Friday, February 13, 2015

महाशिवरात्रि -17 फरवरी मंगलवार-शिव की विधिवत आराधना

दैनिक भास्कर से साभार

http://www.bhaskar.com/news/c-3-1071200-NOR.html

श्री मदन गुप्ता सपाटू , ज्योतिषविद् , चंडीगढ़ ,मो. 98156-19620

महाशिवरात्रि का पर्व 17 फरवरी मंगलवार को है। इस साल 18 फरवरी को चतुर्दर्शी तिथि का क्षय हो रहा है। इस तिथि के स्वामी भगवान शिव माने गए हैं। अर्थात भगवान शिव की तिथि ही चतुर्दर्शी मानी जाती है। यह तिथि बुधवार को प्रात: 9 बजकर 02 मिनट पर टूट जाएगी। अत: व्रत 17 तारीख को ही रखना तर्कसंगत होगा। एक मतानुसार 18 तारीख को व्रत, पूजन आदि किया जा सकता है। इस दिन बुध श्रवण नक्षत्र में तथा शुक्र उत्तराभाद्रपद नक्षत्र में प्रवेश करेंगे।

इस दिन काले तिलों सहित स्नान करके व व्रत रख के रात्रि में भगवान शिव की विधिवत आराधना करना कल्याणकारी माना जाता है। दूसरे दिन अर्थात अमावस के दिन मिष्ठान्न सहित ब्राह्मणों तथा शारीरिक रुप से असमर्थ लोगों को भोजन देने के बाद ही स्वयं भोजन करना चाहिए। यह व्रत महा कल्याणकारी होता है और अश्वमेध यज्ञ तुल्य फल प्राप्त होता है।

इस दिन किए गए अनुष्ठानों , पूजा व व्रत का विशेष लाभ मिलता है। इस दिन चंद्रमा क्षीण होगा और सृष्टि को उर्जा प्रदान करने में अक्षम होगा। इसलिए अलौकिक शक्तियां प्राप्त करने का यह सर्वाधिक उपयुक्त समय होता है जब ऋद्धि- सिद्धि प्राप्त होती है। इस रात भगवान शिव का विवाह हुआ था।


भारतीय जीवन में ऐसे लोक पर्व वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्य में भले ही धूमिल हो रहे हों परंतु इनका वैज्ञानिक पक्ष आस्था के आगे उजागर हो नहीं पाता। भारतीय आस्था में चाहे सूर्य ग्रहण हो या कुंभ का पर्व, दोनों ही समान महत्व रखते हैं। शिवरात्रि एक ऐसा महत्वपूर्ण पर्व है जो देश के हर कोने में मनाया जाता है।

मान्यता है कि सृष्टि के आरंभ में इसी दिन मध्य रात्रि भगवान शंकर का ब्रप्रा से रुद्र के रुप में अवतरण हुआ था। प्रलय की वेला में इसी दिन प्रदोष के समय शिव तांडव करते हुए ब्राöम को तीसरे नेत्र की ज्वाला से समाप्त कर देते हैं। इसी लिए, इसे महाशिवरात्रि अथवा कालरात्रि कहा जाता है। काल के काल और देवों के देव महादेव के इस व्रत का विशेष महत्व है।
एक मतानुसार इस दिन को शिव विवाह के रुप में भी मनाया जाता है। ईषान संहिता के अनुसार फाल्गुन कृष्ण चतुर्दर्शी को अद्र्ध रात्रि के समय करोड़ों सूर्य के तेज के समान ज्योर्तिलिंगो का प्रादुर्भाव हुआ था।
स्कंद पुराण के अनुसार - चाहे सागर सूख जाए, हिमालय टूट जाए, पर्वत विचलित हो जाएं, परंतु शिव-व्रत कभी निष्फल नहीं जाता। भगवान राम भी यह व्रत रख चुके हैं।
व्रत की परंपरा

प्रात: काल स्नान से निवृत होकर एक वेदी पर, क्लश की स्थापना कर गौरी शंकर की मूर्ति या चित्र रखें । क्लश को जल से भर कर रोली, मौली , अक्षत, पान सुपारी ,लौंग, इलायची, चंदन, दूध,दही, घी, शहद, कमलगट्टा,, धतूरा, विल्व पत्र, कनेर आदि अर्पित करें और शिव की आरती पढ़ें । रात्रि जागरण में शिव की चार आरती का विधान आवश्यक माना गया है। इस अवसर पर शिव पुराण का पाठ भी कल्याणकारी कहा जाता है।
चेतावनी
भगवान शंकर पर अर्पित किया गया नौ वेद्य , खाना निषिद्ध माना गया है। त्रयोदशी के दिन एक समय आहार ग्रहण कर चतुर्दर्शी के दिन व्रत करना चाहिए।

विशेष:
बेल पत्र भगवान शिव को अत्यंत प्रिय हैं। इसका चिकना भाग शिवलिंग से स्पर्श करना चाहिए। नील कमल भगवान शिव का प्रिय पुष्प माना गया है। अन्य फूलों मे कनेर,आक, धतूरा, अपराजिता,,चमेली, नाग केसर, गूलर आदि के फूल चढाएं जा सकते है। जो पुष्प वर्जित हैं वे हैं- कदंब,केवड़ा

