Thursday, March 13, 2014

यक्ष के प्रश्न, युधिष्ठिर के उत्तर-

संकलन: चतर सिंह 'लुप्त' पारसौली 


वनवास के समय सरोवर के पास यक्ष ने पांडवों से सात सवाल पूछे थे। इनका सही जवाब न देने पर उनमें से चार भाई पत्थर के बन गए थे। अंत में युधिष्ठिर ने उनके सही उत्तर देकर अपने भाइयों का जीवन वापस पाया। युधिष्ठिर और यक्ष के बीच हुए सवाल-जवाब निम्नलिखित थे: 

यक्ष का पहला प्रश्न: वह कौन है जो सोया हुआ होने पर भी आँखें नहीं मूँदता, कौन जन्म लेकर भी चलने का प्रयास नहीं करता, किसके भीतर हृदय नहीं होता और वेग से कौन बढ़ता है? 

युधिष्ठिर का उत्तर: मछली सोने पर पलक नहीं मूँदती, अंडा जन्म लेने पर भी चलने की चेष्टा नहीं करता, पत्थर में हृदय नहीं होता और नदी वेग से बढ़ती है। 

दूसरा प्रश्न: पृथ्वी से भी ज्यादा धारण करने वाला, आकाश से भी ऊँचा और वायु से ज्यादा गतिमान कौन है? 

उत्तर: माता, पृथ्वी से भी ज्यादा धारण करने वाली, पिता आकाश से भी ऊँचा और मन, वायु से अधिक गतिमान होता है। 

तीसरा प्रश्न: घर में, विदेश में, रोग के समय और मृत्यु समय कौन-कौन मित्र होते हैं? 

उत्तर: पत्नी घर में, साथ के यात्री विदेश में, वैद्य रोग में तथा सत्कर्म मृत्यु के समय मनुष्य के सच्चे मित्र होते हैं। 

चौथा प्रश्न: मानव का सबसे बड़ा शत्रु कौन है, कभी न खत्म होने वाली व्याधि क्या है तथा साधु-असाधु कौन होते हैं? 

उत्तर: क्रोध मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है, लोभ अनन्त व्याधि है, परोपकारी साधु तथा निर्दयी पुरुष ही असाधु है। 

पांचवाँ प्रश्न: श्रेष्ठ धर्म क्या? किसको बस में करने से शोक नहीं होता? 

उत्तर: दया सर्वश्रेष्ठ धर्म है और मन को बस में करने से शोक नहीं होता। 

छठा प्रश्न: धर्म, यश, स्वर्ग एवं सुख कैसे प्राप्त होता है? 

उत्तर: दक्षता से धर्म, दान से यश का, सत्य से स्वर्ग तथा शील से ही सुख की प्राप्ति होती है। 

अंतिम प्रश्न: देवत्व क्या है? सत् पुरुषों का धर्म क्या? इनमें मानुष भाव क्या है? 

उत्तर: वेदों का स्वाध्याय ही देवत्व है, तप ही सत् पुरुषों का धर्म है और मृत्यु मानुषी भाव है। 

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होली के रंग : हर रंग कुछ कहता है



