु सदानघे।।



                                             
                                                                                                                     

रत्न को पहनने के पहले जागृत अवश्य करवाये

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*जानिए की रत्न क्या हें..???कब एवं क्यों धारण करें/पहने..???*
 मनुष्य की सहज प्रकृति है कि वह हमेशा सुख में जीना चाहता है परंतु विधि के विधान के अनुसार धरती पर ईश्वर भी जन्म लेकर आता है तो ग्रहों की चाल के अनुसार उसे भी सुख-दुःख सहना पड़ता है।  हम अपने जीवन में आने वाले दुःखों को कम करने अथवा उनसे बचने हेतु उपाय चाहते हैं। उपाय के तौर पर अपनी कुण्डली की जांच करवाते हैं और ज्योतिषशास्त्री की सलाह से पूजा करवाते हैं, ग्रह शांति करवाते हैं अथवा रत्न धारण करते हैं।
 रत्न पहनने के बाद कई बार परेशानियां भी आती हैं अथवा कोई लाभ नहीं मिल पाता है। इस स्थिति में ज्योतिषशास्त्री के ऊपर विश्वास डोलने लगता है। जबकि हो सकता है कि आपका रत्न सही नहीं हो।
जितने भी रत्न या उपरत्न है वे सब किसी न किसी प्रकार के पत्थर है। चाहे वे पारदर्शी हो, या अपारदर्शी, सघन घनत्व के हो या विरल घनत्व के, रंगीन हो या सादे…। और ये जितने भी पत्थर है वे सब किसी न किसी रासायनिक पदार्थों के किसी आनुपातिक संयोग से बने हैं। विविध भारतीय एवं विदेशी तथा हिन्दू एवं गैर
हिन्दू धर्म ग्रंथों में इनका वर्णन मिलता है।
आधुनिक विज्ञान ने अभी तक मात्र शुद्ध एवं एकल 128 तत्वों को पहचानने में सफलता प्राप्त की है। जिसका वर्णन मेंडलीफ की आधुनिक आवर्त सारणी (Periodic Table) में किया गया है। किन्तु ये एकल तत्व है अर्थात् इनमें किसी दूसरे तत्व या पदार्थ का मिश्रण नहीं प्राप्त होता है। किन्तु एक बात अवश्य है कि इनमें कुछ एक को समस्थानिक (Isotopes) के नाम से जाना जाता है।
 प्राचीन संहिता ग्रंथों में जो उल्लेख मिलता है, उसमें एकल तत्व मात्र 108 ही बताए गए हैं। इनसे बनने वाले यौगिकों एवं पदार्थों की संख्या 39000 से भी ऊपर बताई गई हैं। इनमें कुछ एक आज तक या तो चिह्नित नहीं हो पाए है, या फिर अनुपलब्ध हैं। इनका विवरण, रत्नाकर प्रकाश, तत्वमेरू, रत्न वलय, रत्नगर्भा वसुंधरा, रत्नोदधि आदि उदित एवं अनुदित ग्रंथों में दिया गया है।
 महर्षि पाराशर एवं वराह मिहिर ने भी इसका संक्षिप्त विवरण अपने ग्रंथों में किया है, किन्तु इनकी संख्या असंख्य बताकर संक्षेप में ही उपसंहार कर दिया है।
 कैसे करें जाग्रत रत्नों को
उदाहरण के लिए हम एक रत्न मूंगा लेते है। इसकी 62 प्रजातियां हैं। किन्तु इनमें मात्र सात ही आज उपलब्ध है। हीरा की 39 प्रजातियां उपलब्ध हैं। नीलम की 65 प्रजातियां उपलब्ध हैं। जबकि इसकी प्रजातियां 400 से भी ऊपर बताई गई हैं। पुखराज की 24 प्रजातियां उपलब्ध है। इसी प्रकार एक-एक रत्नों की अनेक प्रजातियां उपलब्ध है, जो नाम में समान होने के बावजूद भी उनका गुण, प्रकृति, रंग एवं प्रभाव पृथक-पृथक है।
 हम उदाहरण के लिए लहसुनिया (Cat’s Eye) को लेते है। इसे वैतालीय संहिता में प्राकद्वीपीय मणि भी कहा गया है। इसके अनेक भेद है। जैसे – अवन्तिका, विदारुक, बरकत, विक्रांत, परिलोमश, द्युतिवृत्तिका, नारवेशी, निपुंजवेलि आदि। प्रायः सीधे शब्दों में लहसुनिया को केतु का रत्न माना गया है। किन्तु ध्यान रहे, यदि
केतु किसी अन्य ग्रह के प्रभाव में होगा तो यह लहसुनिया उस ग्रह के संयोग वाला होना चाहिए। कोई भी लहसुनिया हर जगह प्रभावी नहीं हो सकता। बल्कि इसका विपरीत प्रभाव भी सामने आ सकता है।
कज्जलपुंज, रत्नावली, अथर्वप्रकाश, आयुकल्प, रत्नाकर निधान, रत्नलाघव, Oriental Prism, Ancient Digiana तथा Indus Catalog आदि ग्रंथों में भी इसका विषद विवरण उपलब्ध है।
 कुछ रत्न बहुत ही उत्कट प्रभाव वाले होते है। कारण यह है कि इनके अंदर उग्र विकिरण क्षमता होती है। अतः इन्हें पहनने से पहले इनका रासायनिक परिक्षण आवश्यक है। जैसे- हीरा, नीलम, लहसुनिया, मकरंद, वज्रनख आदि। यदि यह नग तराश ( cultured) दिए गए हैं, तो इनकी विकिरण क्षमता का नाश हो जाता है। ये
प्रतिष्ठापरक वस्तु (स्टेट्‍स सिंबल) या सौंदर्य प्रसाधन की वस्तु बन कर रह जाते हैं। इनका रासायनिक या ज्योतिषीय प्रभाव विनष्ट हो जाता है।
कुछ परिस्थितियों में ये भयंकर हानि का कारण बन जाते हैं। जैसे- यदि तराशा हुआ हीरा किसी ने धारण किया है तथा कुंडली में पांचवें, नौवें या लग्न में गुरु का संबंध किसी भी तरह से राहु से होता है, तो उसकी संतान कुल परंपरा से दूर मान-मर्यादा एवं अपनी वंश-कुल की इज्जत डुबाने वाली व्यभिचारिणी हो जाएगी।
 दूसरी बात यह कि किसी भी रत्न को पहनने के पहले उसे जागृत (Activate) अवश्य कर लेना चाहिए। अन्यथा वह प्राकृत अवस्था में ही पड़ा रह जाता है व निष्क्रिय अवस्था में उसका कोई प्रभाव नहीं हो पाता है।
 उदाहरण के लिए पुखराज को लेते हैं। पुखराज को मकोय (एक पौधा), सिसवन, दिथोहरी, अकवना, तुलसी एवं पलोर के पत्तों को पीस कर उसे उनके सामूहिक वजन के तीन गुना पानी में उबालिए। जब पानी लगभग सूख जाए तो उसे आग से नीचे उतारिए। आधे घंटे में उसके पेंदे में थोड़ा पानी एकत्र हो जाएगा। उस पानी को शुद्ध गाय के दूध में मिला दीजिए। जितना पानी उसके लगभग चौगुना दूध होना चाहिए। उस दूधयुक्त घोल
में पुखराज को डाल दीजिए। हर तीन मिनट पर उसे किसी लकड़ी के चम्मच से बाहर निकाल कर तथा उसे फूंक मार कर सुखाइए और फिर उसी घोल में डालिए।  इस प्रकार आठ-दस बार करने से पुखराज नग के विकिरण के ऊपर लगा आवरण समाप्त हो जाता है तथा वह पुखराज सक्रिय हो जाता है।
 इसी प्रकार प्रत्येक नग या रत्न को जागृत करने की अलग विधि है। रत्नों के प्रभाव को प्रकट करने के लिए सक्रिय किया जाता है। इसे ही जागृत करना कहते हैं।
 *क्या सभी रत्न/स्टोन स्वयं सिद्ध होते हें..???*
कई ज्योतिषगण बगैर पढ़े, बगैर डिर्गी लिए एक बार नहीं कई बार गोल्ड मैडल पाते हैं। बड़े ताज्जुब की बा‍त है कि जिन्हें ज्योतिष का जरा भी ज्ञान नहीं है वे भी गोल्ड मैडलिस्ट बना दिए जाते है। कई तो करोड़ों मंत्रों की सि‍द्धि द्वारा रत्नों का चमत्कार करने का दावा भरते है। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं है, रत्न तो स्वयं सिद्ध होते हैं। बस जरूरत है उन्हें कुंडली के अनुसार सही व्यक्तियों तक पहुँचाने की।
 असल में रत्न स्वयं सिद्ध ही होते है। रत्नों में अपनी अलग रश्मियाँ होती है और कुशल ज्योतिष ही सही रत्न की जानकारी देकर पहनाए तो रत्न अपना चमत्कार आसानी से दिखा देते है। माणिक के साथ मोती, पुखराज के साथ मोती, माणिक मूँगा भी पहनकर असीम लाभ पाया जा सकता है।


