Sunday, September 4, 2016

कल (5 सितंबर, सोमवार) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है

Today's Blog - हमारे BLOG-ARTICLES में अधिकतर ज्ञानवर्धक जानकारिया दी जाती है, तथा आलेख जहां से भी लिए जाते है, उन स्थानों व लेखकों का नाम-आदि भी दिया जाता है. क्योकि इस के द्वारा हम अपने पाठकों के लाभार्थ ही आलेख POST करते है. यदि किसी भी लेखक या संस्था को कोई शिकायत हो तो कृपया हमे बता दे हम POST हटा लेंगे.

गणेश चतुर्थी के इस शुभ अवसर पर मै आज आपको गणेश जी से संबंधित कुछ आध्यात्मिक विवरण नीचे देरहा हूँ. यह विवरण दैनिक भास्कर से साभार लिया जां रहा है.  सभी चित्र भी दैनिक भास्कर से साभार लिए गए है. दैनिक भास्कर द्वारा पाठकों को यह उपयोगी जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!! 

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चार संयोगों के साथ आज (5 सितंबर, सोमवार) चतुर्थी पर श्रीगणेश सभी के लिए खुशियां लेकर आएं हैं। उज्जैन के ज्योतिषाचार्य पं. अमर डिब्बावाला जी के अनुसार रवि योग, शुक्ल योग, चित्रा नक्षत्र और अगस्त तारे का उदय यह चारों संयोग कई साल बाद चतुर्थी पर होंगे।

रवि योग बाजार से आभूषण, वाहन खरीदी, नवीन प्रतिष्ठान उद्घाटन, शुक्ल योग धर्म-आध्यात्म से जुड़े कार्यों की शुरुआत, चित्रा नक्षत्र में सौंदर्य सामग्री की खरीदारी और चातुर्मास में अगस्त तारे का उदय धन-धान्य में वृद्धि करने वाला रहेगा। चतुर्थी पर सूर्योदय के समय सुबह 06.15 से दोपहर 02.45 बजे तक लगभग सारे संयोग बने रहेंगे, जो सभी राशि वालों के लिए समृद्धिकारक होंगे।

भद्रा काल में भी कर सकेंगे गणेश स्थापना




चतुर्थी पर इस बार भद्रा का साया रहेगा, लेकिन श्रीगणेश विघ्नहर्ता हैं इसलिए मूर्ति स्थापना में भद्रा काल बाधक नहीं होगा। ज्योतिषाचार्य पं श्यामनारायण जी व्यास ने बताया कि गणेशजी का जन्म भाद्र शुक्ल चतुर्थी पर दोपहर में हुआ था इस कारण भद्रा के दौरान भी श्रद्धालु मूर्ति स्थापना कर सकेंगे। दोपहर में 12.15 से 1 बजे तक अभिजीत मुहूर्त में स्थापना कर पूजन करना सर्वश्रेष्ठ रहेगा।

कल (5 सितंबर, सोमवार) भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि है। धर्म ग्रंथों के अनुसार, इसी दिन भगवान श्रीगणेश का प्राकट्य माना जाता है। इस दिन भगवान श्रीगणेश को प्रसन्न करने के लिए व्रत व पूजन किया जाता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, इस दिन कुछ विशेष उपाय किए जाएं तो भगवान श्रीगणेश अपने भक्तों पर प्रसन्न होकर उनकी हर मनोकामना पूरी करते हैं। 


 शास्त्रों में भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने का विधान बताया गया है। गणेश चतुर्थी पर भगवान श्रीगणेश का अभिषेक करने से विशेष लाभ होता है। इस दिन आप शुद्ध पानी से श्रीगणेश का अभिषेक करें। साथ में गणपति अथर्व शीर्ष का पाठ भी करें। बाद में मावे के लड्डुओं का भोग लगाकर भक्तों में बांट दें।

सोमवार, 5 सितंबर 2016 से दस दिनों तक गणेशजी की भक्ति का खास समय रहेगा। इन दिनों में गणेशजी की विधिवत पूजा करने से घर-परिवार के दुख दूर हो सकते हैं, पैसों की तंगी से मुक्ति मिल सकती है। 

गणेश चतुर्थी की पूजन विधि


सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद अपनी इच्छा के अनुसार सोने, चांदी, तांबे, पीतल या मिट्टी से बनी भगवान श्रीगणेश की प्रतिमा स्थापित करें (शास्त्रों में मिट्टी से बनी गणेश प्रतिमा की स्थापना को ही श्रेष्ठ माना है)। संकल्प मंत्र के बाद षोडशोपचार पूजन व आरती करें। गणेशजी की मूर्ति पर सिंदूर चढ़ाएं। मंत्र बोलते हुए 21 दूर्वा दल चढ़ाएं। 21 लड्डुओं का भोग लगाएं। इनमें से 5 लड्डू मूर्ति के पास रखें और 5 ब्राह्मण को दान कर दें। शेष लड्डू प्रसाद रूप में बांट दें। ब्राह्मणों को भोजन कराएं और उन्हें दक्षिणा देने के बाद शाम के समय स्वयं भोजन करें। पूजन के समय यह मंत्र बोलें-
ऊं गं गणपतये नम:
दूर्वा दल चढ़ाने का मंत्र
गणेशजी को 21 दूर्वा दल चढ़ाई जाती है। दूर्वा दल चढ़ाते समय नीचे लिखे मंत्रों का जाप करें-

ऊं गणाधिपतयै नम:
ऊं उमापुत्राय नम:
ऊं विघ्ननाशनाय नम:
ऊं विनायकाय नम:
ऊं ईशपुत्राय नम:
ऊं सर्वसिद्धप्रदाय नम:
ऊं एकदन्ताय नम:
ऊं इभवक्त्राय नम:
ऊं मूषकवाहनाय नम:
ऊं कुमारगुरवे नम:

भगवान श्रीगणेश की आरती


जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
एक दन्त दयावंत चार भुजा धारी।
माथे सिंदूर सोहे मूसे की सवारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
अन्धन को आंख देत कोढिऩ को काया।
बांझन को पुत्र देत निर्धन को माया।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
हार चढ़े फुल चढ़े और चढ़े मेवा।
लड्डूवन का भोग लगे संत करे सेवा।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
दीनन की लाज रखो, शंभू पुत्र वारी।
मनोरथ को पूरा करो, जय बलिहारी।।
जय गणेश जय गणेश जय गणेश देवा।
माता जाकि पार्वती पिता महादेवा।।

इस तरह पूजा करने से भगवान श्रीगणेश अति प्रसन्न होते हैं और अपने भक्तों की हर मुराद पूरी करते हैं।










वास्तु शास्त्र में घर के हर हिस्से व कमरे के लिए कुछ विशेष बातें बताई गई हैं। उसी के अंतर्गत पूजा घर के लिए भी कुछ विशेष वास्तु नियम बनाए गए हैं। हिंदू परिवारों में पूजन स्थान या पूजन कक्ष आवश्यक रूप से होता है। घर में पूजन स्थान या पूजा स्थल होने से मन को शांति मिलती है। अगर यह वास्तु के अनुसार हो तो और भी शुभ फल देता है और पूजन कक्ष के माध्यम से किस्मत भी खुल सकती है। घर में पूजन कक्ष या पूजन स्थान बनवाते समय कुछ बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, जो इस प्रकार हैं-

1. पूजा घर रसोई घर के ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में भी बनाया जा सकता है, यदि घर में पर्याप्त स्थान न हो तो। पूजन में मूर्तियां अधिक न रखें। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि भगवान श्रीगणेश, लक्ष्मी और सरस्वती की मूर्तियां खड़ी स्थिति में न हो।

2. पूजा स्थल पूर्वी या उत्तरी ईशान कोण (उत्तर-पूर्व) में होना चाहिए चूंकि ईश्वरीय शक्ति ईशान कोण से प्रवेश कर नैऋत्य कोण (पश्चिम-दक्षिण) से बाहर निकलती है।

3. पूजा करने वाले का मुंह पश्चिम में हो तो अति शुभ रहता है, इसके लिए पूजा स्थल का द्वार पूर्व की ओर होना चाहिए। शौचालय तथा पूजा घर पास-पास नहीं होना चाहिए।

4. पूजा स्थल के नीचे कोई भी अग्नि संबंधी वस्तु जैसे इन्वर्टर या विद्युत मोटर नहीं होना चाहिए। इस स्थान का उपयोग पूजन सामग्री, धार्मिक पुस्तकें, शुभ वस्तुएं रखने में किया जाना चाहिए।

5. पूजा स्थल के समक्ष थोड़ा स्थान खुला होना चाहिए, जहां आसानी से बैठा जा सके। पूजा स्थल के ऊपर यदि टाण्ड न बनाएं और यदि हो भी तो उसे साफ-सुथरी रखें। कोई कपड़ा या गंदी वस्तुएं वहां न रखें।

6. पूजा स्थल का उपयोग ध्यान, संध्या या योग के लिए भी किया जा सकता है। इस स्थान को शांत रखें। धीमी रोशनी वाले बल्ब लगाएं। अंधेरा व सीलन न हो। जब भी आपका मन अशांत हो, यहां आकर आप नई ऊर्जा प्राप्त कर सकते हैं।

7. यदि पूजा स्थल के लिए पर्याप्त स्थान नहीं हो तो किसी भी दीवार के सहारे ढाई-तीन फीट की ऊंचाई पर सादा पत्थर रखकर वहां पूजा स्थल बना लें। हो सके तो इसे सादे पर्दे से ढंक दें।

8. घर में पूजा स्थल होना शुभता का परिचायक है, इससे घर में पॉजीटिव एनर्जी का संचार होता है। घर की पवित्रता भी बनी रहती है। वहीं अगरबत्ती आदि के धुएं से वातावरण सुगंधित रहता है। विषाणु व कीटाणु घर में प्रवेश नहीं करते।

9. पूजा घर में पीले रंग के बल्व का उपयोग करना शुभ होता है तथा शेष कक्ष में दूधिया बल्व का इस्तेमाल करना चाहिए। ऐसा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और व्यापार-व्यवसाय में तरक्की होती है।
10. वास्तु के अनुसार, शाम के समय पूजन स्थान पर इष्ट देव के सामने प्रकाश का उचित प्रबंध होना चाहिए, इसके लिए घी का दीया जलाना अत्यंत उत्तम है। इस समय घर में धन की देवी लक्ष्मी का प्रवेश होता है। यदि इस समय घर में अंधेरा होता है तो लक्ष्मी अपना मार्ग बदल लेती है और बाहर की नकारात्मक ऊर्जा घर में प्रवेश कर जाती है। ऐसी अशुभ ऊर्जा को रोकने तथा घर में लक्ष्मी के वास के लिए गोधूलि बेला के समय घर में तथा पूजा स्थान पर उत्तम रोशनी होनी चाहिए।

यह विवरण दैनिक भास्कर से साभार लिया जां रहा है.  सभी चित्र भी दैनिक भास्कर से साभार लिए गए है. दैनिक भास्कर द्वारा पाठकों को यह उपयोगी जानकारी के लिए बहुत बहुत धन्यवाद !!!!! 

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