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होली के रंग : हर रंग कुछ कहता है...-----
होली विशेष
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होली आ गई है। धरती से
सुनहरी आभा आ रही है। आकाश में
नीले, लाल बादल अठखेलियां कर रहे हैं, सूरज के साथ
लुका-छिपी खेल रहे हैं। पेड़ों पर
नन्हीं कोंपले आ रही हैं और
पीले-लाल फूल अपनी खुशबू बिखेर रहे
हैं। हर तरफ इंद्रधनुषी रंगों की छटा है
और रंगों के इस कोलाज को देखकर मन मोहक हो जाता है।
रंग का पर्याय ऊर्जा से है, उत्साह से है और उमंग से है।
रंगो का त्योहार होली का ख्याल आते
ही मस्ती सूझने लगती है।
होली आती भी है, नए जोश
और जज्बे का संदेश लेकर। इस संदेश में अलग-अलग रंग
आपको भरपूर मजा लेकर खुलकर जीने का आमंत्रण देते
हैं और बताते हैं कि उनकी तरह
ही सबमें एक विशेषता है।
लाल :
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होली के मौके पर सबसे ज्यादा चाव से जिस रंग
का प्रयोग किया जाता है, वह है लाल रंग। लाल रंग उल्लास और
शुद्धता का प्रतीक है। लाल रंग का प्रयोग हर शुभ
अवसर पर किया जाता है। दरअसल लाल रंग अग्नि का द्योतक है
और ऊर्जा, गर्मी और जोश का प्रतिनिधित्व करता है,
इस लिहाज से होली के दौरान होलिका दहन, मौसम में
गर्मी का आगमन, त्योहार मनाने में जोश का संचार
तो होता ही है, साथ ही त्योहार के साथ
हर वर्ग के लोगों में ऊर्जा का प्रवाह होता है, जो उन्हें पूरे वर्ष
काम करने के लिए उत्साहित करता है।
पीला :
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पीला रंग पवित्रता का प्रतीक है।
होली के दौरान वातावरण में पीले रंग
की अधिकता होती है। यह रंग सुनहले
रंग के समीप होता है। मिट्टी का रंग
भी पीला होता है और इस मौसम में खिलने
वाले फूल भी अमूमन पीले होते हैं। यह
रंग समृद्धि और यश को इंगित करता है।
हरा :
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हरा रंग जीवन का द्योतक है। इसके साथ
ही यह प्रकृति का सबसे प्यारा रंग है।
होली के दौरान वातावरण में चहुंओर हरे रंग
की आभा आने वाली होती है,
जो नए जीवन के शुरुआत का संकेत देती है
और इस बात की प्रेरणा देती है
कि बीती ताहि बिसार दे, आगे
की सुध लेहि।
यानी होली का हरा रंग हर व्यक्ति को एक
बार फिर अपने में नए जीवन के संचार
की प्रेरणा देता है।
नीला :
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नीला रंग शांति, गंभीर और
स्थिरता का संकेतक है। हालांकि होली में
नीला रंग कम प्रयोग में आता है। लेकिन
कभी-कभी नीले गुलाल और
अबीर देखे जाते हैं। जल और वायु का रंग
नीला माना गया है, इस लिहाज से यह रंग प्राण और
प्रकृति से संबंधित है। नीला रंग पूर्णता को इंगित
करता है।
काला :
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कुछ लोगों को होली में काला रंग लगाने में सबसे
ज्यादा मजा आता है। काला रंग अंतरिक्ष का प्रतीक है।
यह रंग प्रभुत्व का भी प्रतीक है
क्योंकि सभी रंग अपना अस्तित्व खोकर इसमें समाहित
हो जाते हैं।
सफेद :
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सफेद रंग बच्चों का पसंदीदा रंग है। यह
सभी रंगों का जनक माना जाता है। प्रकृति के
सभी रंगों को एक समान मिलने पर सफेद रंग बनता है।
इसलिए इसमें सभी रंगों के गुण मौजूद होते हैं।

होलिका दहन लाभदायक अद्‌भूत प्रयोगों द्वारा संकटों से मुक्ति


दोस्तों होली पर मेरे आलेख जरूर देखे और लाभ ले.

HAPPY HOLI TO ALL OF YOU

http://shreepad-gems.blogspot.in/2011/02/holi-colorful-auspicious-festival.html

http://shreepad-gems.blogspot.in/2012/03/blog-post_6618.html


संकलन -आशुतोष जोशी

होली का त्यौहार  हमारी पौराणिक कथाओं में श्रद्धा विश्वास और भक्ति का त्यौहार माना गया है तथा साथ ही होली के दिन किये जाने वाले अद्‌भूत प्रयोगों से मानव अपने जीवन में आने वाले संकटों से मुक्ति भी पा सकता है। होली हर वर्ष फाल्गुन शुक्ल पूर्णिमा को मनायी जाती है तथा भद्रारहित समय में होली का दहन किया जाता हैं।