 *विशेष सावधानियां रत्न/स्टोन खरीदते समय पर—*

*ज्योतिष ग्रहों के आधार पर व जन्म समय की कुंडलीनुसार ही भाग्य का दर्शन कराता  है एवं जातक की परेशानियों को कम करने की सलाह देता है। आज हर इन्सान परेशान है, कोई नोकरी से तो कोई व्यापार से। कोई कोर्ट-कचहरी से तो कोई संतान से। कोई प्रेम में पड़ कर चमत्कारिक ज्योतिषियों के चक्कर में फँस कर धन गँवाता है। ना तो वो किसी से शिकायत कर सकता है और ना किसी को बता सकता है। इस प्रकार न जानें कितने लोग फँस जाते हैं। न काम बनता है ना पैसा मिलता है। आज हम देख रहे हैं ज्योतिष के नाम पर बडे़-बडे़ अनुष्ठान, हवन, पूजा-पाठ कराएँ जाते है। जबकि इस प्रकार धन व समय की बर्बादी के अलावा कुछ नहीं है। कुछ ज्योतिषगण प्रेम विवाह, मूठ, करनी, चमत्कारी नग बताकर जनता को लूट रहे है। तो कोई वशीकरण करने का दावा भरते नजर आते है जबकि ऐसा करना कानूनन अपराध है, क्योंकि पहले तो ऐसा होता ही नहीं है। यदि कोई दावा भरता है तो ये अपराध है। कई तो ऐसे भी है जो जेल से छुडा़ने तक का दावा भरते है, तो कोई बीमारी के इलाज का भी दावा करते है। कुछ एक तो संतान, दुश्मन बाधा आदि दूर करने के दावा भरते है।
 नीलम के साथ मूँगा पहना जाए तो अनेक मुसीबातों में ड़ाल देता है। इसी प्रकार हीरे के साथ लहसुनिया पहना जाए तो निश्चित ही दुर्घटना कराएगा ही, साथ ही वैवाहिक जीवन में भी बाधा का कारण बनेगा। पन्ना-हीरा, पन्ना-नीलम पहन सकते है। फिर भी किसी कुशल ज्योतिष की ही सलाह लें तभी इन रत्नों के चमत्कार पा सकते है।
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जैसे मेष व वृश्चिक राशि वालों को मूँगा पहनना चाहिए। लेकिन मूँगा पहनना आपको
नुकसान भी कर सकता है अत: जब तक जन्म के समय मंगल की स्थिति ठीक न हो तब तक
मूँगा नहीं पहनना चाहिए। यदि मंगल शुभ हो तो यह साहस, पराक्रम, उत्साह
प्रशासनिक क्षेत्र, पुलिस सेना आदि में लाभकारी होता है।
 वृषभ व तुला राशि वालों को हीरा या ओपल पहनना चाहिए। यदि जन्मपत्रिका में शुभ
हो तो। इन रत्नों को पहनने से प्रेम में सफलता, कला के क्षेत्र में उन्नति,
सौन्दर्य प्रसाधन के कार्यों में सफलता का कारक होने से आप सफल अवश्य होंगे।
मिथुन व कन्या राशि वाले पन्ना पहनें तो सेल्समैन के कार्य में, पत्रकारिता
में, प्रकाशन में, व्यापार में सफलता दिलाता है।
 सिंह राशि वालों को माणिक ऊर्जावान बनाता है व राजनीति, प्रशासनिक क्षेत्र,
उच्च नौकरी के क्षेत्र में सफलता का कारक होता है।
 कर्क राशि वालों को मोती मन की शांति देता है। साथ ही स्टेशनरी, दूध दही-छाछ,
चाँदी के व्यवसाय में लाभकारी होता है।
 मकर और कुंभ नीलम रत्न धारण कर सकते हैं, लेकिन दो राशियाँ होने सावधानी से
पहनें।
 धनु व मीन के लिए पुखराज या सुनहला लाभदायक होता है। यह भी प्रशासनिक क्षेत्र
में सफलता दिलाता है। वहीं न्याय से जुडे व्यक्ति भी इसे पहन सकते है। आपको
सलाह है कि कोई भी रत्न किसी योग्य ज्योतिषी की सलाह बगैर कभी भी ना पहनें।
 मूंगा[image: websoft]*उपरत्न*
लाल हकीक, लाल आनेक्स, तामड़ा, लाल गोमेद।मूगा एक जैविक रत्न है। यह समुद्र से
निकाला जाता है। अपनी रासायनिक संरचना में मूंगा कैल्षियम कार्बोनेटका रुप
होता है। मूंगा मंगल ग्रह का रत्न है। अर्थात् मूंगा धारण करने से मंगल ग्रह
से सम्बंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मूंगा धारण करने से रक्त साफ होता है तथा
रक्त से संबंधित सभी दोष दूर हो जाते है। मंूगा मेष तथा वृष्चिक राषि वालों के
भाग्य को जगाता है। मूंगा धारण करने से मान-स्वाभिमान में बृद्धि होती है। तथा
मूंगा धारण करने वाले पर भूत-प्रेत तथा जादू-टोने का असर नहीं होता। मूंगा
धारण करने वाले की व्यापार या नौकरी में उन्नति होती है। मूंगा कम से कम सवा
रती का या इससे ऊपर का पहनना चाहिए। मूंगा 5, 7, 9, 11 रती का शुभ होता है।
मूंगे को सोने या तांबे में पहनना अच्छा माना जाता है।
*विशेषता*
तान्त्रिक प्रयोगों में भी मूंगे का अपना विशेष स्थान है। मूंगे के अतिरिक्त
किसी अन्य रत्नीय पत्थर का उपयोग तांत्रिक प्रयोगों में नहीं होता।
तंत्र प्रयोगों में प्रयोग की जाने वाली मूर्तियाँ यदि मूंगे की बनायी जायें
तो श्रेष्ठ होता है। विशेष रूप से गणेश-सिद्धि तथा लक्ष्मी-साधना के लिए
प्रयोग की जाने वाली मूर्तियां तो मूंगे की ही सर्वश्रेष्ठ होती हैं।
>हीरा[image:
websoft]*उपरत्न*
सफेद हकीक, ओपल, स्फटिक, सफेद पुखराज, जरकनहीरा कोयले से ही बनता है। रायासनिक
विष्लेषण के अनुसार हीरा कार्बन का ठोस रुप है। हीरे को रत्नों का सम्राट भी
कहा जाता है। हीरा शुक्र ग्रह का रत्न है। हीरा धारण करने से शुक्र ग्रह
संबंधित सभी दोष दूर हो जाते है। जिस व्यक्ति की कुझडली में शुक्र ग्रह कमजोर
होता है अथवा जिनकी राषि वृष या तुला होती है। वह हीरा धारण करके दुर्भाग्य को
सौभाग्य में बदल सकते है।हीरा सबसे सुन्दर रत्न है जो व्यक्ति हीरे को धारण
करता है। उसके चेहरे पर तेज रहता है। हीरा धारण करने से धन-धान्य में वृद्धि
होती है। दाम्पत्य जीवन सुखमय व्यतीत होता है। मानसिक दुबर्लता का अन्त होता
है। हीरा धारण करने से भूत-प्रेत तथा जादू टोने का असर नहीं होता। स्वास्थ्य
ठीक रहता है।
*हीरा के औषधि गुण*
निद्रानाश, वातरोग, चर्मरोग, मूलव्याध, जलोदर, पाचनशक्ति आदि रोगों में यह
रत्न अत्यन्त गुणकारी है। आयुवेदाचार्यो के अनुसार हीरा के भष्म को भी अनेक
बीमारियों के लिए उपयोग में लाया जाता है।
*दैवीय शक्ति*
हीरा में किसी भी कार्य निर्विरोध सम्पन्न होने के लिए देवीय शक्ति समाहित