विभिन्न सामग्री से बने शिवलिंग का अलग महत्व
फूलों से बने शिवलिंग पूजन से भू- संपत्ति प्राप्त होती है। अनाज से निर्मित शिवलिंग स्वास्थ्य एवं संतान प्रदायक है। गुड़ व अन्न मिश्रित शिवलिंग पूजन से कृषि संबंधित समस्याएं दूर रहती हैं। चांदी से निर्मित शिवलिंग धन- धान्य बढ़ाता है। स्फटिक के वाले से अभीष्ट फल प्राप्ति होती है। पारद शिवलिंग अत्यंत महत्वपूर्ण है जो सर्व कामप्रद, मोक्षप्रद, शिवस्वरूप बनाने वाला, समस्त पापों का नाश करने वाला माना गया है।

शिवरात्रि पर करें कालसर्प या राहू योग का निवारण
चांदी के नाग-नागिन का जोड़ा , हलवा,सरसों का तेल, काला सफेद कंबल शिवलिंग पर अर्पित करें । महामृत्युंजय मंत्र की कम से कम ,एक माला -.108 मंत्र अवश्य पढ़ें।

मुख्य मंत्र
ओम् नम: शिवाय
ओम् नमो वासुदेवाय नम
ओम् राहु वे नम:
महामृत्युंजय मंत्र- 
ओम् त्रयम्बकं यजामहे सुगंधि पुष्टिवर्धन!
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय मामृतात्!!

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Tuesday, February 10, 2015

सुनामी वाले दिन था चांद का बल अधिक

आलेख दैनिक भास्कर से साभार

आकाश में स्थित सभी नौ ग्रहों में आकर्षण शक्ति है। यही आकर्षण शक्ति चंद्रमा में भी पाई जाती है। जिसके आधार पर ही चांद पृथ्वी के चारों ओर चक्कर लगाता है। चांद अपनी आकर्षण क्षमता के आधार पर ही पृथ्वी की चीजों को आकर्षित करता है। चंद्र और पानी दोनों सौम्य होने के कारण भी एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। यही कारण है कि चंद्रमा समुद्र के पानी को अपनी ओर खींचता हैं। लेकिन पृथ्वी की चीजों को अपनी ओर आकर्षित करने की शक्ति चांद के आकर्षण से कहीं गुना अधिक है। इसलिए समुद्र के पानी को पृथ्वी अपनी ओर थामे रहती है। 

पूर्णिमा तिथि को चंद्रमा का बल अधिक बढ़ जाता है। जिसके कारण ही ये समुद्र के पानी को तेजी से अपनी ओर खींचता हैं। जिसकी वजह से समुद्र की लहरें तेजी से ऊपर की ओर उठती है और ज्वारा भाटा निर्मित करती हैं।
समुद्र से उत्पन्न हुई ये लहरें कभी-कभी इतनी विशाल और शक्तिशाली हो जाती हैं। कि सामान्य जनजीवन को भी अपनी चपेट में ले लेती हैं। समुद्र की सीमा का लंघन करती हुई ये लहरें धरती पर अपना प्रभाव छोड़ने लगती हंै। ऐसी ही उत्पन्न होती लहरों ने 26 दिसंबर 2004 को भारत में अपने पैर पसारे थे। समुद्र की सीमा को तोड़ती हुई इन लहरों ने जंगलांेसड़कों की सीमा को पार कर लोगों के घरों में प्रवेश पा लिया था। 





सुनामी वाले दिन भी था चांद का बल अधिक
भारत में सुनामी ने 26 दिसंबर 2004 को कदम रखे थे। उस दिन पूर्णिमा तिथि होने के कारण चांद अपने पूरे आकार में था। चांद का आकर्षण बल भी उस दिन अन्य दिनों के मुकाबले अधिक था। पृथ्वी के दक्षिणायन रहने से चांद का बल अधिक प्रभावशाली था। समुद्र की लहरों का अधिक ऊंचाई तक जाना चांद के अधिक बली होने के कारण हो सकता है। 

सुनामी सिसमोग्राफ पर दर्ज दुनिया का तीसरा बड़ा टाइड्स है। इतिहास में दर्ज सबसे घातक प्राकृतिक आपदा है जिसके कारण दुनिया के चौदह देशों के लगभग 2,30,000 लोगों की मृत्यु हुई थी। समुद्र के इस तूफान की तरंगें 100 फुट ऊंचाई तक गई थीं।



पूर्णिमा पर क्यों नहीं करना चाहिए किसी से बहस
पूर्णिमा को चांद के बढ़ने से जहां ब्रह्मांड में ज्वारभाटा जैसी खगोलीय घटना अधिक तेजी से होती है। वहीं वातावरण में बहने वाली तरंगें उस दिन मनुष्य के व्यवहार को भी उग्र कर सकती हैं। मनुष्य के मन में भी कई तरह की उथल - पुथल चलती रहती है। चंद्रमा मन का स्वामी होता है। चांद का बल पूर्णिमा को बढ़ जाने के कारण ही मन की उथल - पुथल बढ़ सकती है। यदि व्यक्ति किसी तनाव में है तो यह तनाव उस दिन और ज्यादा बढ़ सकता है।

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