होली की रात होलिका दहन मे से जलती हुई लकडी घर पर लाकर नवग्रहों की लकडियों एवं गाय के गोबर से बने उपलों की होली प्रज्जवलित करनी चाहिए। उसमें घर के प्रत्येक सदस्य को देसी घी में भिगोई हुई दो लौंग, एक बताशा, एक पान का पत्ता चढाना चाहिए तथा सभी को उस होलिका की ग्यारह परिक्रमा करते हुए सूखे नारियल की होली में आहुति देनी चाहिए।

शास्त्रों के अनुसार आध्यात्मिक महत्व को देखते हुये होली की पूजा तथा दहन के पश्चात बची हुई राख के द्वारा विभिन्न प्रयोग लाभदायक हो सकते हैं।


१. होली की पूजा मुखयतः भगवान विष्णु (नरसिंह अवतार) को ध्यान में रखकर की जाती है।
२. होली दहन के समय  ७ गोमती चक्र  लेकर भगवान से प्रार्थना करें कि आपके जीवन में कोई शत्रु बाधा न डालें। प्रार्थना के पश्चात पूर्ण श्रद्धा व विश्वास के साथ गोमती चक्र दहन में डाल दें।
३. होली दहन के दूसरे दिन होली की राख को घर लाकर उसमें थोडी सी राई व नमक मिलाकर रख लें। इस प्रयोग से भूतप्रेत या नजर दोष से मुक्ति मिलती है।
४. होली के दिन से शुरु होकर बजरंग बाण का ४० दिन तक नियमित पाठ करनें से हर मनोकामना पूर्ण होगी।
५. यदि उधार दिया हुआ पैसा वापस नहीं आ रहा हैं तो होली दहन के दूसरे दिन बचे हुये कोयले से वहीं धरती पर उस व्यक्ति का नाम लिखे तथा उस नाम के उपर हरा रंग इस तरह डाल दें कि पूरा नाम लुप्त हो जाये। इस प्रयोग से वह व्यक्ति शीघ्र धन वापस कर देगा।
६. यदि व्यापार या नौकरी में उन्नति न हो रही हो, तो २१ गोमती चक्र लेकर होली दहन के दिन रात्रि में शिवलिंग पर चढा दें।
७. नवग्रह बाधा के दोष को दूर करने के लिए होली की राख से शिवलिंग की पूजा करें तथा राख मिश्रित जल से स्नान करें।

८. होली वाले दिन किसी गरीब को भोजन अवश्य करायें।
९. होली की रात्रि को सरसों के तेल का चौमुखी दीपक जलाकर पूजा करें व भगवान से सुख - समृद्धि की प्रार्थना करें। इस प्रयोग से बाधा निवारण होता है।
१०. यदि बुरा समय चल रहा हो, तो होली के दिन पेंडुलम वाली नई घडी पूर्वी या उत्तरी दीवार पर लगाए। परिणाम स्वयं देखे।

माला में जप के लिए 108 ही मोती क्यों होते हैं?

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 क्या आप जानते हैं माला में 108 ही मोती क्यों होते हैं इसके पीछे कई धार्मिक और वैज्ञानिक कारण मौजूद हैं।

यह माला रुद्राक्ष, तुलसी, स्फटिक, मोती या नगों से बनी होती है। यह माला बहुत चमत्कारी प्रभाव रखती है। किसी मंत्र का जप इस माला के साथ करने पर दुर्लभ कार्य भी सिद्ध हो जाते हैं।
यहां जानिए मंत्र जप की माला में 108 मोती होने के पीछे क्या रहस्य है...