होती है। अतः इस रत्न को धारण करने से घर में सभी प्रकार की शान्ती एवं सुलभता
का निर्माण होता है समाज में मान-सम्मान की प्रतिष्ठा प्रदान होती है तथा धारक
को शक्ति प्रदान करके चुस्त-दुस्त रखने में सहायता प्रदान करता है यह रत्न
किसी प्रकार से भी हानि उत्पन्न नहीं करता इस रत्न को स्त्री, पुरुष, बालवृद्ध
प्रत्येक लोग धारण कर सकते हैं। विशेषतः यह रत्न वृषभ राशि के लोगों का रत्न
है।
पन्ना[image:
websoft]*उपरत्न*
हरा हकीक, आनेक्स, मरगज, फिरोजापन्ना एक खनिज रत्न है। यह हरे रंग का चमकदार
पारदर्षक बहुमूल्य महा रत्न है। इसे बुद्ध ग्रह का रत्न कहते है।इसलिए पन्ना
पहनने से बुद्ध ग्रह के समस्त दोष दूर हो जाते है। पन्ना वैवाहिक जीवन में
मधुरता, संतान की प्राप्ति तथा धन वृद्धि करने वाला महारत्न है। जिस व्यक्ति
की कुण्डली में बुद्ध ग्रह की स्थिति ठीक न हो तथा लिजनकी राषि कन्या हो तो
उन्हें पन्ना धारण करना चाहिए। यदि विद्यार्थी पन्ना पहने तो बुद्धि, तीव्र
होती है। सरस्वती की कृपा बनी रहती है। पन्ना आधरित व्यक्ति के विरुद्ध कोई
षड़यन्त्र सफल नहीं होता है। पन्ना पहनने से शरीर में बल एवं वीर्य की वृद्धि
होती है। इसे धारण करने से मन एकाग्र होता है। पन्ना व्यक्ति को संयमित करता
है तथा मानसिक शांति प्रदान करता है। बुद्ध ग्रह का संबंध वाणी से होता है।
पन्ना, दमा, श्वास हकलाना आदि परेशानियों में अति लाभकारी होता है। जिन
व्यक्तियों के पास धन नही रुकता उन्हें पन्ना अवश्य धारण करना चाहिए।
मोती[image:
websoft]*उपरत्न*
दूधिया हकीक, सफेद मूंगा, चन्द्रकांत मणि, सफेद पुखराज।मोती को भाषाभेद के
अनुसार अनेक नामों से सम्बोधित किया जाता है। यथा, संस्कृत में मुक्ता,
मौक्तिक, शुक्तिज, इन्द्र-रत्न, हिंन्दी पंजाबी में मोती अँग्रेजी में पर्ल
तथा उर्दू फारसी में मुखारीद कहा जाता है।मोती को पहनने से बल, बुद्धि, ज्ञान
एवं सौन्दर्य में वृद्धि होती है। तथा धन, यष सम्मान एवं सभी प्रकार की
मनोकामनाएं पूरी होती है। मन शांत रहता है। मोती धारण करने से हृदय रोग, नेत्र
रोग, गठिया, अस्तमा इत्यादि बीमारियों से बचाव होता है। मोती गर्म स्वभाव वाले
व्यक्तियों के लिए अच्छा माना जाता है। इसको धारण करने से गुस्सा शांत रहता
है। मोतियों की माला लड़कियों का आत्मविष्वास तथा सुन्दरता को बढ़ाती है।
पुत्री की शादी में मोतियों की माला देना बहुत ही शुभ माना जाता है। मोती में
लगभग 90 प्रतिषत चूना होता है। इसलिए कैल्षियम की कमी के कारण उत्पन्न रोग में
मोती चमत्कारी ढ़ग से फायदा पहुंचाता है।
मणिक[image:
websoft]*उपरत्न*
स्टार माणिक, रतवा हकीक, तामड़ा लाल तुरमली।भगवान सूर्य को ग्रहराज कहा जाता
है इन्हीं के प्रताप से मानव जीवन का विकास होता है कुण्डली में सूर्य की
क्षीण स्थिति को शक्तिपूर्ण बनाने के लिए सूर्यरत्न माणिक्य धारण के लिए
परामर्श दिया जाता है।माणिक्य एक अत्यधिक मूल्यवान तथा शोभायुक्त रत्न है।
माणिक्य को स्थान भेद के अनुसार अनेक नामों से पुकारा जाता है। माणिक्य के
सबसे अधिक नाम संस्कृत भाषा में मिलते हैं। संस्कृत में इसे कुरविन्द,
पदुमराग, वसुरत्न, लोहित, माणिक्य, शोणरत्न, रविरत्न शोणोपल आदि विभिन्न नामों
से पुकारा जाता है। हिन्दी में चुन्नी, माणिक, बंगला में माणिक्य, मराठी में
माणिक, तेलगू में माणिक्य फारसी में याकूत, अरबी में लाल बदख्शाँ तथा अंग्रेजी
में रुबी नाम से पुकारा जाता है। माणिक एक खनित रत्न है। माणिक की खाने बर्मा,
श्रीलंका, काबुल, हिमालय पर्वत कष्मीर मे पायी जाती है। अपनी रासायनिक संरचना
के रुप में माणिक्य एल्युमीनियम आक्साइड का रुप होता है। यह पारदर्षी तथा
अपारदर्षी दोनों तरह का होता है। माणिक सूर्य ग्रह का रत्न है। अंतः माणिक को
धारण करने से सूर्य ग्रह से संबंधित समस्त दोष दूर हो जाते है। सिंह राषि
वालों के लिए माणिक पहनना अति शुभ माना जाता है। जन्म कुण्डली में जिन
व्यक्तियों का सूर्य ग्रह कमजोर स्थिति में हो उन्हें माणिक अवश्य पहनना
चाहिए। माणिक धारण करने से यष, कीर्ति, धन, सम्पति, सुख-षांति प्राप्त होती
है। यह वंष वृद्धिकारक भी माना जाता है। इसके प्रयोग से भय, व्याधि, सुख,
क्लेष, चिन्ता आदि का नाष होता है। जिन व्यक्तियों के जीवन में स्थिरता ना हो
तथा कोई काम निष्चित ना हो यह उनके जीवन की अनिष्चिताओं को दूर कर उज्जवल
भविष्य का निर्माण करता है। इसे पहनने से व्यक्ति के जीवन में ठहराव आता है।
कई प्रकार की बीमारियों से रक्षा होती है।
पुखराज[image:
websoft]*उपरत्न*
पीला हकीक, सुनहैला, पीला गोमेद, बैरुजयह एक मूल्यवान खनिज रत्न है। इसे गुरु
रत्न भी कहा जाता है। यानि इसका स्वामी बृहस्पति है। पुखराज हीरा और माणिक्य
के बाद सबसे कठोर रत्न है। अपने रासायनिक विष्लेषण में इसमें एल्युमीनियम
हाइड्रोविसम और क्लोरिन जैसे तत्व पाए जाते है।यह कई रंगों का होता है लेकिन
भारत में प्राय पीला तथा सफेद ही ज्यादा प्रयोग में लाया जाता है। यह कई देषों
में पाया जाता है। लेकिन श्रीलंका तथा ब्राजील का सबसे अच्छा माना जाता है।
पुखराज गुरु ग्रह का प्रतिनिधि रत्न है। पुखराज पहनने से गुरु ग्रह से संबंधित
समस्त दोष दूर हो जाते है। धनु राषि वालो को पुखराज पहनने से लाभ होता है।
पुखराज पहनने से बल, आयु, स्वास्थ्य, यष, कीर्ति व मानसिक शांति प्राप्त होती
है। इसको धारण करने से व्यापार तथा व्यवसाय में वृद्धि होती है। पुखराज को
बृहस्पति जी का प्रतीक माना गया है। बृहस्पति जी को देव गुरु का वरदान प्राप्त
है। इसलिए इन्हें गुरु भी कहा जाता है। इसलिए इसे पढ़ाई लिखाई के क्षेत्र में