भगवान की पूजा के लिए मंत्र जप सर्वश्रेष्ठ उपाय है और पुराने समय से बड़े-बड़े तपस्वी, साधु-संत इस उपाय को अपनाते हैं। जप के लिए माला की आवश्यकता होती है और इसके बिना मंत्र जप का फल प्राप्त नहीं हो पाता है।
रुद्राक्ष से बनी माला मंत्र जप के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी गई है। यह साक्षात् महादेव का प्रतीक ही है। रुद्राक्ष में सूक्ष्म कीटाणुओं का नाश करने की शक्ति भी होती है। इसके साथ ही रुद्राक्ष वातावरण में मौजूद सकारात्मक ऊर्जा को ग्रहण करके साधक के शरीर में पहुंचा देता है।

शास्त्रों में लिखा है कि-
बिना दमैश्चयकृत्यं सच्चदानं विनोदकम्।
असंख्यता तु यजप्तं तत्सर्व निष्फलं भवेत्।।
इस श्लोक का अर्थ है कि भगवान की पूजा के लिए कुश का आसन बहुत जरूरी है इसके बाद दान-पुण्य जरूरी है। इनके साथ ही माला के बिना संख्याहीन किए गए जप का भी पूर्ण फल प्राप्त नहीं हो पाता है। अत: जब भी मंत्र जप करें माला का उपयोग अवश्य करना चाहिए।
जो भी व्यक्ति माला की मदद से मंत्र जप करता है उसकी मनोकामनएं बहुत जल्द पूर्ण होती है। माला से किए गए जप अक्षय पुण्य प्रदान करते हैं। मंत्र जप निर्धारित संख्या के आधार पर किए जाए तो श्रेष्ठ रहता है। इसीलिए माला का उपयोग किया जाता है।
आगे जानिए कुछ अलग-अलग कारण जिनके आधार पर माला में 108 मोती रखे जाते हैं...

माला में 108 मोती रहते हैं। इस संबंध में शास्त्रों में दिया गया है कि...
षट्शतानि दिवारात्रौ सहस्राण्येकं विशांति।
एतत् संख्यान्तितं मंत्रं जीवो जपति सर्वदा।।
इस श्लोक के अनुसार एक सामान्य पूर्ण रूप से स्वस्थ व्यक्ति दिनभर में जितनी बार सांस लेता है उसी से माला के मोतियों की संख्या 108 का संबंध है। सामान्यत: 24 घंटे में एक व्यक्ति 21600 बार सांस लेता है। दिन के 24 घंटों में से 12 घंटे दैनिक कार्यों में व्यतीत हो जाते हैं और शेष 12 घंटों में व्यक्ति सांस लेता है 10800 बार। इसी समय में देवी-देवताओं का ध्यान करना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार व्यक्ति को हर सांस पर यानी पूजन के लिए निर्धारित समय 12 घंटे में 10800 बार ईश्वर का ध्यान करना चाहिए लेकिन यह संभव नहीं हो पाता है।
इसीलिए 10800 बार सांस लेने की संख्या से अंतिम दो शून्य हटाकर जप के लिए 108 संख्या निर्धारित की गई है। इसी संख्या के आधार पर जप की माला में 108 मोती होते हैं।

एक अन्य मान्यता के अनुसार माला के 108 मोती और सूर्य की कलाओं का संबंध है। एक वर्ष में सूर्य 216000 कलाएं बदलता है। सूर्य वर्ष में दो बार अपनी स्थिति भी बदलता हैए छह माह उत्तरायण रहता है और छह माह दक्षिणायन। अत: सूर्य छह माह की एक स्थिति में 108000 बार कलाएं बदलता है।
इसी संख्या 108000 से अंतिम तीन शून्य हटाकर माला के 108 मोती निर्धारित किए गए हैं। माला का एक-एक मोती सूर्य की एक-एक कला का प्रतीक है। सूर्य ही व्यक्ति को तेजस्वी बनाता है, समाज में मान-सम्मान दिलवाता है। सूर्य ही एकमात्र साक्षात दिखने वाले देवता हैं।

ज्योतिष के अनुसार ब्रह्मांड को 12 भागों में विभाजित किया गया है। इन 12 भागों के नाम मेष, वृष, मिथुन, कर्क, सिंह, कन्या, तुला, वृश्चिक, धनु, मकर, कुंभ और मीन हैं। इन 12 राशियों में नौ ग्रह सूर्य, चंद्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहु और केतु विचरण करते हैं। अत: ग्रहों की संख्या 9 का गुणा किया जाए राशियों की संख्या 12 में तो संख्या 108 प्राप्त हो जाती है।
माला के मोतियों की संख्या 108 संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतिनिधित्व करती है।

एक अन्य मान्यता के अनुसार ऋषियों ने में माला में 108 मोती रखने के पीछे ज्योतिषी कारण बताया है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार कुल 27 नक्षत्र बताए गए हैं। हर नक्षत्र के 2 चरण होते हैं और 27 नक्षत्रों के कुल चरण 108 ही होते हैं। माला का एक-एक मोती नक्षत्र के एक-एक चरण का प्रतिनिधित्व करता है।


एक अन्य मान्यता के अनुसार हमारे शरीर में कुल 7200 नाडिया होती है और इसमे से 108 हमारे हृदय में होती है. जाप करते समय हृदय के इन 108 में स्वतः कम्पन्न होने लगता है और हमारा ब्राम्हांड से संपर्क बनाने लगता है.  

माला के मोतियों से मालूम हो जाता है कि मंत्र जप की कितनी संख्या हो गई है। जप की माला में सबसे ऊपर एक बड़ा मोती होता है जो कि सुमेरू कहलाता है। सुमेरू से ही जप की संख्या प्रारंभ होती है और यहीं पर खत्म भी। जब जप का एक चक्र पूर्ण होकर सुमेरू मोती तक पहुंच जाता है तब माला को पलटा लिया जाता है। सुमेरू को लांघना नहीं चाहिए। 
जब भी मंत्र जप पूर्ण करें तो सुमेरू को माथे पर लगाकर नमन करना चाहिए। इससे जप का पूर्ण फल प्राप्त होता है।


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मंदिर जाने के चमत्कारी लाभ

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GOOD ARTICLE BY- MR. BINIT KUMAR GUPTA 




मंदिर और उसमें स्थापित भगवान की मूर्ति हमारे लिए आस्था के केंद्र हैं। मंदिर हमारे धर्म का प्रतिनिधित्व करते हैं और हमारे भीतर आस्था जगाते हैं। किसी भी मंदिर को देखते ही हम श्रद्धा के साथ सिर झुकाकर भगवान के प्रति नतमस्तक हो जाते हैं। आमतौर पर हम मंदिर भगवान के दर्शन और इच्छाओं की पूर्ति के लिए जाते हैं लेकिन मंदिर जाने के और कई लाभ भी हैं। यहां जानिए मंदिर जाने से हमें क्या-क्या चमत्कारी लाभ प्राप्त होते हैं...

मंदिर वह स्थान है जहां जाकर मन को शांति का अनुभव होता है। वहां हम अपने भीतर नई शक्ति का अहसास करते हैं। हमारा मन-मस्तिष्क प्रफुल्लित हो जाता है। शरीर उत्साह और उमंग से भर जाता है। मंत्रों के स्वर, घंटे-घडिय़ाल, शंख और नगाड़े की ध्वनियां सुनना मन को अच्छा लगता है। इन सभी के पीछे है, ऐसे वैज्ञानिक कारण जो हमें प्रभावित करते हैं।