उन्नति के लिए पहनाया जाता है। यदि किसी कन्या के विवाह में विलम्ब हो रहा हो
तो पुखराज धारण करने से समस्या का हल जल्द हो जाता है। पुखराज मानसिक शांति
प्रदान करके मान प्रतिष्ठा को श्रेयस्कर व दीर्घायु प्रदान करता है। इसे
व्यापारी स्टोन भी कहते है। क्योंकिं यह व्यापार करने वालो के लिए लाभदायक
माना जाता है। पुखराज का स्वामी गुरु होने के कारण इसे सभी लोग धारण कर सकते
है। पुखराज धारक के रुके हुए कार्यो को पुनः शुरु करवाता है। मित्रता को बल
प्रदान करता है। पुखराज चर्म रोग नाषक, बल-वीर्य की वृद्धि करने वाला होता है।
जो लोग पुखराज ना खरीद सके वह स्ट्रिीन (सुनैला) धारण कर सकते है।
नीलम[image:
websoft]*उपरत्न*
कटैला, काला हकीक, काला स्टार, लाजवृतयह एक मूल्यवान खनिज पत्थर है। नीलम,
नीला, हल्का नीला, आसमानी या बैंगनी रंग का होता है। यह भारी पारदर्षी पत्थर
है। लेकिन कुछ स्थानों पर मिलने वाले नीलम गहरे रंग के होते है था इनमें
पारदर्षिता कम होती है। नीलम के अन्दर चीर-फाड़, दाग-धब्बे, धुंधलापन तथा जाला
भी पाया जाता है।जितना दाग कम पाया जाता है। नीलम उतना महंगा हो जाता है। बिना
दाग के नीलम की कीमत बहुत अधिक होती है। नीलम बर्मा, श्रीलंका, बैंकाक, भारत,
आस्ट्रेलिया तथा अन्य कई देशों में पाया जाता है। भारत में कष्मीर तथा
उत्तराखण्ड के पहाड़ों में नीलम की खाने है। नीलम शनि ग्रह का प्रतिनिधि रत्न
है, अतंः नीलम पहनने से शनि संबंधित समस्त दोष दूर हो जाते है। मकर तथा कुम्भ
राषि वालो को नीलम पहनना अति शुभकारी होता है। नीलम के बारे में कहा जाता है
कि यह अपना प्रभाव शीघ्र दिखाता है। नीलम का प्रभाव शुभ तथा अषुभ दोनों प्रकार
का होता है। इसलिए नीलम अंगूठी में धारण करने से पहले बाजू में कपड़ें से बांध
कर दो दिन तक रखना चाहिए। इसके अलावा नीलम का उपरत्न भी नीलम धारण करने से
पहले कुछ समय के लिए धारण करना चाहिए। रात को सोते समय यदि शुभ स्वप्न आए या
शुभ समाचार मिले तो नीलम आपके लिए शुभ माना जाएगा। यदि विपरीत परिस्थितियॅा
बने तो नीलम अशुभ माना जाएगा। नीलम यदि अनुकूल पड़े तो धन-धान्य, सुख सम्पति,
मान,सम्मान, यश गौरव, आय वृद्धि, बल तथा वंष की वृद्धि होती है। नीलम के बारे
में कहा जाता है। यदि अनुकूलन पड़े तो भिखारी को भी रातों रात राजा बना देता
है।
यह एक खनिज पत्थर है। अपनी रासायनिक संरचना में यह जिर्कोनियम का
सिलिकेट रुप माना जाता है। इसकी उत्पति सायनाइट की षिलाओं के अन्दर होती है।
यह एक पारदर्षी रत्न है। इसके अन्दर जाला धुंधलापन अथवा कट के निषान अवश्य
पाये जाते है। लेकिन जितना साफ गोमेद होता है उतना उत्तम माना जाता है। गोमेद
काफी सस्ता रत्न होता है। लेकिन अपने आकर्षक रंग व गुणों के कारण इसे नवरत्नों
में सम्मानित स्थान प्राप्त है। गोमेद को राहू ग्रह का प्रतिनिधि रत्न माना
जाता है।इसलिए राहु ग्रह से संबंधित समस्त दोष तथा राहु दषा जनित समस्या
दुष्प्रभाव गोमेद धारण करने से दूर हो जाते है। अंतः दैत्य ग्रह राहु की दशा
को ठीक करने के लिए गोमेद धारण करना चाहिए। राहु ग्रह के प्रकोप से मानसिक
तनाव बढ़ता है। छोटी-छोटी बातों पर क्रोध आता है। कार्यकुषलता में निर्णायक
कमी आती हे। निर्णय लेने की क्षमता क्षीण हो जाती है तथा योजनाएं असफल हो जाती
है। ऐसे व्यक्तियों को गोमेद अवश्य धारण करना चाहिए। गोमेद धारण करने वाले के
समक्ष शत्रु टिक नहीं पाता इससे शत्रुओं का भय समाप्त हो जाता है। जिन बच्चों
का मन पढ़ाई में ना लगता हो तथा बहुत शरारतें करते हो। उन्हें गोमेद पहनाने से
लाभ पहुंचता है। इसको धारण करने से सुख सम्पति में भी वृद्धि होती है। गोमेद
रत्न यद्यपि कई रंगों में उपलब्ध होता हैं लेकिन ज्योतिषीय दृष्टिकोण से राहु
रत्न गोमेद वही कहलाता है, जो गो-मूत्र के रंग वाला हो। यह अत्यधिक प्रचलित
राहु रत्न स्थान तथा भाषा भेद के अनुसार अपने-अपने क्षेत्र में विभिन्न नामों
से पुकारा जाता है। गोमेद को देवभाषा संस्कृत में तृणवर, तपोमणि, राहुरत्न,
स्वर भानु, पीतरत्न, गोमेद, रत्नगोमेदक, हिन्दी में गोमेद, गुजराती में
गोमूत्रजंबु, मराठी में गोमेदमणि, उर्दू, फारसी में जरकुनिया अथवा जारगुन,
बंगाली में लोहितमणि, अरबी में हजारयमनि, बर्मा में गोमोक, चीनी में पीसी तथा
आंग्ल भाषा में अगेट नाम से जाना जाता है।
लहसुनिया का स्वामी केतु ग्रह होता है। जिसके ऊपर केतु ग्रह का प्रकोप
हो उसे लहसुनिया धारण करना चाहिए। इसको धारण करने से पुत्र सुख और सम्पति
प्राप्त होती है। धारक की शत्रु, अपमानए तथा जंगली जानवरों से रक्षा होती है।
लहसुनिया को अंग्रेजी में कैटस आई कहते है। इसमें सफेद धारियॅा पाई जाती है।
जिनकी संख्या आमतौर पर दो तीन, या चार होती है। लेकिन जिस लहसुनिया में ढाई
धारियॅा हो वह अच्छा माना जाता है। यह धारियॅा धुएं के समान दिखाई देती है।यह
दिमागी परेषानियां शारीरिक दुर्बलता, दुख, दरिद्रता, भूत आदि सू छुटकारा
दिलाता है। लहसुनिया यदि अनुकूल हो तो यह धन दौलत में तीव्र गति से वृद्धि
करता है। आकस्मित दुर्घटना, गुप्त शत्रु से भी रक्षा करता है। इसे धारण करने
से रात्रि में भयानक स्वप्न नहीं आते है। असको लाकेट में पहनने से दमे से तथा
श्वास नली की सूजन से आराम मिलता है।
*क्या संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम लाभ पाया जा सकता हें..???
रत्न कोई भी हो अपने आपमें प्रभावशाली होता है। हीरा शुक्र को अनुकूल बनाने के लिए
होता है तो नीलम शनि को। इसी प्रकार माणिक रत्न सूर्य के प्रभाव को कई गुना
बड़ा कर उत्तम फलदायी होता है। मोती जहाँ मन को शांति प्रदान करता है ‍तो
मूँगा उष्णता को प्रदान करता है। इसके पहनने से साहस में वृद्धि होती है।
 पुखराज रत्न सभी रत्नों का राजा है। इसे पहनने वाला प्रतिष्‍ठा पाता है व उच्च
पद तक आसीन हो सकता है। अपनी योग्यतानुसार रत्न पहनने से कार्य में आने वाली
बाधाओं को दूर कर राह आसान बना देते हैं। यूँ तो रत्न अधिकांश अलग-अलग व
अलग-अलग धातुओं में पहने जाते है। लेकिन मेरे 20 वर्षों के अनुभव से संयुक्त
रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में पदोन्नति, राजनीति में
सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से मुक्ति, वैवाहिक ‍तालमेल
में बाधा को दूर कर अनुकूल बनाना, संतान कष्ट, विद्या में रुकावटें, विदेश,
आर्थिक उन्नति आदि में सफल‍ता दिलाई।
 जन्मपत्रिका के आधार पर व ग्रहों की स्थितिनुसार संयुक्त रत्न पहन कर उत्तम
लाभ पाया जा सकता है। संयुक्त रत्न में माणिक-पन्ना, पुखराज-माणिक,
मोती-पुखराज, मोती-मूँगा, मूँगा-माणिक, मूँगा-पुखराज, पन्ना-नीलम, नीलम-हीरा,
हीरा-पन्ना, माणिक-पुखराज-मूँगा, माणिक-पन्ना, मूँगा भी पहना जा सकता है।
 क्या नहीं पहना जा सकता इसे भी जान लेना आवश्यक है। लहसुनियाँ-हीरा,
मूँगा-नीलम, नीलम-माणिक। संयुक्त रत्न तभी पहने जाते है जब जन्मपत्रिका में
देख व अनुकूल ग्रहों की अवस्था हो या दशा-अन्तर्दशा चल रही है। ऐसी स्थिति में
श्रेष्‍ठ फलदायी होते हैं।
 कभी-कभी व्यापार नहीं चल रहा हो, अच्छी सफलता नहीं मिल रही हो तो चार रत्न यथा
पुखराज-मूँगा, माणिक व पन्ना पहनें तो सफलता मिलने लग जाती है। रत्नों की
सफलता तभी मिलती है जब शुभ मुहूर्त में उसी के नक्षत्र में बने हो या जो ग्रह
प्रभाव में तेज हो उसके नक्षत्र में बने हो व पहनने का भी उसी ग्रह के नक्षत्र
में हो तब लाभ भी कई गुना बढ़ जाता है।
 मेरे अनुभव से संयुक्त रत्न पहनवाकर कईयों को व्यापार में उन्नति, नौकरी में
पदोन्नति, राजनीति में सफलता, कोर्ट-कचहरी में सफलता, शत्रु नाश, कर्ज से
मुक्ति, वैवाहिक ‍तालमेल आदि में सफल‍ता
दिलाई।
गार्नेट सूर्य का उपरत्न माना गया है। इसे माणिक की जगह पहना जाता है। यह
सूर्य का उपरत्न होने के साथ बहुत प्रभावशाली भी है। इसे हिन्दी में याकूब और
रक्तमणि के नाम से भी जाना जाता।
 यह लाल रंग का कठोर होता है। अक्सर सस्ती घड़ियों में माणिक की जगह इस्तेमाल
किया जाता है लेकिन कीमती घड़ियों में इसका इस्तेमाल नहीं होता बल्कि असली
माणिक का प्रयोग करते हैं। यह रत्न सस्ता होने के साथ-साथ बहुत आसानी से
उपलब्ध हो जाता है।
 इस रत्न को अनामिका अँगुली में ताँबे में बनवाकर शुक्ल पक्ष के रविवार को
प्रातः सवा दस बजे पहना जाता है। इसके पहनने से सौभाग्य में वृद्धि, स्वास्थ्य
में लाभ, मान-सम्मान की प्राप्ति होती है। यात्रादि में सफलता दिलाता है,
मानसिक चिन्ता दूर होती है। मन में शंका-कुशंका को भी दूर भगाता है। इसके
पहनने से डरावने सपने नहीं आते।
 कहा जाता है कि लाल रंग का गार्नेट बुखार में फायदा पहुँचाता है व पीले रंग का
गार्नेट पीलिया रोग में फायदा पहुँचाता है। इसके पहनने से बिजली गिरने का असर
नहीं होता एवं यात्रा में किसी प्रकार की हानि, जोखिम से भी रक्षा करता है,
ऐसी प्रचीन मान्यता है।
यह रत्न खतरों को भाँप कर अपना मूल स्वरूप खो देता है। कभी कष्ट आने पर टूट भी
जाता है। जिन्हें माणिक नहीं पहनना हो वे इसे अजमाकर देख सकते है। क्योंकि ये
जेब पर भारी नहीं पड़ता।
*क्या ग्रहों के रत्न पहने जा सकते हैं..????*
सामान्यत: लग्न कुंडली के अनुसार कारकर ग्रहों के (लग्न, नवम, पंचम) रत्न पहने
जा सकते हैं जो ग्रह शुभ भावों के स्वामी होकर पाप प्रभाव में हो, अस्त हो या
श‍त्रु क्षेत्री हो उन्हें प्रबल बनाने के लिए भी उनके रत्न पहनना प्रभाव देता
है।
सामान्यत: रत्नों के बारे में भ्रांति होती है जैसे विवाह न हो रहा हो तो
पुखराज पहन लें, मांगलिक हो तो मूँगा पहन लें, गुस्सा आता हो तो मोती पहन लें।
मगर कौन सा रत्न कब पहना जाए इसके लिए कुंडली का सूक्ष्म निरीक्षण जरूरी होता
है। लग्न कुंडली, नवमांश, ग्रहों का बलाबल, दशा-महादशाएँ आदि सभी का अध्ययन
करने के बाद ही रत्न पहनने की सलाह दी जाती है। यूँ ही रत्न पहन लेना
नुकसानदायक हो सकता है। मोती डिप्रेशन भी दे सकता है, मूँगा रक्तचाप गड़बड़ा
सकता है और पुखराज अहंकार बढ़ा सकता है, पेट गड़बड़ कर सकता है।
रत्न पहनने के लिए दशा-महादशाओं का अध्ययन भी जरूरी है। केंद्र या त्रिकोण के
स्वामी की ग्रह महादशा में उस ग्रह का
3, 6, 8, 12 के स्वामी ग्रहों के रत्न नहीं पहनने चाहिए। इनको शांत रखने के
लिए दान-मंत्र जाप का सहारा लेना चाहिए। रत्न पहनने से अधिक लाभ मिलता है।रत्न
निर्धारित करने के बाद उन्हें पहनने का भी विशेष तरीका होता है। रत्न अँगूठी
या लॉकेट के रूप में निर्धारित धातु (सोना, चाँदी, ताँबा, पीतल) में बनाए जाते
हैं।
उस ग्रह के लिए निहित वार वाले दिन शुभ घड़ी में रत्न पहना जाता है। इसके पहले
रत्न को दो दिन कच्चे दूध में भिगोकर रखें। शुभ घड़ी में उस ग्रह का मंत्र जाप
करके रत्न को सिद्ध करें। (ये जाप 21 हजार से 1 लाख तक हो सकते हैं) तत्पश्चात
इष्ट देव का स्मरण कर रत्न को धूप-दीप दिया तो उसे प्रसन्न मन से धारण करें।
इस विधि से रत्न धारण करने से ही वह पूर्ण फल देता है। मंत्र जाप के लिए भी
रत्न सिद्धि के लिए किसी ज्ञानी की मदद भी ली जा सकती है।
शनि और राहु के रत्न कुंडली के सूक्ष्म निरीक्षण के बाद ही पहनना चाहिए अन्यथा
इनसे भयंकर नुकसान भी हो सकता है।