मंदिरों का निर्माण पूर्ण वैज्ञानिक विधि है। मंदिर का वास्तुशिल्प ऐसा बनाया जाता है, जिससे वहां शांति और दिव्यता उत्पन्न होती है। मंदिर की वह छत जिसके नीचे मूर्ति की स्थापना की जाती है। ध्वनि सिद्धांत को ध्यान में रखकर बनाई जाती है, जिसे गुंबद कहा जाता है। गुंबद के शिखर के केंद्र बिंदु के ठीक नीचे मूर्ति स्थापित होती है। गुंबद तथा मूर्ति का मध्य केंद्र एक रखा जाता है। गुंबद के कारण मंदिर में किए जाने वाले मंत्रोच्चारण के स्वर और अन्य ध्वनियां गूंजती है तथा वहां उपस्थित व्यक्ति को प्रभावित करती है। गुंबद और मूर्ति का मध्य केंद्र एक ही होने से मूर्ति में निरंतर ऊर्जा प्रवाहित होती है। जब हम उस मूर्ति को स्पर्श करते हैं, उसके आगे सिर टिकाते हैं, तो हमारे अंदर भी ऊर्जा प्रवाहित हो जाती है। इस ऊर्जा से हमारे अंदर शक्ति, उत्साह, प्रफुल्लता का संचार होता है।

मंदिर की पवित्रता हमें प्रभावित करती है। हमें अपने अंदर और बाहर इसी तरह की शुद्धता रखने की प्रेरणा मिलती है। मंदिर में बजने वाले शंख और घंटों की ध्वनियां वहां के वातावरण में कीटाणुओं को नष्ट करते रहती हैं। घंटा बजाकर मंदिर के गर्भगृह में प्रवेश करना हमें शिष्टाचार सिखाता है कि जब हम किसी के घर में प्रवेश करें तो पूर्व में सूचना दें। घंटे का स्वर देवमूर्ति को जाग्रत करता है, ताकि आपकी प्रार्थना सुनी जा सके। शंख और घंटे-घडिय़ाल की ध्वनि दूर-दूर तक सुनाई देती है, जिससे आसपास से आने-जाने वाले अंजान व्यक्ति को पता चल जाता है कि आसपास कहीं मंदिर है।

मंदिर में स्थापित देव प्रतिमा में हमारी आस्था और विश्वास होता है। मूर्ति के सामने बैठने से हम एकाग्र होते हैं। यही एकाग्रता धीरे-धीरे हमें भगवान के साथ एकाकार करती है, तब हम अपने अंदर ईश्वर की उपस्थिति को महसूस करने लगते हैं। एकाग्र होकर चिंतन-मनन से हमें अपनी समस्याओं का समाधान जल्दी मिल जाता है।

मंदिर में स्थापित देव प्रतिमाओं के सामने नतमस्तक होने की प्रक्रिया से हम अनजाने ही योग और व्यायाम की सामान्य विधियां पूरी कर लेते हैं। इससे हमारे मानसिक तनाव, शारीरिक थकावट, आलस्य दूर हो जाते हैं। मंदिर में परिक्रमा भी की जाती है, जिसमें पैदल चलना होता है। मंदिर परिसर में हम नंगे पैर पैदल ही घूमते हैं। यह भी एक व्यायाम है। नए शोध में साबित हुआ है नंगे पैर मंदिर जाने से पगतलों में एक्यूपे्रशर होता है। इससे पगतलों में शरीर के कई भीतरी संवेदनशील बिंदुओं पर अनुकूल दबाव पड़ता है जो स्वास्थ्य के लिए लाभदायक है।

इस तरह हम देखते हैं कि मंदिर जाने से हमे बहुत लाभ है। मंदिर को वैज्ञानिक शाला के रूप में विकसित करने के पीछे हमारे पूर्वज ऋषि-मुनियों का यही लक्ष्य था कि सुबह जब हम अपने काम पर जाएं उससे पहले मंदिर से ऊर्जा लेकर जाएं, ताकि अपने कर्तव्यों का पालन सफलता के साथ कर सकें और जब शाम को थककर वापस आएं तो नई ऊर्जा प्राप्त करें। इसलिए दिन में कम से कम एक या दो बार मंदिर अवश्य जाना चाहिए। इससे हमारी आध्यात्मिक उन्नति तो होती है, साथ ही हमें निरंतर ऊर्जा मिलती है और शरीर स्वस्थ रहता है।


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