Tuesday, November 25, 2014

PROTECT YOUR EYES -

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(1)आँखों से पानी आना :- आँखों से पानी आता हो तो सूखे धनिये का काड़ा २-२ बूंद आँखों में डाल लीजिये, आँखोंसे पानी आना बंद हो जायेगा ।

(2) मोतियाबिंद :- प्रतिदिन सुबह-शाम आँखों में पिसी सरसों का तेल उंगली से लगायें । इससे
आँखें निरोग रहेंगी , मोतियाबिंद नहीं होगा और दृष्टि साफ़ रहेगी ।
- मोतियाबिंद में छोटी मक्खी का असली शहद और देसी हरे आंवलों का रस बराबर-बराबर मिलाकर एक साफ़ शीशी में रख लें और सुबह-शाम आँख में नियमित रूप से
डालें ।

(3)नेत्रज्योति बढ़ाने के लिएः- पहला प्रयोगः इन्द्रवरणा (बड़ी इन्द्रफला) के फल को काटकर अंदर से बीज निकाल दें। इन्द्रवरणा की फाँक को रात्रि में सोते समय लेटकर आँख के ऊपर ललाट पर बाँध दें। आँख में उसका पानी न जाये, यह सावधानी रखें। इस प्रयोग से नेत्रज्योति बढ़ती है।
दूसरा प्रयोगः त्रिफला चूर्ण को रात्रि में पानी में भीगोकर, सुबह छानकर उस पानी से आँखें धोने से नेत्रज्योति बढ़ती है।

तीसरा प्रयोगः जलनेति करने से नेत्रज्योति बढ़ती है। इससे आँख, नाक, कान के समस्त रोग मिट जाते हैं। (आश्रम से प्रकाशित 'योगासन' पुस्तक में जलनेति का संपूर्ण विवरण दिया गया है।)

(4)सौंधी (रात को न दिखना) (Night Blindness)- पहला प्रयोगः बेलपत्र का 20 से 50 मि.ली. रस पीने और 3 से 5 बूँद आँखों से आँजने से रतौंधी रोग में आराम होता है।
दूसरा प्रयोगः श्याम तुलसी के पत्तों का दो-दो बूँद रस 14 दिन तक आँखों में डालने से रतौंधी रोग में लाभ होता है। इस प्रयोग से आँखों का पीलापन भी मिटता है।
तीसरा प्रयोगः 1 से 2 ग्राम मिश्री तथा जीरे को 2 से 5 ग्राम गाय के घी के साथ खाने से एवं लेंडीपीपर को छाछ में घिसकर आँजने से रतौंधी में फायदा होता है।
चौथा प्रयोगः जीरा, आँवला एवं कपास के पत्तों को समान मात्रा में लेकर पीसकर सिर पर 21 दिन तक पट्टी बाँधने से लाभ होता है।

(5) आँखों का पीलापनः रात्रि में सोते समय अरण्डी का तेल या शहद आँखों में डालने से आँखों की सफेदी बढ़ती है।
आँखों की लालिमाः आँवले के पानी से आँखें धोने से या गुलाबजल डालने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः जामफल के पत्तों की पुल्टिस बनाकर (20-25 पत्तों को पीसकर, टिकिया जैसी बनाकर, कपड़े में बाँधकर) रात्रि में सोते समय आँख पर बाँधने से आँखों का दर्द मिटता है, सूजन और वेदन दूर होती है।
तीसरा प्रयोगः हल्दी को डली को तुअर की दाल में उबालकर, छाया में सुखाकर, पानी में घिसकर सूर्यास्त से पूर्व दिन में दो बार आँख में आँजने से आँखों की लालिमा, झामर एवं फूली में लाभ होता है।

(6) आँखों का कालापनः आँखों के नीचे के काले हिस्से पर सरसों के तेल की मालिश करने से तथा सूखे आँवले एवं मिश्री का चूर्ण समान मात्रा में 1 से 5 ग्राम तक सुबह-शाम पानी के साथ लेने से आँखों के पास के काले दाग दूर होते हैं।

(7) आँखों की गर्मी या आँख आने परः नींबू एवं गुलाबजल का समान मात्रा का मिश्रण एक-एक घण्टे के अंतर से आँखों में डालने से एवं हल्का-हल्का सेंक करते रहने से एक दिन में ही आयी हुई आँखें ठीक होती हैं।

(8) आँख की अंजनी (मुहेरी या बिलनी) (Stye)- हल्दी एवं लौंग को पानी में घिसकर गर्म करके अथवा चने की दाल को पीसकर पलकों पर लगाने से तीन दिन में ही गुहेरी मिट जाती है।

(9) आँख में कचरा जाने परः पहला प्रयोगः सौ ग्राम पानी में एक नींबू का रस डालकर आँखे धोने से कचरा निकल जाता है। दूसरा प्रयोगः आँख में चूना जाने पर घी अथवा दही का तोर (पानी) आँजें।

(10) आँख दुखने परः गर्मी की वजह से आँखें दुखती हो तो लौकी को कद्दूकस करके उसकी पट्टी बाँधने से लाभ होता है।

(11) आँखों से पानी बहने परः पहला प्रयोगः आँखें बन्द करके बंद पलको पर नीम के पत्तों की लुगदी रखने से लाभ होता है। इससे आँखों का तेज भी बढ़ता है।
दूसरा प्रयोगः रोज जलनेति करें। 15 दिन तक केवल उबले हुए मूँग ही खायें। त्रिफला गुगल की 3-3 गोली दिन में तीन बार चबा-चबाकर खायें तथा रात्रि को सोते समय त्रिफला की तीन गोली गर्म पानी के साथ सेवन करें। बोरिक पावडर के पानी से आँखें धोयें इससे लाभ होता है।

(12) मोतियाबिंद (Cataract) एवं झामर (तनाव)- पहला प्रयोगः पलाश (टेसू) का अर्क आँखों में डालने से नये मोतियाबिंद में लाभ होता है। इससे झामर में भी लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः गुलाबजल में विषप्रखरा (पुनर्नवा) घिसकर आँजने से झामर में लाभ होता है।

(13) चश्मा उतारने के लिएः पहला प्रयोगः छः से आठ माह तक नियमित जलनेति करने से एक पाँव के तलवों तथा कनपटी पर गाय का घी घिसने से लाभ होता है।
दूसरा प्रयोगः 7 बादाम, 5 ग्राम मिश्री और 5 ग्राम सौंफ दोनों को मिलाकर उसका चूर्ण बनाकर रात्रि को सोने से पहले दूध के साथ लेने से नेत्रज्योति बढ़ती है।
तीसरा प्रयोगः एक चने के दाने जितनी फिटकरी को सेंककर सौ ग्राम गुलाबजल में डालें और प्रतिदिन रात्रि को सोते समय इस गुलाबजल में डालें और प्रतिदिन रात्रि को सोते समय इस गुलाबजल की चार-पाँच बूँद आँखों में डालकर आँखों की पुतलियों को इधर-उधर घुमायें। साथ ही पैरों के तलुए में आधे घण्टे तक घी की मालिश करें। इससे आँखों के चश्मे के नंबर उतारने में सहायता मिलती है तथा मोतियाबिंद में लाभ होता है।

(14) सर्वप्रकार के नेत्ररोगः पहला प्रयोगः पैर के तलवे तथा अँगूठे की सरसों के तेल से मालिश करने से नेत्ररोग नहीं होते।
दूसरा प्रयोगः ॐ अरुणाय हूँ फट् स्वाहा। इस मंत्र के जप के साथ-साथ आँखें धोने से अर्थात् आँख में धीरे-धीरे पानी छाँटने से असह्य पीड़ा मिटती है।
तीसरा प्रयोगः हरड़, बहेड़ा और आँवला तीनों को समान मात्रा में लेकर त्रिफलाचूर्ण बना लें। इस चूर्ण की 2 से 5 ग्राम मात्रा को घी एवं मिश्री के साथ मिलाकर कुछ महीनों तक सेवन करने से नेत्ररोग में लाभ होता है।

(15) आँखों की सुरक्षाः रात्रि में 1 से 5 ग्राम आँवला चूर्ण पानी के साथ लेने से, हरियाली देखने तथा कड़ी धूप से बचने से आँखों की सुरक्षा होती है।
(16) आँखों की सुरक्षा का मंत्रः
ॐ नमो आदेश गुरु का... समुद्र... समुद्र में खाई... मर्द(नाम) की आँख आई.... पाकै फुटे न पीड़ा करे.... गुरु गोरखजी आज्ञा करें.... मेरी भक्ति.... गुरु की भक्ति... फुरो मंत्र ईश्वरो वाचा।नमक की सात डली लेकर इस मंत्र का उच्चारण करते हुए सात बार झाड़ें। इससे नेत्रों की पीड़ा दूर हो जाती है।

(17) नेत्ररोगों के लिए चाक्षोपनिषद् :- 

ॐ अस्याश्चाक्षी विद्यायाः अहिर्बुधन्य ऋषिः। गायत्री छंद। सूर्यो देवता। चाक्षुरोगनिवृत्तये जपे विनियोगः।

ॐ इस चाक्षुषी विद्या के ऋषि अहिर्बुधन्य हैं। गायत्री छंद है। सूर्यनारायण देवता है। नेत्ररोग की निवृत्ति के लिए इसका जप किया जाता है। यही इसका विनियोग है।.

ॐ चक्षुः चक्षुः तेज स्थिरो भव। मां पाहि पाहि। त्वरित चक्षुरोगान् शमय शमय। मम जातरूपं तेजो दर्शय दर्शय। यथा अहं अन्धो न स्यां तथा कल्पय कल्पय। कल्याणं कुरु करु।

याति मम पूर्वजन्मोपार्जितानि चक्षुः प्रतिरोधकदुष्कृतानि सर्वाणि निर्मूल्य निर्मूल्य। ॐ नमः करुणाकराय अमृताय। ॐ नमः सूर्याय। ॐ नमः भगवते सूर्यायाक्षि तेजसे नमः।

खेचराय नमः। महते नमः। रजसे नमः। तमसे नमः। असतो मा सद गमय। तमसो मा ज्योतिर्गमय। मृत्योर्मा अमृतं गमय। उष्णो भगवांछुचिरूपः। हंसो भगवान शुचिरप्रति तेजसे नमः।

ये इमां चाक्षुष्मती विद्यां ब्राह्मणो नित्यमधीते न तस्याक्षिरोगो भवति। न तस्य कुले अन्धो भवति।
अष्टौ ब्राह्मणान् सम्यग् ग्राहयित्वा विद्या-सिद्धिर्भवति। ॐ नमो भगवते आदित्याय अहोवाहिनी अहोवाहिनी स्वाहा।


ॐ हे सूर्यदेव ! आप मेरे नेत्रों में नेत्रतेज के रूप में स्थिर हों। आप मेरा रक्षण करो, रक्षण करो। शीघ्र मेरे नेत्ररोग का नाश करो, नाश करो। मुझे आपका स्वर्ण जैसा तेज दिखा दो, दिखा दो। मैं अन्धा न होऊँ, इस प्रकार का उपाय करो, उपाय करो। मेरा कल्याण करो, कल्याण करो। मेरी नेत्र-दृष्टि के आड़े आने वाले मेरे पूर्वजन्मों के सर्व पापों को नष्ट करो, नष्ट करो। ॐ (सच्चिदानन्दस्वरूप) नेत्रों को तेज प्रदान करने वाले, दिव्यस्वरूप भगवान भास्कर को नमस्कार है। ॐ करुणा करने वाले अमृतस्वरूप को नमस्कार है। ॐ भगवान सूर्य को नमस्कार है। ॐ नेत्रों का प्रकाश होने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ आकाश में विहार करने वाले भगवान सूर्यदेव को नमस्कार है। ॐ रजोगुणरूप सूर्यदेव को नमस्कार है। अन्धकार को अपने अन्दर समा लेने वाले तमोगुण के आश्रयभूत सूर्यदेव को मेरा नमस्कार है।

हे भगवान ! आप मुझे असत्य की ओर से सत्य की ओर ले चलो। अन्धकार की ओर से प्रकाश की ओर ले चलो। मृत्यु की ओर से अमृत की ओर ले चलो।

उष्णस्वरूप भगवान सूर्य शुचिस्वरूप हैं। हंसस्वरूप भगवान सूर्य शुचि तथा अप्रतिरूप हैं। उनके तेजोमय रूप की समानता करने वाला दूसरा कोई नहीं है।

जो कोई इस चाक्षुष्मती विद्या का नित्य पाठ करता है उसको नेत्ररोग नहीं होते हैं, उसके कुल में कोई अन्धा नहीं होता है। आठ ब्राह्मणों को इस विद्या का दान करने पर यह विद्या सिद्ध हो जाती है।

चाक्षुषोपनिषद् की पठन-विधिः

श्रीमत् चाक्षुषीपनिषद् यह सभी प्रकार के नेत्ररोगों पर भगवान सूर्यदेव की रामबाण उपासना है। इस अनुभूत मंत्र से सभी नेत्ररोग आश्चर्यजनक रीति से अत्यंत शीघ्रता से ठीक होते हैं। सैंकड़ों साधकों ने इसका प्रत्यक्ष अनुभव किया है।

सभी नेत्र रोगियों के लिए चाक्षुषोपनिषद् प्राचीन ऋषि मुनियों का अमूल्य उपहार है। इस गुप्त धन का स्वतंत्र रूप से उपयोग करके अपना कल्याण करें।

शुभ तिथि के शुभ नक्षत्रवाले रविवार को इस उपनिषद् का पठन करना प्रारंभ करें। पुष्य नक्षत्र सहित रविवार हो तो वह रविवार कामनापूर्ति हेतु पठन करने के लिए सर्वोत्तम समझें। प्रत्येक दिन चाक्षुषोपनिषद् का कम से कम बारह बार पाठ करें। बारह रविवार (लगभग तीन महीने) पूर्ण होने तक यह पाठ करना होता है। रविवार के दिन भोजन में नमक नहीं लेना चाहिए।

प्रातःकाल उठें। स्नान आदि करके शुद्ध होवें। आँखें बन्द करके सूर्यदेव के सामने खड़े होकर भावना करें कि 'मेरे सभी प्रकार के नेत्ररोग भी सूर्यदेव की कृपा से ठीक हो रहे हैं।' लाल चन्दनमिश्रित जल ताँबे के पात्र में भरकर सूर्यदेव को अर्घ्य दें। संभव हो तो षोडशोपचार विधि से पूजा करें। श्रद्धा-भक्तियुक्त अन्तःकरण से नमस्कार करके 'चाक्षुषोपनिषद्' का पठन प्रारंभ करें।

इस उपनिषद का शीघ्र गति से लाभ लेना हो तो निम्न वर्णित विधि अनुसार पठन करें-
नेत्रपीड़ित श्रद्धालु साधकों को प्रातःकाल जल्दी उठना चाहिए। स्नानादि से निवृत्त होकर पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठें। अनार की डाल की लेखनी व हल्दी के घोल से काँसे के बर्तन में नीचे वर्णित बत्तीसा यंत्र लिखें-

8 15 2 7
6 3 12 11
14 9 8 1
4 5 10 13
मम चक्षुरोगान् शमय शमय।

बत्तीसा यंत्र लिखे हुए इस काँसे के बर्तन को ताम्बे के चौड़े मुँहवाले बर्तन में रखें। उसको चारों ओर घी के चार दीपक जलावें और गंध पुष्प आदि से इस यंत्र की मनोभाव से पूजा करें। पश्चात् हल्दी की माला से 'ॐ ह्रीं हंसः' इस बीजमंत्र की छः माला जपें। पश्चात् 'चाक्षुषोपनिषद्' का बारह बार पाठ करें। अधिक बार पढ़ें तो अति उत्तम। 'उपनिषद्' का पाठ होने के उपरान्त 'ॐ ह्रीं हंसः' इस बीजमंत्र की पाँच माला फिर से जपें। इसके पश्चात सूर्य को श्रद्धापूर्वक अर्घ्य देकर साष्टांग नमस्कार करें। 'सूर्यदेव की कृपा से मेरे नेत्ररोग शीघ्रातिशीघ्र नष्ट होंगे – ऐसा विश्वास होना चाहिए।
इस पद्धति से 'चाक्षुषोपनिषद्' का पाठ करने पर इसका आश्चर्यजनक, अलौकिक प्रभाव तत्काल दिखता है।